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कोरोना संकट को पुरूषार्थ से जीता जा सकता है

भाग्य सब कुछ नहीं होता, स्वयं का पुरूषार्थ ही सबकुछ होता है। पुरूषार्थी जो प्राप्त करते है, वह उपलब्धि परक होता है। कोरोना के इस संकट काल में हर व्यक्ति को अपने पुरूषार्थ की महत्ता समझनी चाहिए। क्योंकि इस संकट को पुरूषार्थ से ही जीता जा सकता है।

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रतलाम. भाग्य सब कुछ नहीं होता, स्वयं का पुरूषार्थ ही सबकुछ होता है। पुरूषार्थी जो प्राप्त करते है, वह उपलब्धि परक होता है। कोरोना के इस संकट काल में हर व्यक्ति को अपने पुरूषार्थ की महत्ता समझनी चाहिए। क्योंकि इस संकट को पुरूषार्थ से ही जीता जा सकता है। कायर और कमजोर मानसिकता वाले लोग ही भाग्य की बंद गली में घुसते है। वीर और ताकतवर लोग तो पुरूषार्थ का संकल्प लेकर चलते है, इसलिए उन्हें सफलता मिलती है।

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यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 विजयराज ने कही। सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्य ने सोमवार को धर्मानुरागियों को प्रसारित संदेश में कहा कि उत्तम स्वास्थ्य, प्रसन्नता, सामाजिक समरसता और आत्म शांति मानव जीवन की आवश्यकता भर नहीं है। ये सभी जीवन की उपलब्धियां है। हमे किसी भी उपलब्धि के लिए दूसरों के भरोसे नहीं रहना चाहिए और स्वयं प्रयत्न करना चाहिए। बिना श्रम के मिलने वाली उपलब्धि महान होने पर भी अभिशाप बन जाती है।

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उपलब्धियां भी पुरूषार्थ की बदौलत
उन्होंने कहा कि दूसरों से सबकुछ चाहना आज के मानव की प्रकृति और प्रवृत्ति बन गई है। वह स्वयं कुछ नहीं करना चाहता, जिससे वह मुखापेक्षी बन जाता है। उसे बुद्धि, विवेक, चिंतन और हिताहित को समझने की क्षमता मिली है, लेकिन वह इनका सम्यक उपयोग नहीं कर पा रहा है। इससे उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती और वह अपने भाग्य को कोसता है। भाग्य को कोसने के बजाए पुरूषार्थ करना चाहिए। क्योंकि शांति, संतुष्टि, पवित्रता और आनंद जैसी जीवन की महान उपलब्धियां भी पुरूषार्थ की बदौलत ही प्राप्त होती है।

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उपलब्धियों का मार्ग इतना आसान नहीं
आचार्यश्री ने कहा कि संसार की महत्वपूर्ण उपलब्धियों का इतिहास इस बात का साक्षी है कि अनेक प्रकार की मुसीबतों और बाधाओं को चीरकर ही इन्सान उपलब्धियों तक पंहुचता है। उपलब्धियों का मार्ग इतना आसान नहीं है, इसीलिए उनके लिए कर्मठता, जीवटता, लगनशीलता और सर्मपण का भाव रखना पडता है। चंचलता और मलीनता मन के ऐसे दोष है, जो हर उपलब्धि में अवरोधक बनते है। हमारे भीतर अनंत शक्ति है, तो उसका उपयोग करने में पीछे क्यों रहा जाए। यह सोच जिस दिन विकसित हो जाती है, उस दिन से व्यक्ति पुरूषार्थ की डगर पर चल पडता है। समस्याएं कितनी भी बडी क्यों ना हो, पुरूषार्थ के आगे वे बौनी हो जाती हैं।

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अंधकार घना है, लेकिन दीपक जलाना कहां मना
उन्होंने कहा कि माना अंधकार घना है, लेकिन दीपक जलाना कहां मना है। पुरूषार्थ का दीपक समस्या के अंधकार का समाधान है। मन के हारे, हार है, तो मन के जीते जीत। इस सच्चाई को आज चरितार्थ करने की आवश्यकता है। इससे ही वांछित उपलब्धियों प्राप्त होगी। कोई भी उपलब्धि कभी आकाश से नहीं टपकती और ना ही भूमि फोडकर बाहर आती है। वे हमेशा पुरूषार्थ की ही देन होती है।

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असीम सुख और आनंद की अनुभुति
आचार्य ने कहा कि अच्छे और बुरे भाग्य का निर्माण पुरूषार्थ ही करता है। सदियों से इन्सान भाग्य और पुरूषार्थ की उलझनमें उलझा रहता हैं, जबकि यह उलझन निरर्थक ही साबित होती है। हर उपलब्धि का मुख्य कारक व्यक्ति का उत्तम पुरूषार्थ होता है। लाभ-अलाभ, सुख-दुख, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान, जन्म-मरण, अनुकुलता-प्रतिकुलता में जितने भी द्वंद्व है, उनमें समान रहने का संकल्प और अभ्यास पुरूषार्थ से होता है। जीवन में इसे ही सर्वोच्च उपलब्धि माना गया है। उपलब्धियों का उन्माद पतन का मार्ग है। जबकि उपलब्धियों का आनंद उत्थान का मार्ग है। सच्चे साधक उन्माद से मुक्त होते है, इसलिए उनके जीवन में उपलब्धियों का खजाना बढता जाता है। प्रदर्शन का भाव ना रखकर उपलब्धियों का स्वाद चखा जाए, तो वे असीम सुख और आनंद की अनुभुति देती है। कोरोना के इस संकट काल में पुरूषार्थ के इस मार्ग पर चलते रहे, तो एक दिन इस संकट को खत्म करने की उपलब्धि मिल जाएगी।

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