
SMS Jaipur incident से भोपाल के अस्पतालों ने नहीं लिया सबक, पत्रिका टीम का चौंकाने वाला खुलासा।
SMS Jaipur Fire Incident: जयपुर के सवाईमान सिंह अस्पताल के आइसीयू में आग लगने से छह की मौत हो गयी। संदेह है आग शार्ट सर्किट की वजह से लगी। जयपुर के दर्दनाक हादसे के बाद राजधानी भोपाल के अस्पतालों में फायर सेफ्टी का जायजा लिया गया। शहर में करीब 350 निजी अस्पताल और 11 बड़े सरकारी अस्पताल (Bhopal Hospitals) हैं। इन अस्पतालों फायर सेफ्टी ऑडिट का जिम्मा नगर निगम के फायर अमले के पास है। पता चला 2021 के बाद से शहर के सभी अस्पतालों की फायर ऑडिट ही नहीं हुई है। जबकि 2019 में अंतिम बार अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर हैंडलिंग की जांच हुई थी। पत्रिका टीम ने तीन सरकारी अस्पतालों का जायजा लिया। यहां आग से सुरक्षा के इंतजाम बीमार नजर आए। फायर अलार्म, अग्निशमन यंत्र, फायर हौज रील लंबे समय से अपडेट नहीं हुए। कई खुली वायरिंग नजर आयी।
गांधी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध हमीदिया में अस्पताल में गिनती के अग्निशमक यंत्र (SMS Jaipur Fire Incident) हैं। मार्च 2025 के बाद इनकी रिफिलिंग नहीं हुई है। अग्नि सुरक्षा ऑडिट जांच सूची अपडेट नहीं है। अस्पताल कर्मियों के अनुसार फायर अलार्म और फायर हौज की दो वर्षों से जांच नहीं हुई है।
जेपी जिला अस्पताल में फायर अलार्म सिस्टम है, लेकिन अब तक इसका परीक्षण नहीं हुआ है। सिर्फ छह अग्निशमक यंत्र हैं।
कमला नेहरू अस्पताल में आधा दर्जन अग्निशामक यंत्र हैं। यहां न हौज रील है न इन यंत्रों को चलाने का किसी को प्रशिक्षण मिला है।
-स्मोक डिटेक्टर, फायर अलार्म और स्प्रिंकलर सिस्टम जरूरी
-बिजली सिस्टम और ऑक्सीजन पाइपलाइन अलग-अलग
-हर छह महीने में निरीक्षण रिपोर्ट अनिवार्य
-फायर डिपार्टमेंट की मंजूरी के बिना नक्शा पास नहीं होगा
-फायर सेफ्टी के सशक्त निगरानी प्राधिकरण का गठन जरूरी
-बिजली की पुरानी वायरिंग और ओवरलोडिंग
-ऑक्सीजन पाइपलाइन व इलेक्ट्रिकल यूनिट पास-पास होना
-फायर फाइटिंग उपकरणों का निष्क्रिय या पुराना होना
-आपातकालीन निकास का अवरुद्ध रहना
-कर्मचारियों में अग्निशमन की ट्रेनिंग का अभाव
-फायर सेफ्टी एनओसी का समय पर न होना
-वर्षों तक फायर ऑडिट नहीं कराया जाना
-40 फीसदी अस्पतालों में आपातकालीन द्वार ही नहीं
-30 प्रतिशत अस्पतालों में प्रॉपर रैंप की व्यवस्था नहीं
-पानी सप्लाई के बने आरसीसी का टैंक खाली हैं। फायर एक्सपर्ट भी नहीं है।
-कुछ अस्पताल सिर्फ फायर एक्सटींग्यूशर के ही भरोसे हैं।
-कुछ में ऑटोमैटिक स्प्रिंकलर सिस्टम ही नहीं हैं।
-यार्ड हाइड्रेंट, अंडरग्राउंड टैंक, टेरेस टैंक्स, फायर पंप, टेरेस पंप की स्थिति ठीक नहीं
-फर्स्ट एड फायर फाइटिंग उपकरण, प्रेशराइजेशन सिस्टम, ऑटो डिटेक्शन सिस्टम आदि सुविधा फेल।
इस तरह की घटनाएं न हों इसके लिए जरूरी है कि हर छह महीने में अस्पताल अपनी वेबसाइट पर फायर सेफ्टी रिपोर्ट जारी करें। बिजली और गैस पाइपलाइन की रूट मैपिंग हो। पैनल रूम, जनरेटर और ऑक्सीजन लाइनों के बीच सुरक्षित दूरी हो। फायर फाइटिंग उपकरणों की नियमित जांच हो।
आग रोकने की तरकीबों के साथ-साथ हर अस्पताल और सार्वजनिक भवन में इंटरनेट ऑफ थिंग्स आधारित सेंसर व अलार्म सिस्टम लगाए जाने चाहिए। अस्पतालों में आग की घटनाएं केवल तकनीकी त्रुटि भर नहीं हैं, बल्कि व्यवस्था की विफलता है। स्थायी सुरक्षा नीति बनायी जानी चाहिए।
-विमल शाह,एक्सपर्ट
अस्पतालों में अग्रिशामक यंत्रों की रीफिलिंग की मंजूरी मिल गई है। जल्द ही अग्नि सुरक्षा के इंतजामों को अपडेट कराने का काम शुरू होगा।
-सुनीत टंडन, अधीक्षक, हमीदिया अस्पताल
Published on:
07 Oct 2025 11:11 am
