हवन करते जल गए हाथ
शहर की एक धार्मिक संस्था को हवन करते हाथ जल जाए वाली कहावत से सामना करना पड़ गया। हुआ यूं कि संस्था ने पुण्य का काम शुरू करने के लिए धूमधाम से तैयारियां की। मंत्रीजी को भी बुला लिया। यहां तक तो सब ठीक-ठाक रहा। बात वहां बिगड़ी जब कार्यक्रम में फूल वाली पार्टी को तवज्जो दे दी। कार्यक्रम ही नहीं मंच पर भी विपक्षी ज्यादा। फिर तो सत्ता में बैठे नेताओं की भौंहें तनना स्वाभाविक ही था। मंत्री कार्यक्रम में आए, लेकिन उन्हीं के पार्टी के नेताओं ने किनारा कर लिया। रही सही कसर एक गलती ने पूरी कर दी। इससे किए-कराए पर पानी फिर गया। किरकिरी हुई सो अलग। अब समेटने में जरूर लगे हैं, लेकिन बात तो बात है दूर तलक जाएगी।
शहर की एक धार्मिक संस्था को हवन करते हाथ जल जाए वाली कहावत से सामना करना पड़ गया। हुआ यूं कि संस्था ने पुण्य का काम शुरू करने के लिए धूमधाम से तैयारियां की। मंत्रीजी को भी बुला लिया। यहां तक तो सब ठीक-ठाक रहा। बात वहां बिगड़ी जब कार्यक्रम में फूल वाली पार्टी को तवज्जो दे दी। कार्यक्रम ही नहीं मंच पर भी विपक्षी ज्यादा। फिर तो सत्ता में बैठे नेताओं की भौंहें तनना स्वाभाविक ही था। मंत्री कार्यक्रम में आए, लेकिन उन्हीं के पार्टी के नेताओं ने किनारा कर लिया। रही सही कसर एक गलती ने पूरी कर दी। इससे किए-कराए पर पानी फिर गया। किरकिरी हुई सो अलग। अब समेटने में जरूर लगे हैं, लेकिन बात तो बात है दूर तलक जाएगी।
मेहंदी नगरी के ठाठ निराले
मेहंदी नगरी के ठाठ निराले हैं। यहां की सत्ता फूल वाली पार्टी के हाथ में जरूर है। लेकिन काम-काज के लिहाज से सरकार की सीधी नजर है। सरकार के मजबूत ब्यूरोक्रेट की सबसे पसंदीदा जगह होने का फायदा भी मेहंदी नगर को मिल रहा है। यह बात और है कि ब्यूरोक्रेट का अपना ‘सियासी’ हित है। तभी तो सूबे का काम छोडकऱ गाहे-ब-गाहे यहां खींचे चले आते हैं। यूं तो आम आदमी के लिए बड़े ओहदेदारों के दर्शन मुनासिब नहीं होते। लेकिन मेहंदी नगरी की किस्मत चमकी हुई है। कार्यक्रम छोटा हो बड़ा, ब्यूरोक्रेट के दर्शन हो ही जाते हैं। परेशान तो वे है जिन्होंने मेहंदी नगरी से सियासत का सपना देख रखा है।
मेहंदी नगरी के ठाठ निराले हैं। यहां की सत्ता फूल वाली पार्टी के हाथ में जरूर है। लेकिन काम-काज के लिहाज से सरकार की सीधी नजर है। सरकार के मजबूत ब्यूरोक्रेट की सबसे पसंदीदा जगह होने का फायदा भी मेहंदी नगर को मिल रहा है। यह बात और है कि ब्यूरोक्रेट का अपना ‘सियासी’ हित है। तभी तो सूबे का काम छोडकऱ गाहे-ब-गाहे यहां खींचे चले आते हैं। यूं तो आम आदमी के लिए बड़े ओहदेदारों के दर्शन मुनासिब नहीं होते। लेकिन मेहंदी नगरी की किस्मत चमकी हुई है। कार्यक्रम छोटा हो बड़ा, ब्यूरोक्रेट के दर्शन हो ही जाते हैं। परेशान तो वे है जिन्होंने मेहंदी नगरी से सियासत का सपना देख रखा है।
शराब ठेके लूटने वाले गिरोह का पाली पुलिस ने किया पर्दाफाश, प्रदेश में कई वारदातों को दे चुके हैं अंजाम विवाहित अस्पताल में भर्ती, पीहर पक्ष ने ससुराल पक्ष पर लगाया जहर देने का आरोप, पुलिस आज लेगी बयान