
makar sankranti 2022
Makar Sankranti 2022 : मकर संक्रांति विभिन्न राज्यों में अलग अलग नामों से मनाया जाता है। अगहनी फसल के कटक्र घर आने का उत्सव मनाया जाता है। भारत में विभिन्न राज्यों में विभिन्न प्रकार के लोग भिन्न भिन्न बोलिया बोलते हैं। उनके सांस्कृतिक और रीतिरिवाज के अनुसार ही मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न नामों से मनाया जाता है और इसके मनाने के तरीके भी अलग अलग है। उत्तरी भारत में जहां इसे मकर संक्रांति और संक्रांति, उत्तरायण, खिचड़ी अथवा संक्रांत, हरियाणा एवं पंजाब में इसे लोहड़ी के नाम से जानते हैं।
पंडित एसके उपाध्याय के अनुसार ऐसे में इस बार सूर्य 14 जनवरी की रात 08 बजकर 58 मिनट पर मकर राशि ( शनि के स्वामित्व वाली राशि ) में प्रवेश करेंगे। जिसके चलते मकर संक्रांति का पर्व उदया तिथि में मनाए जाने के चलते यह 15 जनवरी को मनाया जाएगा, यानि मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को रहेगा।
वहीं कुछ पंचांगों में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश दिन में 02 बजकर 40 मिनट पर बताया गया है, ऐसे में पंचांगों में समय के कारण शैव संप्रदाय से जुड़े कई लोग 14 जनवरी को नदियों में स्नान कर मकर संक्रांति का पर्व मनाएंगे, जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग शनिवार, 15 जनवरी को ही सूर्य की पूजा कर मकर संक्रांति का पर्व मनाएंगे।
मकर संक्रांति मुख्य रूप से दान का पर्व है। यह पर्व प्रयागराज में माघ मेले के रूप में मनाया जाता है। वहीं माघ में बिहू असम राज्य में एक प्रसिद्ध उत्सव के रूप में है। जबकि तमिलनाडू में इसे पोंगल के नाम से मनाते हैं, वहीं कर्नाटक, केरल और आंध्रप्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं।
यहां ये जान ले ही हर राज्य में यह पर्व अपने अपने तरीके से मनाया जाता है। ऐसे में आज हम आपको संक्रांति के दिन की हर मान्यता के साथ ही भगवान सूर्य की उपासना और संक्रांति में दान का महत्व की जानकारी दे रहे हैं।
1. पतंग : मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का काफी पुराना रिवाज है, दरअसल सर्दियों में धूप बहुत कम आती है, जिस कारण हम धूप में कम ही निकल पाते हैं। ऐसे में धूप की कमी से शरीर में कई प्रकार के इंफेक्शन हो जाते हैं, वहीं सर्दियों में त्वचा भी रूखी हो जाती है, ऐसे में इस समय धूप में निकलना आवश्यक होता है।
इसके संबंध में यह माना जाता है कि जब सूर्य उत्तरायण होते हैं तो उस समय सूर्य की किरणों में ऐसे तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर के लिए दवा का काम करते हैं। ऐसे में पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर ज्यादा से ज्यादा समय तक सूर्य की किरणों के संपर्क में रहता है, इससे हमारे शरीर को विटामिन डी प्राप्त होता है।
2. तिल-गुड़ : मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में ठंड का मौसम रहता है। इस मौसम में तिल-गुड़ को खाना सेहत के लिए लाभदायक रहता है, इसे चिकित्सा विज्ञान भी मानता है। इससे जहां शरीर को ऊर्जा मिलती है। वहीं यह ऊर्जा सर्दी में शरीर की रक्षा करती है।
3. नदी में स्नान: मकर संक्रांति के अवसर पर नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है।
4. खिचड़ी : इस दिन खिचड़ी का सेवन करने का भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। अदरक और मटर मिलाकर खिचड़ी बनाने पर यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।
5. गाय व बेल की पूजा: मकर संक्रांति पर गाय व बेल को सजाया जाता है। वहीं गुड़ मुंगफली और अन्य खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है। इसका कारण ये माना जाता है कि गाय व बेल अगले सत्र के लिए तैयार हो जाएं और सेहत से मजबूत बने रहें।
6. पोंगल : भूमि से आने वाली उपज का एक हिस्सा मंदिरों को दान दिया जाता है और पोंगल को ताजा चावल का उपयोग करके पकाया जाएगा और रिश्तेदारों व दोस्तों के बीच बांटा जाएगा। इस अभ्यास से साझा करने और देखभाल करने की खुशी महसूस होती है।
भगवान सूर्य की उपासना और संक्रांति में दान का महत्व:
पद्मपुराण के सृष्टिखण्ड में श्रीवैशाम्पायन जी ने श्री वेदव्यासजी से प्रश्न किया, विप्रवर! आकाश में प्रतिदिन जिसका उदय होता है, यह कौन है? इसका क्या प्रभाव है? और इस किरणों के स्वामी का प्रादुर्भाव कहां से हुआ है? मैं देखता हूं- देवता, बड़े बड़े मुनि, सिद्ध,चारण, दैत्य, राक्षस और ब्राह्मण आदि समस्त मानव इसकी सदा ही आराधना किया करते हैं।
इस पर व्यास जी बोले- वैशम्पायन! यह ब्रह्म के स्वरूप से प्रकट हुआ ब्रह्म का ही उत्कृष्ट तेज है, इसे साक्षात ब्रह्ममय समझो। यह धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। ब्रह्म से लेकर कीटपर्यन्त चराचर प्राणियों सहित समूचे त्रिलोक में इसकी सत्ता है। ये सूर्यदेव सत्त्वमय हैं। इनके द्वारा चराचर जगत का पालन होता है। सबके रक्षक होने के कारण इनकी समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है।
पौ फटने पर इनका दर्शन करने से राशि पाप विलीन हो जाते हैं। द्विज आदि सभी मनुष्य इन सूर्यदेव की आराधना करके मोक्ष पा लेते हैं। सन्ध्योपासन के समय ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण अपनी भुजाएं उपर उठाए इन्हीं सूर्यदेव का उपस्थान करते हैं और इसके फलस्वरूप समस्त देवताओं द्वारा पूजित होते हैं।
सूर्यदेव के ही मंडल में रहने वाली संध्यारूपिणी देवी की उपासना करके संपूर्ण द्विज स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस भूतल पर जो पतित और जूठन खाने वाले मनुष्य हैं, वे भी भगवान सूर्य की किरणों के स्पर्श से पवित्र हो जाते हैं। सन्ध्याकाल में सूर्य की उपासना करने मात्र से द्विज सारे पापों से शुद्ध हो जाते हैं।
- संध्योपासनमात्रेण कल्मषात पूततां व्रजेत!
जो मनुष्य चंडाल, कसाई, पतित, कोढ़ी, महापात की और उत्पाती के दिख जाने पर भगवान सूर्य के दर्शन करते हैं- वे भार से भारी पाप से मुक्त होकर पवित्र हो जाते हैं। सूर्य की उपासना करने मात्र से मनुष्य को सब रोगों से छुटकारा मिल जाता है। वहीं जो कोई सूर्य की उपासना करते हैं, वे इस लोक और परलोक में भी अंधे,दरिद्र,दुखी व शोकग्रस्त नहीं होते। श्रीविष्णु और शिव आदि देवताओं के दर्शन सब लोगों को नहीं होते, और ध्यान में ही उनके स्वरूप का साक्षत्कार किया जाता है, लेकिन भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता माने गए हैं।
कश्यपमुनि के अंश और अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण सूर्य आदित्य के नाम से प्रसिद्ध हुए। भगवान सूर्य विश्व की अंतिम सीमा तक विचरते और मेरु गिरि के शिखरों पर भ्रमण करते रहते हैं। ये दिन-रात इस पृथ्वी से लाख योजन उपर रहते हैं। विधाता की प्रेरणा से चंद्रमा आदि ग्रह भी वहीं विचरण करते रहते हैं। सूर्य बारह स्वरूप धारण करके बारह महीनों में बारह राशियों में संक्रमण करते रहते हैं। उनके संक्रमण से ही संक्रांति होती है, जिसे अधिकांश लोग जानते हैं।
सूर्य जिस राशि पर स्थित हो, उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करें, उस समय का नाम ही संक्रांति है।
- '' रवे: संक्रमणं राशौ संक्रान्तिरिति कथ्यते।''
समस्त बारह संक्रांतियों में मकरादि (मकर, कुंभ, मीन, मेष, वृषभ व मिथुन) छह व कर्कादि (कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक व धनु) छह राशियों के भोगकाल में क्रमश: उत्तरायण और दक्षिणायन ये दो अयन होते हैं।
पद्मपुराण के सृष्टिखण्ड में भगवान सूर्य का और संक्रांति में दान के महात्म्य के बारे में विस्तार से बताया गया है। धनु, मिथुन, मीन और कन्या राशि की संक्रांति को षडशीति कहते हैं, जबकि वृषभ, सिंह,वृश्चिक और कुंभ राशि की संक्रांति को विष्णुपदी कहते हैं। मेष व तुला की संक्रांति को विषुव कहते हैं। वहीं कर्क व मकर की संक्रांति अयन कहलाती है।
इन चारों प्रकार की संक्रांति में क्रम से अयन अधिक पुण्य होता है। सभी संक्रांतियों की 16-16 घड़ियां अधिक फलदायक है। यह विशेषता है कि दिन में संक्रांत हो तो पूरा दिन, अर्धरात्रि से पहले हो तो उस दिन का उत्तरार्ध, अर्धरात्रि से पीछे हो तो आने वाले दिन का पूर्वार्ध, ठीक अर्धरात्रि में हो तो पहले और पीछे के तीन तीन प्रहर और उस समय अयन का भी परिवर्तन हो तो तीन तीन दिन पुण्यकाल होते हैं।
षडशीति नामक संक्रांति में किए हुए पुण्यकर्म का फल 86 हजार गुना, विष्णुपदी में लाख गुना और उत्तरायण या दक्षिणायन आरंभ होने के दिन कोटि-कोटि गुना अधिक होता है। दोनों अयनों के दिन जो कर्म किया जाता है, वह अक्षय होता है।
मेषादि संक्रांति में सूर्योदय के पहले स्नान करना चाहिए। इससे दह हजार गोदान का फल मिलता है। उस समय किया हुआ तर्पण, दान और देवपूजन अक्षय होता है। उस दिन ब्रह्मुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर, संकल्प करके चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर अक्षतों का अष्टदल लिखें और उसमें स्वर्णमय सूर्यनारायण की मूर्ति स्थापन करके उनका पंचोपचार (स्नान,गंध,पुष्प,धूप और नैवेद्य) से पूजन और निराहार साहार,अयाचित, नक्त या एक भुक्त व्रत करें, तो सब प्रकार की आधि व्याधियों का निवारण और सब प्रकार की हीनता या संकोच का निपात होता है और हर प्रकार की सुख संपत्ति, संतान और सहानुभूति की वृद्धि होती है।
संक्रांति के दिन ''ॐ नमो भगवते सूर्याय'' या ''ॐ सूर्याय नम:'' का जाप और आदित्यह्दयस्त्रोत का पाठ करके घी,शक्कर और मेवा मिले हुए तिलों का हवन करें और अन्न-वस्त्रादि वस्तुओं का दान करें। तो इनमें से हर एक पावन करने वाला होता है।
- अत्र स्नानं जपो होमो देवतानां च पूजनम।
उपवासस्तथा दानमेकैकं पावनं स्मृतम।।
संक्रांति के दिन व्रत की अपेक्षा स्नान और दान अवश्य करें। इनके करने से दाता और भोक्ता दोनों का कल्याण होता है। षडशीति (कन्या, मिथुन,मीन और धनु) विषुवती (तुला और मेष) संक्रांति में दिये हुए दान का अनंतगुना, अयन में दिए हुए का करोड़ गुना, विष्णुपदी में दिए हुए का लाख गुना, चंद्रग्रहण में सौ गुना,सूर्यग्रहण में हजार गुना और व्यतीपात में दिए हुए दानादि का अनंत गुना फल होता है।
कब करें कौन सा दान?
देय के विषय में यह विशेषता है कि मेष संक्रांति में मेढ़ा,वृषभ संक्रांति में गौ, मिथुन संक्रांति में अन्न-वस्त्र व दूध-दही, कर्क संक्रांति में धेनु,सिंह संक्रांति में स्वर्ण सहित छाता,कन्या संक्रांति में वस्त्र व गोदान,तुला संक्रांति में अनेक प्रकार के धन्य-बीज, वृश्चिक संक्रांति में भूमि, पात्र व गृहोपयोगी वस्तु,धनु संक्रांति में वस्त्र, वाहन और तेल,मकर संक्रांति में तिल काष्ठ व अग्नि, कुंभ संक्रांति में गायों के लिए जल और घास, मीन संक्रांति में उत्तम प्रकार के पुष्पादि और सौभाग्य की वस्तुओं के दान से सभी प्रकार की कामनाएं सिद्ध होती है और संक्रांमि आदि के अवसरों में हव्य-कव्यादि जो कुछ दिया जाता है, सूर्यनारायण उसे जन्म-जन्मांतरपर्यन्त प्रदान करते रहते है-
- संक्रांतौ यानि दत्तानि हव्यकव्यानि दातृभि:।
तानि नित्यं ददात्यर्क: पुनर्जन्मनिजन्मानि।।
Updated on:
10 Jan 2022 03:08 pm
Published on:
10 Jan 2022 03:05 pm
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