बताया जा रहा है कि उन्होंने केंन्द्रीय संगठन से मिले निर्देशों के बाद अपने पद से इस्तीफा दिया है। पार्टी हलकों में परनामी को काफी समय से पद से हटाने की चर्चा चल रही थी। राजस्थान में हाल ही में हुए दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर पार्टी की हुई करारी हार के बाद उन्हें पद से हटाये जाने की चर्चा चल रही थी।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी जातिगत समीकरण साधने में जुटी हुई है। परनामी के इस्तीफे के बाद नया अध्यक्ष कौन होगा लेकिन इस पद की दौड में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल, राजस्थान के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अरूण चतुर्वेदी और सांसद ओम बिडला का नाम सुर्खियों में है।
परनामी का इस्तीफा प्रदेश में इसी साल के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिहाज़ से बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है। हालांकि इस बात के कयास पहले से ही लगाए जाने लगे थे कि परनामी को हटाकर इस महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी को किसी अन्य नेता को थमाया जा सकता है, लेकिन अब अचानक से परनामी के इस्तीफे ने बीजेपी के प्रदेश संगठन को हिलाकर रख दिया है।
जानकारी के मुताबिक़ परनामी ने अपना इस्तीफा केंद्रीय नेतृत्व के ही कहने पर दिया है। सूत्रों के मुताबिक़ परनामी ने अपना इस्तीफा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को भेज दिया है। परनामी को पद से हटाए जाने के कई कारण सामने आये हैं। उनमें से 5 बड़े कारण इस तरह से देखे जा सकते हैं।
1. संगठन में कमज़ोर होती पकड़
परनामी की संगठन में पकड़ कमज़ोर पड़ने लगी थी। वे नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बेहतर तालमेल के साथ काम नहीं कर पा रहे थे। इस तरह की शिकायतों पर केंद्रीय नेतृत्व की टीम भी लगातार नज़र बनाये हुए थी।
परनामी की संगठन में पकड़ कमज़ोर पड़ने लगी थी। वे नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बेहतर तालमेल के साथ काम नहीं कर पा रहे थे। इस तरह की शिकायतों पर केंद्रीय नेतृत्व की टीम भी लगातार नज़र बनाये हुए थी।
2. उपचुनाव में हार
राजस्थान में तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में मिली करारी शिकस्त से प्रदेश बीजेपी को किरकिरी का सामना करना पड़ा था। इसके बाद पार्टी को मिली हार पर राज्य से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक ने हार के कारणों की समीक्षा की थी। उपचुनाव के दौरान संगठन की कमान परनामी के पास थी लिहाज़ा हार का ठीकरा भी उन्हीं के सर फूटना तय माना जा रहा था।
राजस्थान में तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में मिली करारी शिकस्त से प्रदेश बीजेपी को किरकिरी का सामना करना पड़ा था। इसके बाद पार्टी को मिली हार पर राज्य से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक ने हार के कारणों की समीक्षा की थी। उपचुनाव के दौरान संगठन की कमान परनामी के पास थी लिहाज़ा हार का ठीकरा भी उन्हीं के सर फूटना तय माना जा रहा था।
3. परनामी और विवाद
अपने कार्यकाल के दौरान हालांकि परनामी ज़्यादा विवादों में नहीं फंसे लेकिन जिस एक विवाद में फंसे वही उनपर भारी पड़ गया। मामला अतिक्रमणों को संरक्षण देने से जुड़ा था जिसने परनामी के साथ ही पूरी पार्टी की बहुत किरकिरी की। उनके विवादित बयान से ये मामला इतना ज़्यादा बढ़ गया कि नौबत हाईकोर्ट तक पहुँच गई। इसके बाद परनामी को अपने बयान पर माफ़ी तक मांगनी पड़ गई।
अपने कार्यकाल के दौरान हालांकि परनामी ज़्यादा विवादों में नहीं फंसे लेकिन जिस एक विवाद में फंसे वही उनपर भारी पड़ गया। मामला अतिक्रमणों को संरक्षण देने से जुड़ा था जिसने परनामी के साथ ही पूरी पार्टी की बहुत किरकिरी की। उनके विवादित बयान से ये मामला इतना ज़्यादा बढ़ गया कि नौबत हाईकोर्ट तक पहुँच गई। इसके बाद परनामी को अपने बयान पर माफ़ी तक मांगनी पड़ गई।
4. रणनीति का हिस्सा
राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाज़ा अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी का केंद्रीय संगठन जीत की रणनीति बनाने में लगा हुआ है। सियासी दृष्टिकोण से पार्टी आलाकमान के लिए राजस्थान बेहद महत्वपूर्ण राज्य माना रहा है। लिहाज़ा संगठन इस राज्य में चुनाव जीतने को लेकर हर तरह की कोशिशों में जुटा है। ऐसे में परनामी को हटाकर किसी अन्य को अध्यक्ष बनाना पार्टी की रणनीति के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाज़ा अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी का केंद्रीय संगठन जीत की रणनीति बनाने में लगा हुआ है। सियासी दृष्टिकोण से पार्टी आलाकमान के लिए राजस्थान बेहद महत्वपूर्ण राज्य माना रहा है। लिहाज़ा संगठन इस राज्य में चुनाव जीतने को लेकर हर तरह की कोशिशों में जुटा है। ऐसे में परनामी को हटाकर किसी अन्य को अध्यक्ष बनाना पार्टी की रणनीति के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है।
5. सोशल इंजीनियरिंग
किसी भी प्रदेश के लिए संगठन का अध्यक्ष पद बेहद महत्वपूर्ण रहता है। सियासी दल इस पद पर कई तरह के राजनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नियुक्ति करती है। ऐसे में माना ये जा रहा है कि इस साल के अंत में चुनाव को देखते हुए किसी वर्ग विशेष को खुश करने के लिहाज़ से परनामी को बदला जा रहा है।
किसी भी प्रदेश के लिए संगठन का अध्यक्ष पद बेहद महत्वपूर्ण रहता है। सियासी दल इस पद पर कई तरह के राजनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नियुक्ति करती है। ऐसे में माना ये जा रहा है कि इस साल के अंत में चुनाव को देखते हुए किसी वर्ग विशेष को खुश करने के लिहाज़ से परनामी को बदला जा रहा है।