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दिल की सर्जरी के बाद 10 मौतें, फर्जी डॉ. लाल पर FIR की तैयारी

Damoh Fake Doctor Case: दमोह के फर्डीजी डॉक्टर केस में जांच पूरी, 8 पेज की रिपोर्ट तैयार, डीजीपी ने दिए निर्देश, आयोग ने की परिजनों को राहत राशि दिलाने की अनुशंसा

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Damoh Fake Doctor Case

Damoh Fake Doctor Case (फोटो सोर्स: पत्रिका)

Damoh Fake Doctor Case: फर्जी लाइसेंस से कैथलैब चलाने वाले फर्जी कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. अजय लाल के मामले में मानव अधिकार आयोग की समिति ने जांच पूरी कर ली है। दो महीने जांच के बाद आठ पेज की रिपोर्ट तैयार की। मिशन अस्पताल संचालक डॉ. लाल के खिलाफ धोखाधड़ी, मरीजों के साथ विश्वासघात करने और चिकित्सकीय लापरवाही के तहत एफआइआर दर्ज की जाएगी। तत्कालीन सीएमएचओ के विरुद्ध विभागीय जांच होगी। तब के एसपी को भी दोषी माना है। मिशन अस्पताल का लाइसेंस निरस्त करने को कहा है। इस संबंध में आयोग ने डीजीपी को निर्देश दिए हैं।

10-10 लाख रुपए मुआवजे की अनुशंसा

रिपार्ट में सात मृतकों के आश्रितों को 10-10 लाख की सहायता मिशन अस्पताल से दिलाने की अनुशंसा की है, जो इलाज में लापरवाही का शिकार हुए। अस्पताल जिस जमीन पर संचालित है उसकी जांच के निर्देश दिए। आयोग की तरफ से ब्रजवीर सिंह, राजेंद्र सिंह, रिंकल कुमार ने मामले की जांच की थी।

आयोग ने दिए निर्देश

राज्य की सभी कैथ लैबकी जांच करवाएं।

शिकायतकर्ता दीपक तिवारी और कृष्णा पटेल को संरक्षण दें।

अस्पताल द्वारा ली गई बीमाराशि की स्थिति स्पष्ट करें।

प्लॉट 86/1 से संबंधित जमीन विवाद की जांच करें।

जांच के प्रमुख निष्कर्ष

एक ही एफआइआर की, जबकि ७ की अलग-अलग समय पर मृत्यु हुई।

डॉ. कैम का पंजीयन देखे बिना हृदयरोगियों के प्रोसीजर कराए।

अस्पताल ने आयुष्मान वालों से पैसे लिए, झूठे बिल बनाए और गरीबों के नाम पर विदेश से फंड लिया।

डीजीपी को निर्देश दिए कि अलग-अलग एफआइआर दर्ज करें।

दोषी पुलिसकर्मियों परविभागीय कार्रवाई करें। विदेशी अनुदान, आयुष्मान फंड के दुरुपयोग की जांच ईओडब्ल्यू से कराएं।

इन पर दी रिपोर्ट

मिशन अस्पताल के प्लॉट 86/1 की वैधता, अनियमितताएं।

डॉ. अखिलेश दुबे केनाम से फर्जी दस्तावेजों से कैथलैब का लाइसेंस।

डॉ. एनजॉन कैम (नरेंद्र विक्रमादित्य यादव) की योग्यता और पंजीयन की वैधता।

अपात्र डॉक्टर को अनुमति देने अस्पताल की भूमिका।

आयुष्मान के क्रियान्वयन में राज्य अधिकारियों की भ्रष्टाचारपूर्ण भूमिका।

सीएमएचओ और एसपी दमोह की लापरवाही।

एफआइआर दर्ज करने में पुलिस विभाग की विफलता।

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