
Project Cheetah india: मध्यप्रदेश के कूनो में प्रोजेक्ट चीता के तीन साल पूरे। (फोटो: सोशल मीडिया)
Project Cheetah india: संजना कुमार@ patrika.com: 17 सितंबर 2022, यह तारीख भारत के वन्यजीव इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गई। वही दिन, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन के अवसर पर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए आठ चीते जंगल में छोड़कर Project Cheetah की शुरुआत की थी। आज भारत सरकार की यह महत्वाकांक्षी परियोजना तीन साल का सफर पूरा कर चुकी है। इन तीन सालों में भारत ने गौरव और चुनौतियों दोनों का अनुभव किया है। बहुत कुछ पाने के बीच खोया भी…फिर भी प्रोजेक्ट चीता को लेकर जिम्मेदारों का दावा है कि ' जितनी बड़ी सफलता भारत के प्रोजेक्ट चीता को मिली है, वो दुनिया के किसी देश को किसी भी एनिमल के इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट में नहीं मिली।'
1952 में भारत सरकार ने चीते को आधिकारिक तौर पर विलुप्त घोषित कर दिया था। इसके बाद कई दशकों तक कोशिशें चलीं कि दुनिया के इस ‘सबसे तेज धावक’ को भारतीय धरती पर फिर से बसाया जाए। जनवरी 2022 में Action Plan for Introduction of Cheetah in India सामने आया। इस प्लान में तय हुआ कि पांच साल में 50 तक चीते भारत लाए जाएंगे। इनके इंट्रोडक्शन के लिए मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के 'कूनो नेशनल पार्क' को चुना गया। क्योंकि यही वो जगह थी, जहां विशाल घास के मैदान, खुला जंगल और शिकार प्रजातियों की अच्छी उपलब्धता मानी जाती है। जहां चीता प्रोजेक्ट की शुरुआत करने एक्सपर्ट्स की मदद ली गई।
2022 में जब पीएम मोदी 72 वर्ष के हुए, उसी दिन उन्होंने विशेष हेलिकॉप्टर से अफ्रीका से भारत लाए गए चीता कैरियर बक्सों को खोलकर उन्हें कूनों में तैयार किए गए नर्म बाड़ों में छोड़ा। यह पल देश ही नहीं, पूरी दुनिया के वाइल्ड लाइफ लवर्स के लिए ऐतिहासिक पल बन गया। उस दिन पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था…
-'भारत की प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता आज नए युग में प्रवेश कर रही है। सात दशकों बाद चीते फिर भारत की धरती पर दौड़ेंगे।'
1- नई ज़िंदगी की शुरुआत: अब तक 20 चीते (8 नामीबिया से, 12 दक्षिण अफ्रीका से) लाए गए। कई बार जन्म भी हुआ। 2023 और 2024 में कुनो नेशनल पार्क में मादा चीतों ने शावकों को जन्म दिया। हालांकि इनमें से सभी शावक जीवित नहीं रह सके, लेकिन यह संकेत है कि भारत की धरती चीता प्रजनन के लिए सक्षम है।
2- पर्यावरण संरक्षण
चीते घास के मैदानों के प्रमुख शिकारी होते हैं। इनके आने से शिकार के आधार (चीतल, चिंकारा, नीलगाय आदि) की आबादी नियंत्रित रहती है। जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन बना रहता है और अन्य प्रजातियों के लिए भी अनुकूल माहौल तैयार हो रहा है।
3- ये प्रोजेक्ट दुनियाभर के लिए संदेश
इस प्रोजेक्ट के माध्यम से भारत ने दुनिया को दिखाया कि वह न सिर्फ बाघ, शेर और हाथी जैसे प्राणियों की रक्षा कर रहा है, बल्कि विलुप्त हो चुके वन्य जीवों की वापसी भी कर सकता है।
4-Project Cheetah अफ्रीका और एशिया के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग का उदाहरण भी बना।
1-वयस्क और चीता शावकों की मौतें और सेहत पर संकट
तीन साल में करीब 10 से ज्यादा चीते और कई शावक मर चुके हैं। इनमें से कुछ वयस्क चीतों की मौतें रेडियो कॉलर से होने वाले संक्रमण, कुछ शिकार और गर्मी की मार से होना सामने आया। इन मौतों से सवाल उठे कि क्या भारत का पर्यावरण वास्तव में चीते के लिए उपयुक्त है?
2-आजाद शिकारी के लिए सीमित क्षेत्र
कूनो नेशनल पार्क लगभग 750 वर्ग किलोमीटर का है। जबकि एक अकेला नर चीता ही 100–150 वर्ग किलोमीटर का इलाका चाहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इतने सीमित क्षेत्र में स्थायी जनसंख्या बनाए रखना मुश्किल होगा। इसके लिए फिर गांधी सागर अभयारण्य को चीतों के दूसरे घर के रूप में तैयार किया गया। वहीं चीता कॉरिडोर को लेकर भी प्लानिंग की जा रही है।
जैसे ही चीते आजादी से बड़े क्षेत्र में जाते हैं, उनका गांवों और वहां के लोगों से सामना होना। इससे पशुधन पर हमले, मानव जीवन को खतरा और यहां तक कि विवाद बढ़ने जैसी मुश्कलिों का हल खोजना होगा।
कुछ पर्यावरणविदों का मानना है कि भारत में अफ्रीकी चीते लाना 'कृत्रिम संरक्षण' है, जबकि असली एशियाई चीता (जो ईरान में हैं) की संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
कूनो के आसपास बसे गांवों में लोगों को जागरूक किया गया कि चीते मानव पर हमला नहीं करते। लोगों को आजीविका योजनाओं से जोड़ा गया ताकि, वे वन्यजीव संरक्षण के भागीदार बनें। फिलहाल उन्हें चीतों की मॉनीटरिंग से जोड़ा गया है। सबकुछ ठीक चलता रहा, तो भविष्य में टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा, तब स्थानीय लोगों को रोजगार भी उपलब्ध होंगे। यहां समय-समय पर स्थानीय बच्चों और युवाओं के बीच 'Save Cheetah, Save Forest' जैसी गतिविधियां भी संचालित की जाने लगी हैं।
1-नए लैंडस्केप की खोज
सिर्फ कूनो पर निर्भर न रहकर, प्रोजेक्ट को गांधीसागर अभयारण्य में भी शुरू किया गया है। आज तीन साल पूरे होने की खुशी में चीतों के दूसरे घर में चीतों की आबादी को बढ़ाने की पहल के तहत एक मादा चीता वहां पहले से छोड़े गए दो वयस्क मेल चीतों के बीच छोड़ी जाएगी। इसके साथ ही नौरादेही और अन्य जगहों पर भी चीते बसाने की योजना है।
2-वाइल्डलाइफ कॉरिडोर
चीता एक ऐसा प्राणी है, जिसे लंबी दूरी चाहिए, इसलिए जंगलों के बीच कॉरिडोर बनाने पर काम हो रहा है।
3-बेहतर स्वास्थ्य को लेकर कड़ी निगरानी
इसके तहत कॉलर तकनीक में सुधार, समय पर चिकित्सा सुविधा और तापमान-प्रबंधन जरूरी है। इन पर काम के तरीके सुधारे जा रहे हैं।
4-मेटा पॉपुलेशन मॉडल पर काम
दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर भारत में भी अलग-अलग छोटे समूह बनाकर एक बड़े नेटवर्क की योजना है। इस प्रोजेक्ट को मेटा पॉपुलेशन मॉडल नाम दिया गया है।
पीएम मोदी के जन्मदिन पर शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट उनकी पर्यावरणीय दृष्टि को मजबूत करता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत ने इसे अपनी Green Leadership के प्रतीक की तरह पेश किया है। वहीं विपक्ष के साथ ही वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट के साथ ही वाइल्ड लाइफ लवर्स ने इस परियोजना पर किए जाने वाले खर्च और चीतों की मौतों पर सवाल भी उठाए हैं।
कूनो अब अंतरराष्ट्रीय पहचान पा चुका है। लेकिन चूंकि ये प्रोजेक्ट फिलहाल शुरुआती स्तर पर ही है, ऐसे में टूरिस्ट को अभी लंबा इंतजार करना होगा। जैसे ही चीता सफारी जैसे प्रोजेक्ट शुरू होंगे, तो टूरिज्म बढ़ेगा। जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था भी सुधरेगी। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले वर्षों में कूनो में चीते दौड़ते दिखेंगे और टूरिस्ट इन्हें देखकर रोमांच से भरा महसूस करेंगे।
कहना होगा कि तीन साल में Project Cheetah को लेकर कूनो प्रशासन का दावा है कि इस प्रोजेक्ट ने यह साबित किया है कि भारत बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने का साहस रखता है। इसकी शुरुआत ऐसी सफलता के साथ हुई है कि जो दुनिया में किसी भी देश को उसके इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट में नहीं मिली। लेकिन प्रशासन ये भी मानता है कि चुनौतियां हर दिन उनके सामने हैं, जिनसे वे पल-पल जूझ रहे और समाधान खोजते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
चीतों की सक्सेस ब्रीडिंग, शावकों का जन्म इसका उदाहरण है। वहीं इस प्रोजेक्ट ने भारत को वैश्विक पटल पर एक और नई पहचान दी है और पर्यावरणीय लाभ भी। इनके बीच बड़ी चुनौतियां हैं चीतों की मौतें, सीमित क्षेत्र और वैज्ञानिक प्रबंधन की कमी, जिसे वक्त के साथ समझा और दूर किया जा रहा है। प्रशासन का कहना है कि अगर आने वाले सालों में इन चुनौतियों से सही तरह से संभाल लिया गया, तो वह दिन दूर नहीं जब कूनो के जंगलों में चीते सिर्फ जीवित ही नहीं, बल्कि फलते-फूलते भी दिखेंगे। प्रोजेक्ट चीता डायरेक्टर उत्तम कुमार से बातचीत के अंश…
Q. प्रोजेक्ट चीता को तीन साल पूरे हो गए हैं, इस दौरान सबसे बड़ी सफलता और सबसे बड़ी चुनौती आपको आपकी नजर में क्या रही?
A: सबसे बड़ी सफलता यह रही कि भारत में 70 साल बाद चीते फिर से लौटे और यहां उनका प्रजनन भी हुआ। इसने यह साबित कर दिया कि भारत का पारिस्थितिकीय तंत्र उन्हें अपनाने में सक्षम है। वहीं सबसे बड़ी चुनौती रही, सीमित क्षेत्र, उच्च तापमान और शुरुआती चरण में कुछ चीतों की मौतें। लेकिन हमने इनसे सबक लिया है और अब स्वास्थ्य निगरानी के साथ ही प्रबंधन में सुधार करते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
Q. चीतों की मौत और शावकों के न बच पाने पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। क्या भारत का पर्यावरण चीते के लिए वास्तव में अनुकूल मानाजाना चाहिए?
A: जी हां, भारत का पर्यावरण चीतों के लिए अनुकूल है। लेकिन शुरुआती कठिनाइयां हर पुनर्वास परियोजना में आती हैं। अफ्रीका में भी जब किसी नए क्षेत्र में चीते बसाए जाते हैं तो शुरुआती नुकसान होते हैं। यही नहीं टाइगर की ही बात करते हैं भारत के किसी कोने से लाकर जब टाइगर को भारत के ही दूसरे कोने पर ले जाते हैं, तब भी इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट को सफल होने में लंबा वक्त लगा। लेकिन हमारे यहां तीन साल में ही चीतों की संख्या 20 से बढ़कर 27 हो गई। यही प्रोजेक्ट की शुरुआत और शुरुआत में ही बड़ी सफलता है। कूनो का वातावरण, घास के मैदान और शिकार प्रजातियां उपयुक्त हैं। हमें बस बेहतर veterinary care और तापमान प्रबंधन पर और ध्यान दिया जा रहा है।
Q. कूनो नेशनल पार्क का क्षेत्र सीमित है, वहीं गांधी सागर अभयारण्य के बाद आगे किन अन्य अभयारण्यों या लैंडस्केप में चीते बसाने की योजना है?
A: सिर्फ कूनो पर निर्भर रहना जोखिम भरा होता। इसलिए गांधीसागर अभयारण्य को चीतों का दूसरा घर बनाया। इसके साथ ही नौरादेही और संभावित रूप से राजस्थान के कुछ इलाकों तक विस्तार करने की प्लानिंग भी है। आने वाले वर्षों में metapopulation model पर काम किया जाएगा, यानी अलग-अलग छोटे समूह मिलकर एक बड़ी और स्थायी चीता आबादी बसाने की दिशा में काम किया जाएगा।
Q. स्थानीय समुदाय को इस प्रोजेक्ट में कैसे जोड़ा गया है और क्या वे इसे अपनी आजीविका और भविष्य से जुड़ा हुआ मानते हैं?
A: स्थानीय समुदाय हमारी रीढ़ हैं। उन्हें समझाया गया है कि चीते मानव पर हमला नहीं करते। उन्हें बताया गया है कि सब कुछ ठीक रहा तो, जल्द ही पर्यटन, होमस्टे और आजीविका योजनाओं से उन्हें जोड़ा जाएगा। फिलहाल उन्हें चीता मॉनीटरिंग का काम सौंपा गया है। लोग अब इस प्रोजेक्ट को अपने लिए रोज़गार और सम्मान का साधन मानने की दिशा में भी सोचने लगे हैं। आसपास के कई गांवों में युवा बच्चों के साथ मिलकर 'Save Cheetah, Save Forest' जैसे अभियान चलाते रहते हैं।
Q. क्या तीन साल बाद हम यह कह सकते हैं कि भारत में चीते का पुनर्वास स्थायी रूप से सफल हो पाएगा, या अब भी इसे ‘प्रयोगात्मक परियोजना’ही माना जाना चाहिए?
A: हम इसे केवल प्रयोगात्मक नहीं कह सकते। तीन साल में कई अहम उपलब्धियां मिली हैं, चीतों की सफल ब्रीडिंग, सफल प्रजनन, नए इलाकों की पहचान और वैश्विक सहयोग। हां, यह सच है कि हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है। आने वाले 10 से 20 साल में अगर आबादी स्थिर बनी रही और बढ़ती रही, तो हम कह सकेंगे कि भारत में चीते स्थायी रूप से बस गए हैं और प्रोजेक्ट चीता सफल हो चुका है।
Updated on:
17 Sept 2025 03:35 pm
Published on:
17 Sept 2025 10:34 am
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