
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा ( Delhi Assembly Election ) की 70 सीटों के लिए 8 फरवरी को मतदान होगा। 11 फरवरी को चुनाव परिणाम आएंगे। 15 फरवरी तक नई सरकार का गठन होना है। फिलहाल चुनाव आयोग ( Election Commission ) द्वारा अधिसूचना जारी होेने के बाद से ठंड के इस मौसम में भी दिल्ली का सियासी तापमान चरम पर है। ऐसे में लोगों के लिए यह जानना जरूरी हो जाता है अभी तक कौन-कौन और किस पार्टी के नेता दिल्ली की गद्दी पर बैठे। तो आईए हम आपको बताते हैं दिल्ली के अब तक के मुख्यम़ंत्रियों के बारे में:
चौधरी ब्रह्म प्रकाश
कांग्रेस के कद्दावर नेता चौधरी ब्रह्म प्रकाश ( Chaudhary Brahm Prakash ) जन्म 16 जून, 1918 हो हुआ था। 17 मार्च 1952 से लेकर 12 फरवरी 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री के रूप मे कांग्रेस नेता चौधरी ब्रहम प्रकाश ने 17 मार्च, 1952 को शपथ ली थी। उनका कार्यकाल 2 साल 332 दिन का रहा। कांग्रेस से बढ़ती दूरियों के चलते ब्रहम प्रकाश ने बाद में जनसंघ का दामन थाम लिया था।
बता दें कि दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद देशबंधु गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा हुई थी। लेकिन प्लेन क्रैश में उनकी आकस्मिक मृत्यु के बाद चौधरी ब्रह्म प्रकाश को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। चौधरी ब्रह्म प्रकाश पश्चिमोत्तर दिल्ली के शकूरपुर के रहने वाले थे।
गुरुमुख निहाल सिंह
12 फरवरी, 1955 को कांग्रेस के ही गुरूमुख निहाल ( Gurumukh Nihal )ने दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन वो दो साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए और दरियागंज विधायक गुरुमुख निहाल 1 वर्ष 263 दिन तक मुख्यमंत्री रहे। 1 नवंबर, 1956 को दिल्ली विधानसभा को भंग कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। उसके बाद 36 सालों तक दिल्ली की जनता विधानसभा चुनाव से वंचित रही। जीएन सिंह कांग्रेस के कद्दावर नेता थे। इससे पहले वह साल 1952 में दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके थे।
14 मार्च, 1895 को सरदार गुरूमुख निहाल सिंह का जन्म अविभाजित पंजाब में हुआ था। वह लंदन विश्वविद्यालय से बीएससी (अर्थशास्त्र ) की उपाधि प्राप्त की थी। साल 1920 में वो काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर चुने गए थे।
मदन लाला खुराना
36 साल बाद संविधान में कुछ संशोधन के बाद साल 1993 में दिल्ली के तीसरे विधानसभा चुनाव हुए। 2 दिसंबर, 1993 में पहली बार दिल्ली की सत्ता पर बीजेपी काबिज हुई। मोतीनगर से विधायक बने मदनलाल खुराना ( Madan Lal Khurana ) ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। खुराना का कार्यकाल 2 साल 66 दिन का रहा। वह 2 दिसंबर, 1993 से लेकर 26 फरवरी, 1996 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे खुराना साल 1965 से लेकर 1967 तक जनसंघ के महासचिव रहे थे।
कार्यकर्ताओं के बीच खुराना काफी लोकप्रिय चेहरा थे। खुराना का जन्म फैसलाबाद में हुआ था। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद वह दिल्ली के कीर्ति नगर शरणार्थी शिविर में रहे। दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन की थी।
साहिब सिंह वर्मा
राजनीतिक घटनाक्रम के चलते शालीमार बाग से तत्कालीन बीजेपी विधायक साहिब सिंह वर्मा ( Sahib Singh Verma ) 26 फरवरी, 1996 को दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन साहिब सिंह वर्मा का कार्यकाल भी 2 साल 288 दिन का रहा। बीेपी विधायक वर्मा 26 फरवरी, 1996 से लेकर 12 अक्तूबर, 1988 दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। साहिब सिंह वर्मा बीजेपी के दूसरे नेता थे जो कि दिल्ली के मुख्यमंत्री बनें। इसके अलावा वह सासंद भी रह चुके हैं।
15 मार्च, 1943 को जन्में साहिब सिंह वर्मा पार्टी में कई पदों पर काम किया। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में श्रम मंत्री भी थे। साहिब सिंह का जन्म बाहरी दिल्ली के मुंडका गांव में एक किसान परिवार में हुआ था।
सुषमा स्वराज
दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में सुषमा स्वराज ( Sushma Swaraj ) का पर्दापण हुआ। 12 अक्टूबर, 1998 से 3 दिसंबर, 1998 तक सुषमा स्वराज केवल 52 दिनों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं।
सुषमा स्वराज ने भारतीय राजनीति में महिला शख्सियत की ऐसी तस्वीर पेश की जो बेमिसाल है। राजनीति में सुषमा स्वराज ने प्रखर वक्ता से विदेश मंत्री तक का शानदार सफर तय किया। सुषमा स्वराज ने केवल 25 साल की उम्र में हरियाणा की अंबाला सीट से पहला चुनाव लड़ा था और वो सबसे कम उम्र में विधायक बनीं। इसके साथ ही वो देवीलाल सरकार में मंत्री भी बनीं। सुषमा स्वराज 1998 में 52 दिनों के लिए दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
उनका जन्म 14 फरवरी, 1952 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था। इसके बाद वह पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री ली थी। सुषमा स्वराज चार साल तक जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहीं।
शीला दीक्षित
3 दिसंबर, 1998 को राष्ट्रीय कांग्रेस से शीला दीक्षित ( Shila Dikshit ) दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। मूलत उत्तर प्रदेश की राजनीति से उभरीं शीला दीक्षित ने लगातार 15 साल 25 दिनों तक सूबे की मुखिया के रूप में दिल्ली की जनता के दिलों पर राज किया।
शीला दीक्षित साल 1984 से 1989 तक उत्तर प्रदेश के कन्नौज से लोकसभा सदस्य रहीं। उन्होंने 1986 से 1989 के दौरान केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया और दो विभागों राज्यमंत्री पीएमओ और राज्यमंत्री संसदीय कार्य मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली थी।
शीला दीक्षित वर्ष 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने के बाद वर्ष 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया। शीला दीक्षित ने राजधानी में सबसे लंबे समय तक सरकार चलाई। वह तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं।
पंजाब के कपूरथला में जन्मीं शीला दीक्षित की पढ़ाई जीसस एंड मेरी कॉन्वेंट स्कूल में हुई थी। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की थी। उनका विवाह उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (आईएएस) विनोद दीक्षित से हुआ था।
विनोद कांग्रेस के बड़े नेता और बंगाल के पूर्व राज्यपाल उमाशंकर दीक्षित के बेटे थे। राजनीति में आने से पहले शीला दीक्षित कई संगठनों से जुड़ी रहीं और उन्होंने कामकाजी महिलाओं के लिए दिल्ली में दो हॉस्टल भी बनवाए थे।
अरविंद केजरीवाल
28 दिसंबर, 2013 को दिल्ली की राजनीति में सबको चौंकाते हुए नौसिखिया समझी जा रही आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ( Arvind Kejriwal ) कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। लेकिन सिर्फ 49 दिन बाद ही दोनों पार्टियों में पड़ी फूट के बाद 14 फरवरी 2014 को केजरीवाल सरकार गिर गई। इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। पूरे एक साल यानि 13 फरवरी, 2015 तक लागू रहा। ठीक एक साल बाद यानि 14 फरवरी, 2015 को पूर्ण ऐतिहासिक बहुमत के साथ अरविंद केजरीवाल ने वापसी की और शिला दीक्षित के बाद दूसरी बार दिल्ली के पूर्णकालिक मुख्यमंत्री बने।
हरियाणा के हिसार जन्में अरविंद केजरीवाल साल 1989 में आईआईटी खड़गपुर से यांत्रिक इंजीनियरिंग में बीटेक की डीग्री हासिल की। 1992 में वह भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में आ गए और उन्हें दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्ति मिली।
बता दें कि दिल्ली की राजनीति में आई नई नवेली पार्टी आम आदमी पार्टी का गठन लोकपाल आंदोलन के बाद हुआ। आम आदमी पार्टी ने अपना पहला चुनाव साल 2013 में लड़ा। पहले ही चुनाव में आप ने 28 सीटें जीतकर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी।
Updated on:
09 Jan 2020 12:40 pm
Published on:
09 Jan 2020 08:04 am
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