]China Nuclear Weapons Expansion: दुनिया में अमेरिका, रूस ( Russia)और उत्तर कोरिया की बढ़ती ताकत, इजराइल की गाजा, फिलिस्तीन व ईरान के साथ और रूस की यूक्रेन से जंग के बीच चीन ने भी अपने परमाणु जखीरे में इजाफा कर लिया है। अब चीन के पास अनुमानित रूप से 600 से अधिक परमाणु हथियार (Nuclear Warheads) हैं। क्यों कि चीन का परमाणु शस्त्रागार सन 2030 तक 1,000 वारहेड्स की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में प्रकाशित पेंटागन ( Pentagon)व अन्य अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार, चीन अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को एक खतरनाक गति से बढ़ा रहा है। जहां अमेरिका और रूस दशकों से परमाणु महाशक्तियाँ रहे हैं, अब चीन भी उसी लीग में प्रवेश करने की ओर बढ़ रहा है। चीन ने पिछले पाँच सालों में 320 ठोस ईंधन वाले आईसीबीएम साइलो बनाए हैं, साथ ही DF‑5 मिसाइलों के लिए कई और साइलो तैयार किए हैं । इससे चीन की परमाणु शक्ति में अमेरिका ( America) और रूस के बराबर क्षमता आ सकती है।
रिपोटर्स के अनुसार चीन ने अपनी दोहरी-सक्षम DF-26 मध्यम-दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल सेना का और भी विस्तार किया है, जिसने परमाणु भूमिका में मध्यम-दूरी की DF-21 को पूरी तरह से बदल दिया है और इसके अलावा, चीन ने हाल ही में अपने कुछ बमवर्षकों को एक ऑपरेशनल परमाणु मिशन सौंपा है, जिसमें एक हवाई-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसमें परमाणु क्षमता हो सकती है। कुल मिलाकर, चीन का परमाणु विस्तार नौ परमाणु-सशस्त्र राज्यों के सबसे बड़े और सबसे तेज़ आधुनिकीकरण अभियानों में से एक है।
रिपोटर्स के अनुसार हम अपने चीनी परमाणु बल अनुमानों में कुछ अन्य परमाणु शक्ति संपन्न देशों पाकिस्तान, इज़राइल और उत्तर कोरिया की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक भरोसेमंद माने जाते हैं। हालाँकि, चीनी परमाणु बलों के बारे में हमारे अनुमान अधिक परमाणु पारदर्शिता वाले देशों अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और रूस की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक अनिश्चित हैं।
ध्यान रहे कि चीन ने मई 2024 में ठोस ईंधन अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM) के लिए अपने तीन नए मिसाइल साइलो क्षेत्रों को विकसित करना जारी रखा है, अपने तरल ईंधन DF-5 ICBM के लिए नए साइलो का निर्माण जारी रखा है, ICBM और उन्नत रणनीतिक वितरण प्रणालियों के नए वेरिएंट विकसित कर रहा है, और इन प्रणालियों के तैनात होने के बाद संभवतः इनके लिए अतिरिक्त वारहेड का उत्पादन भी किया है।
जानकारी के मुताबिक चीन के पास लगभग 14 टन उच्च समृद्ध यूरेनियम (HEU) और 2.9 टन प्लूटोनियम मौजूद है, जो आने वाले वर्षों में अतिरिक्त वारहेड निर्माण में सहायक हो सकता है । गांसु प्रांत में बड़े प्लूटोनियम पुनःसंसाधन संयंत्र भी बन रहे हैं ।
पेंटागन "ऑपरेशनल" वारहेड्स का आंकड़ा प्रस्तुत करता है, लेकिन अधिककतर चीनी वारहेड अभी स्टोरेज में रखे गए हैं, वास्तविक तैनाती की तुलना में ये अलर्ट स्तर पर नहीं होते ।
चीन का भंडार कितना और कितनी तेजी से बढ़ सकता है, यह उसके प्लूटोनियम, अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम (HEU) और ट्रिटियम के भंडार पर निर्भर करेगा। चीन के पास लगभग 14 टन (मीट्रिक टन) HEU और लगभग 2.9 टन अलग किए गए प्लूटोनियम का भंडार है या परमाणु हथियारों के लिए उपलब्ध है । हालांकि, 2035 तक 1,000 से अधिक अतिरिक्त वॉरहेड का उत्पादन करने के लिए अतिरिक्त विखंडनीय सामग्री उत्पादन की आवश्यकता होगी और पेंटागन ने 2024 में इस आकलन की पुष्टि करते हुए कहा है कि चीन को "अपने बढ़ते परमाणु भंडार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शायद इस दशक में नए प्लूटोनियम का उत्पादन शुरू करना होगा।"
चीन ने अपने खर्च किए गए परमाणु ईंधन से प्लूटोनियम निकालने के लिए गांसु प्रांत के जिंटा में चाइना नेशनल न्यूक्लियर कॉरपोरेशन (CNNC) गांसु न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी इंडस्ट्रियल पार्क में अपने पहले नागरिक "प्रदर्शन" पुनर्संसाधन संयंत्र का निर्माण पूरा कर लिया है, जिसके 2025 में चालू होने की उम्मीद है (झांग 2024)। चीन ने उसी स्थान पर खर्च किए गए लाइट-वाटर रिएक्टर ईंधन को पुनर्संसाधित करने के लिए एक दूसरे संयंत्र का निर्माण शुरू कर दिया है, जिसके दशक के अंत से पहले चालू होने की उम्मीद है।
चीन ने पिछले 3 वर्षों में 320 से अधिक ठोस ईंधन आईसीबीएम साइलो (Intercontinental Ballistic Missile Silos) तैयार किए हैं। यह साइलो प्रणाली अमेरिका की तरह "launch on warning" नीति की तैयारी दर्शाती है, यानि यदि दुश्मन हमला करता है, तो चीन जवाबी हमला तुरंत कर सकेगा। इसके साथ ही DF-5 जैसे तरल ईंधन मिसाइलों के लिए भी अतिरिक्त साइलो निर्माण किया गया है। इस विस्तार से यह स्पष्ट होता है कि चीन का उद्देश्य सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि रणनीतिक दबदबा बनाना है।
कुल मिलाकर, इन खोजों से पता चलता है कि चीन युमेन, हामी और युलिन के तीन क्षेत्रों में ठोस ईंधन वाले ICBM के लिए 320 नए साइलो का निर्माण कर रहा है, जिसमें जिलनताई साइट पर लगभग 15 प्रशिक्षण साइलो शामिल नहीं हैं। इसके अलावा, चीन तरल ईंधन वाले DF-5 ICBM के लिए साइलो की संख्या को उन्नत और विस्तारित कर रहा है और प्रति ब्रिगेड साइलो की संख्या बढ़ा रहा है (अमेरिकी रक्षा विभाग 2023, 107)। इसमें कम से कम दो मौजूदा DF-5 ब्रिगेड के साइलो की संख्या को छह से बढ़ाकर 12 करना और 12 साइलो वाली दो नई ब्रिगेड को जोड़ना शामिल है। वर्तमान अवलोकनों के आधार पर, एक बार पूरा होने पर, यह परियोजना DF-5 साइलो की संख्या 18 से बढ़ाकर 48 कर देगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के पास इस समय लगभग 14 टन उच्च समृद्ध यूरेनियम (HEU) और 2.9 टन प्लूटोनियम है। इसके अतिरिक्त, गांसु प्रांत और अन्य स्थानों में तेज़ ब्रीडर रिएक्टरों और प्लूटोनियम पुनःसंसाधन संयंत्र का निर्माण हो रहा है, जिससे भविष्य में वारहेड उत्पादन की रफ्तार और बढ़ सकती है।
चीन अब अपने परमाणु त्रिकोण (nuclear triad) को मज़बूत कर रहा है, जो कि तीनों प्लेटफॉर्म से हमले की क्षमता देता है — ज़मीन से लॉन्च होने वाली ICBMs,पनडुब्बी आधारित SLBMs और हवाई लॉन्च मिसाइल (ALBMs)। इससे चीन की परमाणु रणनीति पूरी तरह से आधुनिक और बहुस्तरीय हो रही है, जो किसी भी स्थिति में जवाबी हमला करने में सक्षम होगी।
अमेरिका, रूस और भारत जैसे परमाणु देशों की तुलना में चीन की परमाणु रणनीति सबसे कम पारदर्शी है। वह अपने मिसाइल कार्यक्रमों और परीक्षणों की जानकारी सार्वजनिक नहीं करता, जिससे वैश्विक स्तर पर चिंता और संदेह की स्थिति बनी रहती है। SIPRI के मुताबिक, पारदर्शिता की कमी और त्वरित विस्तार चीन को "अस्थिर परमाणु शक्ति" के रूप में स्थापित कर सकती है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि "launch-on-warning" नीति के कारण गलती से परमाणु युद्ध छिड़ने की आशंका बढ़ सकती है। यदि किसी देश की सैटेलाइट या रडार प्रणाली किसी गलत अलर्ट को 'असली हमला' समझ ले, तो जवाबी हमला स्वचालित रूप से हो सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1983 में सामने आया था, जब सोवियत यूनियन के एक अधिकारी ने एक संभावित अलर्ट को झूठा माना और युद्ध टाल गया। ऐसी गलतफहमी चीन जैसे नए लॉन्च-ऑन-वॉर्निंग देश में और खतरनाक हो सकती है।
जहां अमेरिका और रूस के पास अभी भी 5,000 से अधिक परमाणु वारहेड्स हैं, वहीं चीन तेज़ी से इस अंतर को कम कर रहा है। भारत के पास करीब 160 वारहेड्स हैं, और वह भी सतर्कता के साथ चीन की गतिविधियों की निगरानी कर रहा है। भारत ने "नो फर्स्ट यूज़" नीति अपनाई है, लेकिन चीन की पारदर्शिता की कमी भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती बन चुकी है।
उधर स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, चीन और पाकिस्तान के पास भारत से ज़्यादा परमाणु हथियार हैं।SIPRI ईयरबुक 2020 के अनुसार, भारत के पास 150 परमाणु हथियार हैं, जबकि चीन और पाकिस्तान के पास क्रमशः 320 और 160 हथियार हैं।
पेंटागन की रिपोर्ट के अनुसार, यदि चीन इसी दर से अपना परमाणु भंडार बढ़ाता रहा, तो 2030 तक उसके पास 1,000 से अधिक परमाणु हथियार हो सकते हैं, जो उसे अमेरिका और रूस के बराबर ला देगा। यह बढ़ती शक्ति सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि राजनयिक और रणनीतिक संतुलन को भी प्रभावित करेगी। इसलिए, वैश्विक स्तर पर अधिक पारदर्शिता, संवाद और नियंत्रण व्यवस्था को मज़बूत करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। बहरहाल चीन का परमाणु विस्तार सबसे तेज़ दर से हो रहा है, एक ऐसा बदलाव जो जीवन का संतुलन बिगाड़ सकता है। 2030 तक 1,000 से अधिक वारहेड्स तक पहुंचने की योजना से बने संतुलन पर अब धीयान देना ज़रूरी है।
Published on:
22 Jun 2025 02:33 pm