यह भी पढ़ें- डेल्टा प्लस वैरिएंट को लेकर स्वास्थ विभाग अलर्ट, वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी को भी देता है चकमा आईएमए का कहना है कि फरवरी 2021 तक ज्यादातर डाक्टरों को दोनों डोज लग गई थीं, लेकिन पांच माह बाद एंटीबाडी कम हो सकती है। मेरठ आईएमए ने तर्क दिया है कि पश्चिमी देशों की तरह यहां भी तीसरे डोज पर चर्चा उठी है। इस विषय पर आईसीएमआर ही गाइडलाइन जारी करेगा। पांच माह बाद कई डाक्टरों में एंटीबाडी की मात्रा घटती मिली। कई डाक्टरों में अप्रैल के मुकाबले जुलाई में एंटीबाडी कम रह गई। ऐसे में बूस्टर डोज लेने से उनमें बड़ी मात्र में एंटीबाडी बनेंगे और संक्रमण से सुरक्षा मिलेगी, इसके लिए विशेषज्ञों की राय जरूरी है।
कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने की तैयारी है। आईएमए इंदौर ने हेल्थ वर्करों को बूस्टर के रूप में तीसरी डोज की मांग उठाई है। वहीं, मेरठ आईएमए भी दो बार चिकित्सकों के साथ बैठक कर चुका है। डॉ. वीरोत्तम तोमर के अनुसार, कोरोना वायरस से संक्रमित हुए कई लोगों में प्रोटेक्टिव एंटीबाडी कम बनी है। वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी कुछ लोगों में ज्यादा एंटीबाडी नहीं बनी है। उन्होंने बताया कि फाइजर ने तीसरी डोज के लिए डब्ल्यूएचओ में आवेदन किया है।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय शोध में पता चला है कि डेल्टा वायरस के प्रति टीके कम कारगर हैं। ऐसे में वैक्सीन की नई डोज देकर एंटीबाडी बढ़ाई जा सकती है। इससे संक्रमण के दौरान कोविड वार्ड में ड्यूटी करने वाले डाक्टरों एवं हेल्थ वर्करों को सुरक्षा मिलेगी। आईएमए ने नेशनल विंग को इस बारे में पत्र लिखा है। ज्यादातर डाक्टरों को फरवरी में दूसरी डोज लगी थी। ऐसे में अक्टूबर तक एंटीबाडी घटी तो तीसरी डोज से ही बचाव होगा।