आमतौर पर गंभीर हादसों तक में पीड़ित के पास चंद सैकंड्स होते हैं, जिसमें संपर्क बन जाए तो मदद मिलने की पूरी संभावना होती है और जान बचाई जा सकती है। इसी संकट की स्थिति से निकालने के लिए अब जयपुराइट्स ने एक ऐसा ऐप डवलप किया है, जो दुनिया में अनूठा है और इसके इस्तेमाल से आपके अपने तुरंत ही आपकी मदद को पहुंच सकते हैं।
एक ऐसे आइडिया पर काम किया है, जिससे देशभर में एक्सीडेंट से हो रही मौतों की संख्या में तेजी से कमी लाई जा सकेगी। आमतौर पर एक्सीडेंट के बाद समय पर रेस्क्यू नहीं मिलने से मौतों की संख्या 70 फीसदी होती है। यदि कोई भी व्यक्ति इस तकनीक से तैयार मॉडल का उपयाेग अपने मोबाइल में करता है, तो वह न केवल खुद को मुसीबत से निकालने में सक्षम हो सकता है, बल्कि औरों की जान भी बचा सकता है।
जयपुर के मनीष मेहता और आलोक खण्डेलवाल एक ऐसी ही मोबाइल एप्लीकेशन पर काम किया है। उनका कहना है कि परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश हर वर्ष डेढ़ लाख लोगों को केवल सड़क हादसों में ही खो रहा है। जबकि अन्य घटनाओं में यह संख्या कई गुना है। इसलिए उन्होंने अपनी ओर से सेफ इंडिया कैंपेन का बीड़ा उठाया है। उनकी कोशिश है कि इस ऐप के जरिए वे कम से कम एक व्यक्ति की जान तो बचा ही लें।
क्या है यह मॉडल, क्या है खास बातें
असल में मेरा पेशेंट नाम से गूगल प्ले स्टोर से इस एप्लीकेशन को डाउनलोड किया जा सकता है। इस ऐप में एक ऐसा पैनिक बटन दिया गया है, जिसके स्लाइड करते ही एक साथ पांच अपनों के पास अलार्म बजना शुरू हो जाएगा। यही नहीं, उनके पास नोटिफिकेशन और एसएमएस भी जाएगा। इस मैसेज में लिखा होगा कि आप किसी प्रकार की मुसीबत में हैं, आपको तुरंत सहायता की जरूरत है। यह जरूरत कहां है, उसकी गूगल लोकेशन भी मैसेज के साथ आएगी। यानी रेस्क्यू के लिए मदद का पता भी आपको मिल सकेगा।
असल में मेरा पेशेंट नाम से गूगल प्ले स्टोर से इस एप्लीकेशन को डाउनलोड किया जा सकता है। इस ऐप में एक ऐसा पैनिक बटन दिया गया है, जिसके स्लाइड करते ही एक साथ पांच अपनों के पास अलार्म बजना शुरू हो जाएगा। यही नहीं, उनके पास नोटिफिकेशन और एसएमएस भी जाएगा। इस मैसेज में लिखा होगा कि आप किसी प्रकार की मुसीबत में हैं, आपको तुरंत सहायता की जरूरत है। यह जरूरत कहां है, उसकी गूगल लोकेशन भी मैसेज के साथ आएगी। यानी रेस्क्यू के लिए मदद का पता भी आपको मिल सकेगा।
यूं कर सकते हैं एक-दूसरे की आपात स्थिति में मदद
आपात स्थिति में सबसे पहले कोई जानकार ही किसी की मदद करता है। इसलिए सबसे पहले एक डाउनलोड करने वाला व्यक्ति पांच ऐसे लोगों को पैनिक यूजर पर क्लिक कर रिक्वेस्ट भेजता है, जो उसके अपने यानी आपात स्थिति में उसकी मदद करने में सक्षम हों। जब वे रिक्वेस्ट एसेप्ट कर लेते हैं तो वे उसके एप पर रक्षक के तौर पर रजिस्टर हो जाते हैं।
आपात स्थिति में सबसे पहले कोई जानकार ही किसी की मदद करता है। इसलिए सबसे पहले एक डाउनलोड करने वाला व्यक्ति पांच ऐसे लोगों को पैनिक यूजर पर क्लिक कर रिक्वेस्ट भेजता है, जो उसके अपने यानी आपात स्थिति में उसकी मदद करने में सक्षम हों। जब वे रिक्वेस्ट एसेप्ट कर लेते हैं तो वे उसके एप पर रक्षक के तौर पर रजिस्टर हो जाते हैं।
पैनिक बटन स्लाइड करेंगे तो यह होगा
– जोड़े गए पांचों व्यक्तियों के मोबाइल पर एक साथ पैनिक अलार्म बजने लगेगा।
– ये पैनिक अलार्म फोन के साइलेंट होने पर भी बजेगा।
– उनके पास नोटिफिकेशन के साथ मैसेज भी जाएगा, जिसमें पीड़ित की गूगल लोकेशन भी होगी।
– पीड़ित के मोबााइल पर इंटरनेट नहीं होने पर भी पांचों व्यक्तियों को एक साथ गूगल लोकेशन सहित मैसेज जाएगा।
– यदि सहायता देने वाले रजिस्टर्ड व्यक्ति का मोबाइल बंद है तो जब भी वह डिवाइस चालू करेगा, उसके मोबाइल पर अलार्म बजेगा और मैसेज भी पहुंच जाएगा।
– जोड़े गए पांचों व्यक्तियों के मोबाइल पर एक साथ पैनिक अलार्म बजने लगेगा।
– ये पैनिक अलार्म फोन के साइलेंट होने पर भी बजेगा।
– उनके पास नोटिफिकेशन के साथ मैसेज भी जाएगा, जिसमें पीड़ित की गूगल लोकेशन भी होगी।
– पीड़ित के मोबााइल पर इंटरनेट नहीं होने पर भी पांचों व्यक्तियों को एक साथ गूगल लोकेशन सहित मैसेज जाएगा।
– यदि सहायता देने वाले रजिस्टर्ड व्यक्ति का मोबाइल बंद है तो जब भी वह डिवाइस चालू करेगा, उसके मोबाइल पर अलार्म बजेगा और मैसेज भी पहुंच जाएगा।
तो बच सकती थी कुछ ऐसे केस में लोगों की जान
मनीष मेहता का कहना है कि देश में कई ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जिन्हें देख-सुनकर लगता है कि यदि ऐसा कोई पैनिक बटन उनमें से किसी के मोबाइल पर होता तो उनकी जान बचा सकती थी। जैसे जयपुर में नमक के बोरे से भरे ट्रक का पलट जाना और उसके नीचे पांच लोगों को लेकर दबी कार को ढाई घंटे बाद रेस्क्यू कर बाहर निकाला जाना, एक बड़ा उदाहरण हो सकता है। यदि ऐसा कोइ बटन तब होता तो संभव है, जो रेस्क्यू ढाई घंटे बाद शुरू हुआ, वह आधे घंटे में ही शुरू हो जाता और उनमें से किसी की जान बचाई जा सकती।
मनीष मेहता का कहना है कि देश में कई ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जिन्हें देख-सुनकर लगता है कि यदि ऐसा कोई पैनिक बटन उनमें से किसी के मोबाइल पर होता तो उनकी जान बचा सकती थी। जैसे जयपुर में नमक के बोरे से भरे ट्रक का पलट जाना और उसके नीचे पांच लोगों को लेकर दबी कार को ढाई घंटे बाद रेस्क्यू कर बाहर निकाला जाना, एक बड़ा उदाहरण हो सकता है। यदि ऐसा कोइ बटन तब होता तो संभव है, जो रेस्क्यू ढाई घंटे बाद शुरू हुआ, वह आधे घंटे में ही शुरू हो जाता और उनमें से किसी की जान बचाई जा सकती।