scriptPM मोदी के ‘न्यू इंडिया’ पर ना पड़ जाए ‘इंडिया शाइनिंग’ का साया | Will 2004 India Shining impact on 2019 PM Modi's New India campaign? | Patrika News

PM मोदी के ‘न्यू इंडिया’ पर ना पड़ जाए ‘इंडिया शाइनिंग’ का साया

locationनई दिल्लीPublished: May 22, 2019 08:26:31 am

सियासी पंडितों ने जताया 2004 लोकसभा चुनाव की पुनरावृत्ति का अंदेशा
इंडिया शाइनिंग कैंपेन चलानेे के बावजूद दोबारा जीतने से रह गए थे वाजपेयी
इस बार पीएम मोदी न्यू इंडिया कैंपेन के जरिये कर रहे हैं जीतने की कोशिश

Will 2004 repeat in 2019 for BJP

PM मोदी के ‘न्यू इंडिया’ पर ना पड़ जाए ‘शाइनिंग इंडिया’ का साया

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2014 में मिली बंपर जीत से उत्साहित भारतीय जनता पार्टी इस आम चुनाव में भी अभी तक फूली नहीं समा रही है। 10 में से 9 एग्जिट पोल्स में एनडीए को 300 से ज्यादा सीटें मिलने की संभावना ने भाजपा को जीत के लिए आश्वस्त कर दिया है। हालांकि ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ के लिए PM के ‘न्यू इंडिया’ कैंपेन पर कहीं ‘इंडिया शाइनिंग’ का साया ना पड़ जाए, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभी असल नतीजे नहीं आए हैं।
दरअसल भाजपा ने इस बार का चुनाव ‘न्यू इंडिया’ के नाम पर लड़ा। पीएम मोदी के न्यू इंडिया विजन 2022 का जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया गया। 2014 में भाजपा ने ‘अबकी बार मोदी सरकार’ के नाम पर चुनाव लड़ा था और पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। इस बार पीएम मोदी को फिर से लाने और नए भारत के उनके सपने को साकार करने के नाम पर लोगों से वोट मांगे गए।
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‘न्यू इंडिया’ कैंपेन के अंतर्गत तमाम विकास योजनाओं, भविष्य की सोच और सशक्त भारत को पेश किया गया। भाजपा के अध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार अमित शाह के नेतृत्व में बूथ लेवल तक माइक्रो मैनेजमेंट किया गया और फिर से एनडीए की जीत सुनिश्चित करने का दावा किया गया। पार्टी के नेताओं ने बहुमत के साथ फिर मोदी सरकार आने का दावा किया और अब एग्जिट पोल्स के नतीजे भी भाजपा के ही समर्थन में आए।
PM मोदी का 'न्यू इंडिया' (File Photo)
हकीकत यह है कि एग्जिट पोल्स, अंतिम नतीजे नहीं हैं। 23 मई को मतगणना के बाद लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे घोषित किए जाने हैं। पूरी तस्वीर उसी वक्त स्पष्ट होगी। इस लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने क्या सोचा था, देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं और लोकतंत्र किस ओर जा रहा है, 23 मई हर बात का जवाब देगा।
सियासी विश्लेषकों का मानना है कि 23 मई को भाजपा के सामने डेढ़ दशक पुराना अध्याय फिर से खुल सकता है। यानी वर्ष 2004 का वो दौर जब भाजपा के ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान की हवा निकल गई थी और ‘फील गुड फैक्टर’ बैड साबित हुआ था। जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त भाजपा सरकार के बड़े नेताओं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को यह विश्वास दिला दिया था कि हवा उनकी ओर है। इसके चलते सितंबर 2004 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव समयपूर्व अप्रैल से मई में करवा दिए गए।
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उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी के नेेतृत्व में मौजूद केंद्र सरकार को कतई आभास नहीं था कि जनता सत्ताधारी पार्टी को बाहर करने का मन बना चुकी है। हालांकि नतीजे आए तो पता चला कि त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति थी। जनता ने किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं दिया था। जहां सत्ताधारी भाजपा को 138 सीटों से ही संतोष करना पड़ा, विपक्षी पार्टी कांग्रेस को 145 सीटें मिलीं।
 'शाइनिंग इंडिया' कैंपेन (फाइल फोटो)
मौके की नजाकत भांपते हुए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, वाम दल, सर्वाधिक सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस के साथ हो लिए। तब पहली बार कांग्रेस ने केंद्र में गठबंधन सरकार बनाई। इसका नाम संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानी UPA) रखा गया। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में इस गठबंधन ने केंद्र में सरकार बनाई। हालांकि सोनिया गांधी ने खुद को पीएम बनाने की दौड़ से अलग करते हुए डॉ. मनमोहन सिंह का नाम आगे बढ़ाया और सभी पार्टियों ने इस पर सहमति जताई।
जब उस दौर में पूरी हवा वाजपेयी के पक्ष में थी। देश की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही थी। विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में देश बहुत आगेे था और इसमें 10000 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा की रकम मौजूद थी। सर्विस सेक्टर में युवाओं को ढेरों रोजगार मिले थे। देश के युवाओं को इंडिया शाइनिंग से प्रभावित बताया जा रहा था। बावजूद इसके सत्ताधारी पार्टी जीत हासिल करने में नाकामयाब रही।
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14वें लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के खिलाफ अपनाए गए भाजपा के पैंतरे भी काम नहीं आए। फिर चाहे वो सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा हो या फिर मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नागरिकता का। विपक्ष पर जमकर आरोप लगाने के साथ ही भाजपा ने अपनी योजनाओं और भविष्य की रूपरेखा का योजनाबद्ध ढंग से लोगों के सामने पेश किया और फेल साबित हुई।
अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो)
अगर बात करें उस वक्त के एग्जिट पोल की तो एनडीटीवी-एसी निलसन ने अनुमान जताया था कि एनडीए को 230-250, कांग्रेस को 190-205 और अन्य को 100-120 सीटें मिलेंगी। जबकि आजतक ओआरजी-मार्ग के एग्जिट पोल में एनडीए को 248, कांग्रेस को 190 और अन्य को 105 सीटें, तो स्टार न्यूज सी-वोटर सर्वे में एनडीए को 263-275, कांग्रेस को 174-186 और अन्य को 86-98 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी। हालांकि अंतिम नतीजे आने पर यूपीए को 208, एनडीए को 181, वाम मोर्चे को 59 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने 145 सीटें जीती थी जबकि सत्ताधारी भाजपा को 138 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
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अब ऐसे में यह कहा जा एग्जिट पोल्स को लेकर खुशियां मनाने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन असली नतीजे ही संशय के बादल साफ करेंगे कि क्या मोदी का ‘न्यू इंडिया’ अटल बिहारी वाजपेयी के ‘इंडिया शाइनिंग’ कैंपेन से बेहतर है या उसके ही जैसा। यानी 23 मई को ही तय होगा कि असल में कांग्रेस को इस चुनाव में फील गुड फैक्टर का मजा मिला या फिर भाजपा को।
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