
NRI Vinita Tiwari
NRI Writer: जिन प्रवासी भारतीयों ने विदेश में रह कर देश का नाम रोशन किया है,उनमें अमरीका में रह रहे प्रवासी भारतीय भी प्रमुख हैं। पेश है राजस्थान मूल की ऐसी ही प्रवासी भारतीय लेखिका विनीता तिवारी ( Vinita Tiwari) से अमरीका के वर्जीनिया से बातचीत पर आधारित उनकी सक्सेस स्टोरी:
प्रवासी भारतीय साहित्यकार( NRI Writer ) विनीता तिवारी लेखन के अतिरिक्त हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, नृत्य व चित्रकला में अभिरुचि रखती हैं। हिन्दी भाषा व भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार से जुड़ी वर्जीनिया, मैरीलैंड की कई संस्थाओं में उनका सक्रिय योगदान रहता है। इंडिया इंटरनेशनल स्कूल, शैंटिली, वर्जीनिया में हिन्दी का अध्यापन कार्य कर रही हैं।
उनकी रचनाओं का मूल केंद्र भाव मानवीय अनुभूति है जिसमें आप अपने व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभवों को अपने श्रोताओं से जोड़ कर मानवीय एकता और बंधुत्व का मार्ग प्रशस्त करती हैं। उनकी रचनाओं में नारी जीवन की विकट परिस्थितियां, उसके प्रति चेतना, जागृति और इन विकट परिस्थितियों के संभावित समाधानों का भी कहीं-कहीं चित्रण मिलता है।
उनके 2 संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और उनकी रचनाएं कई अंतरराष्ट्रीय साझा संकलनों में शामिल हैं। वे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शिरकत करती रहती हैं।
प्रवासी भारतीय साहित्यकार विनीता तिवारी हिन्दी साहित्यकारों, विशेषतः गीत-ग़ज़लों की दुनिया में एक उभरता हुआ नाम है। सन 1997 से अमरीका में रह रहीं विनीता तिवारी न सिर्फ़ हिन्दी साहित्य, अपितु भारत की अन्य लोक कलाओं व सांस्कृतिक गतिविधियों में भी अपने योगदान के लिए जानी जाती हैं।
उनका जन्म राजस्थान के अलवर ज़िले में हुआ, जो दिल्ली की सीमा से लगा हुआ होने के कारण राजस्थान और दिल्ली, दोनों की संस्कृति से प्रभावित शहर है। यही कारण है कि आपके लेखन में सामान्य हिन्दी/उर्दू के साथ कहीं-कहीं प्रांतीय भाषा की झलक भी देखने को मिलती है।
उनकी आरंभिक शिक्षा माता-पिता की छत्रछाया में रहते हुए आर्य कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय, अलवर में हुई और उन्होंने रसायन शास्त्र आॅनर्स में बी. एससी. राजस्थान विश्वविद्यालय से किया। बी. एससी के बाद बी. एड. के प्रवेशिका पत्र में उत्तीर्ण होने से भरतपुर(भुसावर) में रहकर 1995 में दूसरी स्नातक की डिग्री हासिल की।
सन 1997 में systems school of computing, Jaipur से कम्प्यूटर साइंस में डिप्लोमा प्राप्त किया। वे 1997 में अमरीका पहुंचने के बाद उनका रुझान विज्ञान और तकनीक से पूरी तरह हट कर साहित्य व कला की तरफ़ बढ़ता गया और उन्होंने अमरीका में रहते हुए हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया और 2020 में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो संगीत विशारद की उपाधि प्राप्त की।
विनीता तिवारी के लेखन की शुरुआत बचपन में होश सम्भालने के साथ ही हो चुकी थी। अलवर, राजस्थान के लोकल अख़बारों में एक-दो गीत-ग़ज़लों के प्रकाशन के बाद 2016 में गर्भनाल पत्रिका के सम्पादक आत्माराम के प्रोत्साहन से गद्य विधा में लिखने की शुरुआत हुई। इसी वर्ष गर्भनाल के अक्टूबर अंक में उन पहला आलेख “विदेश में देश” प्रकाशित हुआ औैर उनके आलेख, कविताएं, गीत व ग़ज़लें लगातार गर्भनाल, विश्वा, सेतु और अनुभूति जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। उन्हें सन 2022 में न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित “भारत-दर्शन” में मासिक स्तंभ लिखने का आमंत्रण मिला, जिसे उन्होंने साहित्य की सेवा समझ कर सहर्ष स्वीकार किया।
उनकी रचनाएं पिछले कई वर्षों से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिनिधि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। अनहदकृति पत्रिका की “आवाज़ें” में उनकी बहुत से प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनाओं को अपनी आवाज़ भी देती रही हैं। वे नीदरलैंड से निकलने वाली “साहित्य का विश्वरंग” नामक पत्रिका से बतौर सहायक संपादक जुड़ी हुई हैं। साथ ही न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित पत्रिका “भारत-दर्शन” में आप “बातें देश-विदेश की” जैसे चर्चित स्तम्भ में विदेशी पृष्ठभूमि पर लिखी गई सारगर्भित रचनाओं की लेखिका भी रही हैं।
उनके काव्य-संग्रह “दिल से दिल तक” व ग़ज़ल-संग्रह “इत्मीनान में हूँ मैं” में अपनी रचनाओं से उनने आम इंसान की भावनाओं और संवेदनाओं को उकेरने की कोशिश की है। प्रवासी भारतीयों को लेकर प्रकाशित होने वाली तक़रीबन सभी पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं जिनमें हिन्दी चेतना(कनाडा), गर्भनाल, सेतु(अमरीका), विश्वा, भारत-दर्शन(न्यूज़ीलैंड), विश्वरंग, अनुभूति(शारजाह), अनन्या(अमरीका) और विश्व हिंदी साहित्य(मॉरीशस) आदि प्रमुख हैं।
इनके अतिरिक्त उनके आलेख व कविताएं नीलाम्बरा, हिन्दी कौस्तुभ, हिन्दी जगत, माही संदेश, अनहदकृति, रचना उत्सव, साहित्यसुधा, हिन्दी पू, प्रणाम पर्यटन, कालजयी और व्यंजना इत्यादि भारतीय पत्रिकाओं में भी स्थान बनाते रहे हैं। सन 1997 में अमरीका पहु्ंचने के बाद ऐच्छिक रूप से हिन्दी भाषा का अध्यापन शुरू किया, जो आज तक जारी है।
अमरीका और भारत के अलावा उन्होंने कुछ समय आस्ट्रेलिया की सभ्यता-संस्कृति और परिवेश को समझने में भी लगाया है। इन देशों के अतिरिक्त आप स्विट्ज़रलैंड, कनाडा, स्पेन, मैक्सिको व द बहामाज़ की यात्राएँ भी कर चुकी हैं।
पद — वे अंतरराष्ट्रीय संस्था गोपिओ (GOPIO) की वर्जीनिया शाखा में कल्चरल कॉर्डिनेटर व उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत रह चुकी हैं। वाशिंगटन डीसी में राजस्थान के साहित्य और सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़ी संस्था “राजस्थली” में कुछ वर्ष सांस्कृतिक समन्वयक और कोषाध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहने के बाद अब वाइस प्रेसीडेंट जुड़ी हुई हैं। वे अमरीका की “एंशियंट रिदम्स” नामक दुनिया के लोकनृत्यों को सजीव रखने वाली नृत्य कंपनी में कई बार कालबेलिया लोकनृत्य की प्रतिनिधि नृत्यांगना रह चुकी हैं। प्रवासी भारतीय विनीता हिन्दुस्तानी ग़ज़ल अकादमी समूह की सह संयोजक रही हैं।
हिन्दी अकादमी, मुंबई से मृदुला सिन्हा स्मृति सम्मान (2020)।
विश्व हिन्दी अकादमी, मुम्बई एवं मालवा द्वारा विश्व हिन्दी सेवा सम्मान (2021)।
भारतीय संस्कृति सेवार्थ न्यास, हरिद्वार, हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनैडा, द यूनिवर्सिटी आव फ़ीजी और कम्युनिटी रेडियो फैडरेशन दिल्ली से विश्व साहित्य सम्मान (2021)।
गोपिओ वर्जीनिया से “Excellence in Art and Culture” Award
अनहदकृति पत्रिका में उल्लेखनीय सहभागिता के लिए मायामी, अमरीका में सम्मानित किया गया (2022)।
विश्व रंग महोत्सव, भोपाल की ओर से अमरीका के प्रतिनिधि साहित्यकार के रूप में सम्मानित किया गया (2022)।
आर. के. पब्लिकेशन, मुंबई से प्रकाशित “प्रवासी पंछी।”
विश्व हिन्दी साहित्य संस्थान से प्रकाशित “धरा से गगन तक-2।”
सोपान प्रकाशन से प्रकाशित “सरहदों के पार सोपान।”
प्रभा श्री पब्लिकेशन से प्रकाशित “बज़्मे-मुशायरा।”
वाणी प्रकाशन से प्रकाशित “एक शेर अर्ज़ किया है।”
डा. जगदीश व्योम प्रकाशित हाइकु-संकलन- “हिन्दी हाइकु कोश” जैसे कई कविता, ग़ज़ल व हाइकु संकलनों में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं।
सावन
सावन की रिमझिम बौछार
भीग रहा मन भाव पसार
टप टप बूँदों सी थिरकूँ मैं
गाऊँ पी संग राग मल्हार
नाचे मोर पपीहा बोले
फुदक फुदक मेंढक दिल खोले
कोयल कुहुक कुहुकती डोले
चहक रहा आँगन घर द्वार
फूल खिले हैं उपवन उपवन
बौराया भँवरों का तन मन
ताक रही पगडंडी बिरहन
याद करें प्रियतम का प्यार
घिर घिर आए घटा घनेरी
बिजली चमक चमक ले फेरी
बन बरखा की साथी संगी
ठंडी ठंडी चली बयार
सावन की रिमझिम बौछार
भीग रहा मन भाव पसार
~विनीता तिवारी
वर्जीनिया, अमरीका।
दिल की पतंग
क्यूं आज घना बदली का रंग
क्यूं ढूंढ रहा मन उनका संग
लेकर उमंग लेकर तरंग
उड़ने चली दिल की पतंग
आकाश समुंदर सा गहरा
है प्यार मेरा सेहरा-सेहरा
कैसे शब्दों में लिख दूं मैं
अपने जज़्बात का चेहरा
तेरे तन की ख़ुशबू से दंग
निखरा मेरा हर अंग अंग
कहना जो चाहूँ कह दूं क्या?
ख़्वाबों से दुनिया लह दूं क्या?
सोलह शृंगार मेरे तन का
उनकी बांहों में ढह दूं क्या?
दिल की चाहत से पूछ रहा
मस्तिष्क मेरा होकर दबंग
आज़ाद परिंदे उड़ने दो
धड़कन से धड़कन जुड़ने दो
सांसों को सांस सुनाई दे
इतनी ख़ामोशी बढ़ने दो
है रात भरी अरमानों से
कट जाए ना बेबस अपंग
लेकर उमंग लेकर तरंग
उड़ने चली दिल की पतंग।
विनीता तिवारी
वर्जीनिया, अमरीका
Published on:
28 Jun 2024 03:30 pm
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