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रतलाम

श्राद्ध 2019 : वो सब जो आप जानना चाहते है

Shraddha 2019 : शास्त्रों में ऐसी मान्यता है पितृपक्ष के दिनों में हमारे पूर्वज जिनका देहान्त हो चुका है वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और पृथ्वी लोक पर जीवित रहने वाले अपने परिजनों के तर्पण को स्वीकार करते हैं। इस दौरान पिंडदान भी गया में किया जाता है।

रतलामSep 12, 2019 / 03:30 pm

Ashish Pathak

Shraddha 2019: Everything you want to know

Shraddha 2019: Everything you want to know

रतलाम। Shraddha 2019: Everything You Want To Know : भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक 16 दिन की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 13 सितंबर से 28 सितंबर तक श्राद्धपक्ष रहेगा। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है पितृपक्ष के दिनों में हमारे पूर्वज जिनका देहान्त हो चुका है वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और पृथ्वी लोक पर जीवित रहने वाले अपने परिजनों के तर्पण को स्वीकार करते हैं। इस दौरान पिंडदान भी गया में किया जाता है। ये बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी एनके आनंद ने श्राद्ध के विषय में कही।
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पहले यहां जाने श्राद्ध किसे कहते हैं?
Who Is Known As Shradh First? : ज्योतिषी एनके आनंद ने कहा कि श्राद्ध का मतलब श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करना। हिंदू शास्त्रों के अनुसार जिस किसी के परिजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।
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इसको समझे कि कौन कहलाते हैं पितर

Understand Who Is Called Pitar : ज्योतिषी एनके आनंद ने बताया कि जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हों, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है। पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है।
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Shraddha 2019: Everything you want to know
इसको जाने कब बनता है पितृपक्ष का योग


When Does It Become Known To The Ancestral Side : ज्योतिषी एनके आनंद ने कहा कि हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष के 15 दिन पितरों को समर्पित होता है। शास्त्रों अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपक्ष की पूर्णिणा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा को उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो। शास्त्रों मे कहा गया है साल के किसी भी पक्ष में, जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म उसी तिथि को करना चाहिये।
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श्राद्ध की तिथि जब याद ना हो क्या करें


Do Not Remember The Date Of Shraddha : ज्योतिषी एनके आनंद ने कहा कि पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों में इसका भी निवारण बताया गया है।शास्त्रों के अनुसार यदि किसी को अपने पितरों के देहावसान की तिथि मालूम नहीं है तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है। इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इसके अलावा यदि किसी की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। ऐसे ही पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है।
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परिवार में किसे करना चाहिए श्राद्ध


Who Should Perform Shraddha In The Family : ज्योतिषी एनके आनंद ने बताया कि धर्मग्रंथ के अनुसार श्राद्ध का अधिकार सबसे बडे़ पुत्र को प्राप्त है। लेकिन यदि पुत्र जीवित न हो तो पौत्र, प्रपौत्र या विधवा पत्नी या बेटी भी श्राद्ध कर सकती है। पुत्र के न रहने पर पत्नी का श्राद्ध पति या बेटा बेटी भी कर सकते है।
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क्या पितरों की आत्मा धरती पर आती


Did The Ancestors Soul Come To Earth : श्राद्धपक्ष आरम्भ होने वाले हैं। जो 13 सितंबर से शुरू होकर और 28 सितंबर तक चलेगा। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों की आत्मा धरती पर आती है और अपने परिजनों के साथ रहती हैं। पितरों को खुश रहने के लिए श्राद्ध के दिनों में विशेष कार्य करना चाहिए वही कुछ वर्जित कार्य नहीं करना चाहिए।
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भूलकर नहीं करें ये काम श्राद्ध में


Do Not Forget This Work In Shradh
– पितृपक्ष में श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पान, दूसरे के घर पर खाना और शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए साथ ही पूरे पितृपक्ष में ब्रह्राचर्य के व्रत का पालन करना चाहिए।

– पितृपक्ष में कभी भी लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इन दिनों पत्तल पर स्वयं और ब्राह्राणों को भोजन करवाना उत्तम माना गया है।
– पितृपक्ष में कोई भी शुभ कार्य या नयी चीजों की खरीददारी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि पितृपक्ष शोक व्यक्त करने का समय होता है।

– पितृपक्ष में हमारे पितर किसी भी रुप में श्राद्ध मांगने आ सकते हैं इसलिए किसी जानवर या भिखारी का अनादर नहीं करना चाहिए।
– पितृपक्ष में बिना पितरों को भोजन दिए खुद भोजन नहीं करना चाहिए। जो भी भोजन बने उसमें एक हिस्सा गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ को खिला देना चाहिए।

– श्राद्ध में बनाया जाने वाला भोजन घर की महिलाओं को नहीं खिलाना चाहिए।
– श्राद्ध में पुरुषों को दाढ़ी मूंछ नहीं क
टवाना चाहिए।
– श्राद्ध के पिंडों को गाय, ब्राह्राण और बकरी को खिलाना चाहिए।

– चतुर्दशी को श्राद्ध नहीं करना चाहिए। लेकिन जिस किसी की युद्ध में मृत्यु हुई हो उनके लिए चतुर्दशी का श्राद्ध करना शुभ रहता है।
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श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां
Important dates of Shraddha

13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर- प्रतिपदा श्राद्ध
15 सितंबर- द्वितीय श्राद्ध
17 सितंबर- तृतीया श्राद्ध 18 सितंबर- चतुर्थी श्राद्ध
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19 सितंबर- पंचमी श्राद्ध
20 सितंबर- षष्ठी श्राद्ध
21 सितंबर- सप्तमी श्राद्ध
22 सितंबर- अष्टमी श्राद्ध

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23 सितंबर- नवमी श्राद्ध
24 सितंबर- दशमी श्राद्ध
25 सितंबर- एकादशी श्राद्ध/द्वादशी श्राद्ध/वैष्णव जनों का श्राद्ध
26 सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध 27 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
28 सितंबर- अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि पितृ श्राद्ध, पितृविसर्जन महालय समाप्ति
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