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राहुल गांधी के इस्तीफे पर अडिग रहने से कांग्रेस में टूट के आसार, मोइली बोले- वरिष्‍ठ नेता संभालें कमान

उत्‍तर से लेकर दक्षिण तक पार्टी में आंतरिक संघर्ष की स्थिति इस्तीफे को लेकर अनिश्चितता की स्थिति राहुल गांधी को खत्म करनी चाहिए राहुल इस्तीफा वापस न लेते हैं तो वर्किंग प्रेजिडेंट नियुक्त किया जा सकता है

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राहुल गांधी के इस्तीफे पर अडिग रहने से कांग्रेस में टूट के आसार, मोइली बोले- वरिष्‍ठ नेता संभालें कमान

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में शिकस्त के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे को लेकर पााार्टी अब भी पसोपेश की स्थिति में है। इसके चलते पार्टी की स्टेट यूनिट्स में आपसी कलह की स्थिति पैदा हो गई है। केंद्रीय नेतृत्व की शिथिलता की वजह से आपसी रार बढ़ती ही जा रही हैं। पंजाब से लेकर कर्नाटक तक पार्टी को आंतरिक संघर्ष का सामना करना पड़ा रहा है। यही नहीं सीनियर नेताओं को चिंता है कि यदि राहुल गांधी अपना इस्तीफा वापस नहीं लेते हैं तो स्थिति और विकट हो सकती है।

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कांग्रेस के पास है दो विकल्‍प

फिलहाल, लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से राहुल गांधी के इस्‍तीफे पर अभी तक अडिग रहने से पार्टी में इस बात को लेकर भी चर्चा है कि वर्किंग प्रेजिडेंट या फिर नेताओं की समिति को काम के लिए नियुक्त किया जा सकता है। बता दें कि 17 जून से संसद का सत्र भी शुरू हो रहा है। कांग्रेस को उससे पहले ही तय करना होगा कि लोकसभा में पार्टी के नेता के तौर पर प्रतिनिधित्व कौन करेगा।

इंदिरा की तरह मजबूती से काम करें राहुल

कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि राहुल गांधी को अपने इस्तीफे को लेकर अनिश्चितता की स्थिति खत्म करनी चाहिए। उन्हें पार्टी की कमान संभालनी चाहिए। राज्यों की यूनिटों के विवादों के निपटारे करते हुए संगठन की दिशा तय करनी चाहिए। सीनियर नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी को मजबूती से अध्यक्ष पद पर काम करना चाहिए। ऐसा सभंव न होने पर पार्टी को सही हाथों में सौंपने के बाद ही राहुल गांधी पद से इस्‍तीफा दें ।

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मीडिया से बातचीत में मोइली ने कहा कि उन्हें फैसला लेना चाहिए। यह पार्टी के अध्यक्ष पद को छोड़ने का समय नहीं है। राहुल गांधी को याद रखना चाहिए कि इंदिरा को भी 1977 में ऐसे वक्त का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला लिया।

अंदरूनी खींचतान से बढ़ी मुश्किलें

बता दें कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 542 में से महज 52 सीटें ही मिली हैं। यह आंकड़ा 2014 के मुकाबले सिर्फ 8 सीट ही अधिक है। राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे अहम राज्यों की यूनिटों में बुरी हार की वजह से ये स्थिति उत्‍पन्‍न हुई है। अगर सीधा मुकाबला हो तो कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ सकती है। लेकिन अंदरूनी खींचतान ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

वर्तमान में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी समस्‍या राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र, हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक की प्रदेश इकाईयों साबित हो रही हैं। इन राज्‍यों में गुटबाजी की वजह से पार्टी गंभीर संकट की स्थिति में है।

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हार की जिम्‍मेदारी लेने वाला कोई नहीं

हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा ने विधायकों और वरिष्‍ठ नेताओं की मीटिंग बुलाई थी। इस दौरान हुड्डा ने प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को भी हटाने की मांग की। हुड्डा गुट का मानना है कि राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी पार्टी कोई सबक लेती नहीं दिख रही है। दूसरी तरफ उनका विरोधी गुट यह कहते हुए हमला बोल रहा है कि हुड्डा और बेटे की उन सीटों पर भी हार हो गई, जिन्हें जाट बहुल माना जाता है।

चव्‍हान का विकल्‍प कौन

महाराष्ट्र में पूर्व सीएम अशोक चव्हाण को भी पार्टी के अंदर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन उनका विकल्‍प भी सामने उभरकर नहीं आया है। कई दिग्गज मराठा नेताओं ने हाल के दिनों में भाजपा ज्‍वाइन की है। कहा जा रहा है कि कुछ और विधायक भगवा कैंप ज्‍वाइन कर सकते हैं।

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कर्नाटक में निर्दलीय सरकार पर भारी

कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार है। इसके बावजूद 28 में से 25 सीटों पर जीत हासिल कर भाजपा ने गठबंधन के अस्तित्‍व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस और जेडीएस को सूबे में एक-एक सीट पर ही जीत मिली है। प्रदेश सरकार को बचाए रखने के लिए हालात इतने बिगड़ गए हैं कुछ निर्दलियों को भी पार्टी अहम पद देने के मूड में है।

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सिद्धू को अमरिंदर स्‍वीकार नहीं

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पंजाब में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करते हुए 13 में से 8 सीटें हासिल की हैं। इसके बावजूद सीएम कैप्टन अमरिंदर पर नवजोत सिंह सिद्धू हमले का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। कुछ दिनों पहले सीएम अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के कद को छोटा करते हुए उनका मंत्रालय भी बदल दिया है। दूसरी तरफ सिद्धू अमरिंदर को अपना बॉस मानने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं वो सीएम के खिलाफ खुलकर बयान भी दे रहे हैं।

दिग्‍विजय की हार ने संकट में डाला

मध्य प्रदेश में सीएम कमलनाथ के सहयोगियों पर चुनाव फंड से जुड़े मामले में इनकम टैक्स के छापे के बाद से राज्य में सरकार की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं। यहां की 29 सीटों में से भाजपा को 28 पर जीत मिली। प्रदेश में खुद की सरकार होते हुए भी कांग्रेस को केवल एक सीट पर जीत मिली। भोपाल लोकसभा सीट से पार्टी के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह की हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल पूरी तरह से टूट चुका है।

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गहलोत के नेतृत्‍व पर उठे सवाल

राजस्‍थान में लोकसभा की 25 में से 25 लोकसभा सीटों पर हार से प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्‍व पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। राजस्‍थान कांग्रेस के कुछ नेताओं ने गहलोत की जगह सचिन पायलट को सीएम बनाने की मांग कर दी है। जबकि गहलोत ने अप्रत्‍यक्ष रूप से हार के लिए सचिन पायलट को जिम्‍मेदार ठहराया है।

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