
40 साल से ऊपर की महिलाओं के लिए जरूरी जानकारी। (फोटो डिजाइन: पत्रिका)
Perimenopause and Menopause: पीरियड्स, पेरीमेनोपॉज और मेनोपॉज, महिलायें अब अपने स्वास्थ्य को लेकर पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हैं। और अगर बात हो मेनोपॉज की तो 40 से 50 की उम्र की लगभग एक-तिहाई महिलायें कहती हैं कि वो मेनोपॉज और पेरिमेनोपॉज के बारे में पहले से कहीं ज्यादा सुनती और जानती हैं। अब वो चाहे सोशल मीडिया हो, न्यूज हो या अपनी सहेलियों और परिवार में बातचीत। आजकल हर जगह हार्मोन थेरेपी, नाइट स्वेट्स और इसके लक्षणों से राहत दिलाने वाले तरीकों पर काफी चर्चा होने लगी है। .
देखा जाए तो इस जागरूकता का सबसे बड़ा कारण है मिलेनियल पीढ़ी यानी (1981 से 1996 के बीच पैदा होने वाले लोग)। यही वह पीढ़ी है जिसने अपने जमाने में हर तरह के बदलाव देखें हैं, फिर चाहे वो टेक्नोलॉजी में बदलाव हो या फिर पीरियड्स, गर्भनिरोध, प्रजनन स्वास्थ्य और सेक्सुअल हेल्थ पर खुलकर बात करना हो। इंटरनेट और ऑनलाइन मीडिया ने भी महिलाओं को वह जानकारी दी है जो पहले सिर्फ मेडिकल की किताबों या एक्सपर्ट्स तक ही सीमित थी।
मेनोपॉज एक्सपर्ट सारा शीली के अनुसार, “मिलेनियल महिलायें पहली ऐसी पीढ़ी की महिलाएं हैं जिनको पेरिमेनोपॉज के बारे में तब से पता है जब से वो उससे गुजर रही होती हैं। जबकि हमारे समय में ये सारी जानकारी इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं थी। आज वो दौर है जब इस टॉपिक पर बात करना कोई शर्म की बात नहीं है, महिलाएं हों या पुरुष दोनों खुलकर इस बारे में बात करते हैं।”
हालांकि, मेनोपॉज और उसके इलाज में आज भी कई कमियां हैं और अधूरी जानकारी ज्यादा घातक होती है। ऐसे में सेलेब्रिटीज और वेलनेस इन्फ्लुएंसर्स बिना पूरी जानकारी के गलत-सलत सलाह देकर महिलाओं को और ज्यादा कन्फ्यूज करने का काम करते हैं। जिसके चलते क्या सही है और क्या गलत, इसमें फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
आज हम आपको पेरिमेनोपॉज और मेनोपॉज से जुड़े सच और झूठ के बारे में बताएंगे। इस जानकारी के माध्यम से हम महिलाओं की भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। तो चलिए जानते हैं पेरिमेनोपॉज और मेनोपॉज से जुड़े मिथकों उनसे जुड़े सच के बारे में।
ज्यादातर महिलाओं को यह गलतफहमी है कि पेरिमेनोपॉज और मेनोपॉज एक ही होता है, जबकि ऐसा नहीं है। पेरिमेनोपॉज वो अवस्था है जो मेनोपॉज से पहले आती है। ये 40 की उम्र के बाद शुरू होती है। इससे गुजर रही महिलाओं को हॉट फ्लैशेज, नाइट स्वेट्स, नींद की दिक्कत और पीरियड्स में अनियमितता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, मेनोपॉज तब माना जाता है, जब किसी महिला को लगातार 12 महीनों यानी एक साल तक पीरियड्स (मासिक धर्म) न आये। न्यूयॉर्क में एसयूएनवाई डाउनस्टेट हेल्थ साइंसेज यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ मेडिसिन में प्रसूति-स्त्री रोग विशेषज्ञ और क्लिनिकल सहायक प्रोफेसर मेलानी पीटर्स का कहना है कि मासिक धर्म साइकल (Menstrual Cycles) पेरिमेनोपॉज के दौरान बदल जाता है। इसके चलते कुछ महिलाओं को बीच-बीच में पीरियड्स नहीं आते या उनके बीच में लम्बा गैप हो सकता है या “रक्तस्राव (Blood Flow) कम हो सकता है।”
महिलाओं में एक भ्रान्ति ये है कि पेरिमेनोपॉज की औसत उम्र 51 तक होती है, जबकि ऐसा नहीं है। 51 साल की उम्र मेनोपॉज की औसत उम्र होती है। वहीं, पेरिमेनोपॉज महिलाओं को 40 की उम्र के बाद शुरू हो जाता है क्योंकि महिलाओं की ओवरी की उम्र बढ़ने लगती है। ओव्यूलेशन को बढ़ाने वाले वाले हार्मोन्स कम-ज्यादा होने लगते हैं, और मेन्स्ट्रुअल साइकल बदलने लगता है। कभी-कभी ये 40 की उम्र से पहले भी शुरू हो जाता है जिसके मुख्य कारण स्मोकिंग, या अनुवांशिक भी हो सकते हैं। वहीं, टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी एचएससी स्कूल ऑफ मेडिसिन में एक प्रसूति-स्त्रीरोग विशेषज्ञ और रजोनिवृत्ति सेवा के प्रमुख रॉबर्ट कॉफमैन ने बताया कि पेरिमेनोपॉज के कुछ संकेत परिवार की महिलाओं की हिस्ट्री से मिलते हैं, लेकिन इसकी शुरूआती उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है।
हां, ऐसा संभव है, हालांकि, कुछ महिलाओं में ये लक्षण होता है, लेकिन यह एक सामान्य लक्षण नहीं है। इसके सामान्य लक्षण हॉट फ्लैशेज (अचानक से पसीना आना), मूड स्विंग जैसे चिड़चिड़ापन, वेजाइनल ड्राईनेस, नींद में परेशानी, वजन बढ़ना, सेक्स ड्राइव में कमी होना, बार-बार पेशाब की इच्छा या यूरिनरी समस्यांए होना हैं। बता दें कि ये सारे बदलाव रक्त वाहिनियों (Blood Vessels) और हार्मोन्स के लेवल में होने वाले बदलावों के कारण होते हैं।
यह एक आम गलतफहमी है। बहुत सी महिलाओं का मानना है कि हार्मोन टेस्ट (Hormone Text) से पेरिमेनोपॉज का पता चल सकता है। जबकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि हार्मोन्स (एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन) के लेवल में होने वाले उतार-चढ़ाव पीरियड्स का एक सामन्य हिस्सा हैं और यह रोज बदलते रहते हैं। इसलिए किसी एक टेस्ट से इसकी सही जानकारी नहीं मिल सकती है। बावजूद इसके महिलाएं ऑनलाइन लैब टेस्ट, गैजेट्स और सप्लीमेंट्स के भर्मित करने वाले विज्ञापनों पर विश्वास करती हैं।
वूमेंस हेल्थ इनिशिएटिव की शुरुआत में हार्मोन थेरेपी (Hormone Therapy) पर ब्लैक बॉक्स वॉर्निंग (Black Box Warning) लगाई गई थी, जिसके अनुसार, हार्मोन थेरेपी से दिल के दौरे, स्ट्रोक, खून के थक्के और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि, नई रिसर्च से सामने आया है कि 60 साल से कम उम्र की स्वस्थ महिलाओं में हार्मोन थेरेपी सुरक्षित और फायदेमंद साबित हो सकती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि मेनोपॉज के लिए कोई एक इलाज नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि (रजोनिवृत्ति) मेनोपॉज में तीन तरह के हार्मोन्स एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन मुख्य भूमिका निभाते हैं। जैसे एस्ट्रोजन, हड्डियों की कमजोरी-मजबूती, हॉट फ्लैशेज, नाइट स्वेट्स, समय से पहले मेनोपॉज या पेशाब से संबंधित बदलावों में मदद करता है। प्रोजेस्टेरोन, गर्भाशय की परत (एंडोमेट्रियम) को मोटा होने से रोकने में मदद करता है। और टेस्टोस्टेरोन, यौन इच्छा को नियंत्रित करने में मदद करता है।
मेनोपॉज हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, हार्मोन थेरेपी इंजेक्शन के रूप में नहीं, बल्कि गोलियों, पैच, जेल या क्रीम के रूप में दी जाती है। मेनोपॉज सोसाइटी सर्टिफाइड प्रैक्टिशनर, कॉफमैन के अनुसार, इंजेक्शन या शॉट्स हार्मोन के लेवल को अचानक से बढ़ा या गिरा सकते हैं, जबकि हार्मोन थेरेपी का मुख्य उद्देश्य हार्मोन्स का संतुलन बनाये रखना होता है। वहीं, इंजेक्शन या त्वचा के नीचे लगाए जाने वाले पेलेट FDA द्वारा स्वीकृत नहीं हैं और ज्यादातर एक्सपर्ट्स इसकी सलाह नहीं देते। कॉफमैन का मानना है कि त्वचा के माध्यम से दी जाने वाली हार्मोन थेरेपी ज्यादा सुरक्षित है।
ये अवधारणा गलत है। हालांकि, हार्मोन थेरेपी मेनोपॉज के लक्षणों को कम करने का कारगर तरीका है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस इलाज को कराने से पहले किडनी या दिल का दौरा, स्ट्रोक या खून के थक्कों जैसी किसी भी समस्या की जांच और उनके खतरों के बारे में जानना भी जरूरी है। बता दें कि FDA ने हाल ही में हॉट फ्लैश के इलाज के लिए एक नई दवा को मजूरी भी दी है। मगर दवाओं पर निर्भर रहना सही नहीं है। इसके लिए महिलाओं को अपने खान-पान में बदलाव भी करने जरूरी हैं। महिलाओं को अपने भोजन में फाइबर और एंटी-इन्फ्लेमेटरी खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए जैसे,
- पत्तेदार सब्जियां, मछली, साबुत अनाजखाएं।
- रोजाना ऐसी एक्सरसाइज करनी चाहिए जो मांसपेशियों को मजबूत बनाये।
- पर्याप्त नींद लेना जरूरी है, जिससे तनाव कम हो।
इसके साथ ही एक्सपर्ट, शीली ने कहा "ये ऐसी चीजें हैं जिन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता, चाहे आप हार्मोन थेरेपी लें या न लें। और रही बात सप्लीमेंट्स की तो बता दें कि ज्यादातर सप्लीमेंट FDA द्वारा विनियमित (Regulated) नहीं हैं, इसलिए सप्लीमेंट की बोतल में क्या है और क्या नहीं इसकी गुणवत्ता और मात्रा का निर्धारण करना मुश्किल है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर डॉक्टर आपकी समस्या सुनने के बाद भी खुद मेनोपॉज के बारे में बात नहीं करते, तो आप पहल करें। एक अध्ययन के अनुसार, मेडिकल रेजिडेंट्स में से सिर्फ 10 प्रतिशत ही मेनोपॉज का इलाज करने में सक्षम होते हैं। इसलिए सबसे पहले सही और अच्छा डॉक्टर ढूंढें क्योंकि ये सबसे ज्यादा जरूरी है, इसमें थोड़ा समय जरूर लगेगा लेकिन सही समाधान मिलेगा। दूसरी समस्याओं के कारण मेनोपॉज को नजरअंदाज करना आपकी सेहत पर बुरा असर डाल सकता है, और आप कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का शिकार बन सकती हैं, जैसे
- दिल का स्वास्थ्य
- डिमेंशिया (भूलने की बीमारी)
- अल्जाइमर
- डायबिटीज
- हड्डियों की कमजोरी
इसलिए सही जानकारी, सही डॉक्टर और सही समय पर पहचान, ये सब मिलकर मेनोपॉज को एक स्वस्थ, सुरक्षित और समझदारी भरा अनुभव बना सकते हैं। और अगर आप इसके लक्षण महसूस कर रही हैं, तो चुप रहने की बजाय खुलकर बात करें।
(वाशिंगटन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है।)
Updated on:
22 Nov 2025 11:33 am
Published on:
22 Nov 2025 11:23 am
बड़ी खबरें
View AllPatrika Special News
ट्रेंडिंग
