
ईरान के सर्वोच्च नेता के पूर्वजों की जड़ें बाराबंकी के किंतूर गांव में फोटो सोर्स : Patrika
Barabanki Kintur Village: पश्चिम एशियाई तनाव के बीच अब भारत के अंदर एक नया वॉल्यूम जुड़ गया है। इजराइल‑ईरान संघर्ष के समय, बाराबंकी जिले के सिरौलीगौसपुर तहसील में स्थित किंतूर गांव अचानक चर्चा में आ गया है क्योंकि यहां के काजमी परिवार का दावा है कि इरान के पूर्व नेता आयतुल्लाह रुहल्लाह खुमैनी के पूर्वज,सैयद अहमद मूसवी हिंदी,किंतूर से संबंध रखते थे। इस दावे के कारण गांव में बड़े पैमाने पर मीडिया स्टाफ पहुंच गया है, और परिवार से मिलकर साक्षात्कार करने की कोशिश की जा रही है।
ईरान‑इजराइल तनाव खबरों की सुर्खियों में आने के साथ ही बाराबंकी से 40 किमी दूर स्थित किंतूर गांव मीडिया की नजरों में भी आ गया है। हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं के चैनल, अख़बार और न्यूज पोर्टलों की टीम यहां पहुंची, जिन्होंने काजमी परिवार विशेषकर परिवार के मुखिया सैयद निहाल अहमद काजमी से बातचीत की।
सैयद निहाल ने बताया कि “आयतुल्लाह रुहल्लाह मूसवी खुमैनी साहब के दादा, सैयद अहमद मूसवी हिंदी, कुँन्तूर के मूल निवासी थे। यह कनेक्शन 1830 के आसपास तब स्थापित हुआ था जब नवाबों के साथ उनकी इराक की जियारत और ड्राफ्ट यात्रा की सूचना लिखित व मौखिक जाती है, जिसके बाद उन्होंने इरान में स्थाई रूप से बसने का रास्ता चुना और ईरान के ख़ोमेइन शहर में बस गए।” यह तथाकथित नाता पूरे गांव और मीडिया में चर्चा का केंद्र बन गया है।
काजमी परिवार के अन्य सदस्य, खासकर सैयद आदिल काजमी, ने स्पष्ट किया कि “आयतुल्लाह अली खामेनी” का उनके गांव से कोई सीधा संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि “रुहल्लाह मूसवी खुमैनी के दादा, अहमद मूसवी हिंदी, का संबंध किंतूर से था। अली खामेनी साहब सिर्फ उनके शिष्य रहे हैं।” आदिल ने मीडिया को यह भी बताया कि “इरान अमन‑पसंद देश है” और “इजराइल ने गाज़ा व फिलिस्तीन में कई निर्दोषों को शहीद किया है”।
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किंतूर गांव की पहचान अब सिर्फ ईरान‑कनेक्शन से नहीं है, बल्कि इस गांव का धार्मिक इतिहास भी गौरवशाली है। यह स्थान शिवलिंग “कुन्तेश्वर धाम” के लिए जाना जाता है, जिसे महाभारत काल में माता कुंती द्वारा स्थापित बताया जाता है। यह ऐतिहासिक शिव मंदिर गांव के आध्यात्मिक माहौल को सांस्कृतिक पहचान देता है।
किंतूर गांव के ग्रामीणों के अनुसार, यह कनेक्शन कुछ पीढ़ियों में प्रचलित लोक कथाओं पर आधारित है। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर कोई आधिकारिक दस्तावेज इसकी पुष्टि नहीं करता। फिर भी, यह दावा स्थानीय लोगों में स्वाभाविक गौरव की भावना को जन्म देता है। कुछ ग्रामीणों ने मीडिया टीम से कहा कि “यह पहचान हमें इतिहास से जोड़ती है। अगर संबंध साबित हो जाए, तो दुनिया में हमारे गांव की प्रतिष्ठा अलग तरह से गूँजेगी।”
किंतूर गांव में यह मुद्दा स्थानीय राजनीति में भी विषय बन गया है। कई सामाजिक कार्यकर्ता इसे “गांव की पहचान” की तरह देख रहे हैं, जबकि बाकी लोग इसे “सियासी ज्वार” कहकर नजरअंदाज कर रहे हैं। एक स्थानीय शिक्षक ने कहा कि “हमें इतिहास से जोड़ना पसंद है, लेकिन बयानबाजी बहुत जरूरत से ज्यादा हो रही है।”
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स्थानीय पंचायतों और सांसदों से भी कुछ मीडिया प्रतिनिधि संपर्क बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि क्या इस दावे के राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
Updated on:
21 Jun 2025 11:18 pm
Published on:
21 Jun 2025 11:12 pm
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