
Maharashtra Election: विलेपार्ले विधानसभा में जीत बरकरार रखने की लड़ाई ?
रोहित के. तिवारी
मुंबई. यह सीट उत्तर मध्य मुंबई लोकसभा की विलेपार्ले एक ऐसा विधानसभा है, जहां आजादी के बाद से भाजपा ने 2014 में पहली बार विजय पताका फहराया था, जिसके उपरांत इस बार फिर इतिहास दोहराने के प्रयास किया जा रहा है तो वहीं बड़े मार्जिन के साथ जीतना एक बड़ी चुनौती है। विले पार्ले विधानसभा का नाम यहां के दो मंदिरों के नाम पर पड़ा। एक मंदिर विर्लेश्वर है तो दूसरा पार्लेश्वर। यहां के कुल मतदाता लगभग 2 लाख 86 हजार 158 हैं। वहीं 2014 में यहां कुल 1 लाख 51 हजार 613 मतदान पड़े थे, जो कुल मतदाता का 52.98 प्रतिशत था।
बढ़ रहे नशे के सौदागर...
वैसे तो विले पार्ले काफी रिहायशी इलाका माना जाता है, लेकिन इसके बावजूद यहां कई सारी परेशानियां लोगों को अभी भी अत्यधिक परेशान करती हैं, जिसमें सबसे बड़ी प्रॉब्लम एयरपोर्ट के बगल होने के चलते यहां ट्रैफिक का जाम होना। शौचालय का प्रॉब्लम और क्राइम रेस्क्यू ज्यादा होने की वजह से आए दिन यहां नशे के सौदागर बढ़ रहे हैं। साथ ही पिछले 10 साल से कई एसआरए प्रोजेक्ट अधर में लटके हुए हैं, जिसके चलते लोगों को लोहे के एंगल और गटर पटिया के बनाए गए घरों में ट्रांजिट के रूप रहना पड़ रहा है। इनमें लेलेवाड़ी, जेबी नगर व अन्य मुख्य स्थान हैं।
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निर्णायक साबित होते हैं हिंदी भाषी...
हालांकि यह गुजराती, मराठी बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है, जिसमें जहां हिंदी भाषी मतदाता निर्णायक साबित होते हैं। विले पार्ले विधानसभा 167 सीट से इस बार कुल 6 प्रत्याशी मैदान में हैं। यहां भाजपा के मौजूदा विधायक पराग अलवानी को एक बार फिर से उम्मीदवारी मिली है, वहीं कांग्रेस से जयंती जिवभाई सिरोया मैदान में हैं। तो मनसे से जुईल ओमकार शेंडे को इस विधानसभा क्षेत्र से उतारा गया है।
पहली जीत को बरकरार रखने की तैयारी...
साल 2014 में पहली बार विले पार्ले सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की। इससे पहले इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा था। बीजेपी के पराग अलवानी को 74 हजार 270 वोट मिले थे, जबकि शिवसेना के शशिकांत गोविंद पाटकर को 41 हजार 835 वोट मिले थे। जीत का अंतर 32 हजार 435 वोटों का था। 2014 में मतदाताओं की कुल संख्या 151612 थी, जिनमें से 151644 पुरुष एवं 134514 महिलाएं थीं।
विलेपार्ले का चुनावी इतिहास...
इस सीट पर आजादी के बाद सन 1967 से 1980 तक कांग्रेस के प्राणलाल बोरा एवं कांता बेन शाह विधायक रही। सन 1985 में हंस भूकर भूकर विधायक रहे 1987 से 1990 रमेश प्रभु निर्दलीय विधायक थे तो वहीं 1995 से 1999 गुरुनाथ देसाई शिवसेना से थे। 2004 में कांग्रेस लंबे समय के बाद वापसी करते हुए अशोक जाधव कांग्रेस के विधायक तो 2009 में कांग्रेस के ही कृष्णा हेगड़े शिवसेना के विनायक भाऊराव राउत को करीब 2 हजार मतों से हरा यहां से विजई हुए थे। 2014 के मोदी लहर में पहली बार भाजपा ने विले पर्ले विधानसभा सीट पर बहुमत प्राप्त किया। तो अब 2019 के 21 अक्टूबर को बड़े मतों के अंतराल से विजय के सिलसिले को जारी रखने के लिए एड़ी से चोटी तक का दम लगाया जा रहा है।
Updated on:
20 Oct 2019 12:08 am
Published on:
20 Oct 2019 12:01 am
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