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सहकारी समितियों के अटके चुनाव, फैसले और सुनवाई के काम भी ठप

locationभोपालPublished: Sep 12, 2021 11:06:16 am

Submitted by:

Hitendra Sharma

ट्रिब्यूनल अध्यक्ष, सदस्य और चुनाव प्राधिकारी के पद खाली

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भोपाल. प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव अटक गए हैं तो दूसरी ओर सुनवाई-फैसले के काम भी ठप हैं। चुनाव प्राधिकारी, ट्रिब्यूनल अध्यक्ष का पद खाली है। सरकार के स्तर पर इन पदों को भरने सेवानिवृत्त न्यायाधीश और आइएएस अधिकारी की तलाश छह माह से की जा रही है। सहकारिता चुनाव प्राधिकारी मनीष श्रीवास्तव के सेवानिवृत्त होने से प्रदेश करीब एक हजार से ज्यादा समितियों के चुनाव की प्रक्रिया 31 अगस्त से बीच में ही रोक दी गई।

प्रदेश में 50 हजार से ज्यादा सहकारी संस्थाएं हैं। इनमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य का चुनाव मप्र राज्य सहकारी समिति चुनाव प्राधिकरण कराता है। इस संस्था में चुनाव प्राधिकारी ही सर्वोच्च होता है। प्राधिकारी मनीष श्रीवास्तव 31 अगस्त को सेवानिवृत्त हो गए हैं| सरकार ने इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं की। इससे करीब एक हजार सहकारी संस्थाओं में चुनाव रोक दिए गए हैं। बताया जाता है प्रति वर्ष करीब 10 हजार समितियों का चुनाव होता है। एक समिति: में. पांच साल बाद चुनाव कराना. अनिवार्य है। इस बीच यदि किसी समिति में विवाद हो गया तो बोर्ड भंग हो जाता है, बीच में हीचुनावकराना जरूरी हो जाता है।

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चल रहे हैं 28 हजार केस: मप्र
सहकारिता ट्रिब्यूनल में वर्तमान समय पर 28 हजार केस चल रहे हैं। हर दिन : टवि्यूनल में पदस्थे-न्यायाधीश मो का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो गया है। तब से अपील और रिवीजन का काम बंद है। यहां सहकारिता से जुड़े विवादों की सुनवाई होती है। जिलों में पदस्थ संयुक्त रजिस्ट्रार और सहायक रजिस्ट्रारों के फैसलों की यहां अपील की जाती है।

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एक साल पहले इस्तीफा
ट्रिब्यूनल में एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं।एक सदस्य सहकारिता विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी और दूसरे सहकारिता से जुड़े वरिष्ठ वकील होते हैं। बताया जाता है कि एक सदस्य सहकारिता विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी गिरीश तांमड़े ने एक साल पहले इस्तीफा दे दिया था। वकील के रूप में ट्रिब्यूनल बनने के बाद से सता की नियुक्तिनही हे हो पाई है।

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चुनाव नहीं होने का यह असर
चुनाव नहीं होने से समितियों का संचालक मंडल भंग हो जाता है। समितियां कोई नया काम नहीं करा सकती हैं। पैसे का खर्च करने का भी किसी को दिए अधिकार नहीं होता। एक तरह से संस्था का पूरा काम बंद हो जाता है। अगर जरूरी होता है तो फिर समिति के सदस्य कलेक्ट्रेट में आवेदन देते हैं, कलेक्टर उन समितियों में प्रशासक नियुक्त करता है।

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