शास्त्रीनगर व जयदेवी नगर की सीमा पर मां दुर्गा का गाेल मंदिर अपने आकार आैर मनोकामना जल्द पूरी होने की वजह से प्रसिद्धि हासिल किए हुए है। इसे देखने के लिए आसपास के क्षेत्र के काफी लोग आते हैं। सच्चे मन से की गर्इ मनोकामना देवी मां जरूर पूरी करती हैं। नवरात्र में तो यहां मां के भक्तों की भीड़ काफी गुना बढ़ जाती है। <strong>एेसे हुआ स्थापित</strong> रिटायर्ड एसपी पंडित छीतर सिंह ने इस मंदिर का निर्माण 1965 में कराया था। बताते हैं कि उनकी पत्नी दुर्गा की भक्त थी। एक दिन उनके सपने में देवी ने दर्शन दिए थे, तो यह बात उन्होंने छीतर सिंह को बतार्इ। उन्होंने तभी इस मंदिर को स्थापित करने का निर्णय लिया। उनका परिवार गांधी नगर में रहता था। मंदिर के लिए उन्होंने एक हजार गज जमीन खरीदी। उन्होंने परिवार के लोगों के साथ बैठकर बातचीत की आैर एेसा मंदिर बनवाने का निर्णय लिया कि जो शहर या आसपास बिल्कुल अलग हो। फिर गोल आकार का मंदिर बनवाने का निर्णय लिया, जिस पर सबकी सहमति बन गर्इ। मंदिर के छत्र को कमल के फूल का आकार भी दिया गया। <strong>प्रसिद्धि</strong> यहां विधि-विधान से देवी दुर्गा की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ मूर्ति स्थापित की गर्इ। शहर आैर आसपास के क्षेत्र में पहला गोल आकार का मंदिर होने के कारण श्रद्धालु शुरू से आने शुरू हो गए थे। यहां आकर उन्होंने देवी के सामने अपने परिवार के लोगों के साथ मनोकामना मांगी, तो उनकी मनोकामना जल्द पूरी भी हुर्इ। इससे गोल मंदिर की प्रसिद्धि भी बढ़ने लगी। मंदिर के अंदर कल्पवृक्ष भी लगवाया गया। इस पर कलावा बांधते हुए देवी के भक्तों की मनोकामना पूरी होने लगी तो गोल मंदिर की प्रसिद्धि आैर ज्यादा बढ़ गर्इ। हर साल इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुआें की संख्या कर्इ गुना बढ़ जाती है। नवरात्र में तो यहां उत्सव सा माहौल होता है। <strong>मान्‍यता</strong> यहां आने वाले देवी के भक्त उन्हें प्रसाद जरूर चढ़ाते हैं। चुनरी, नारियल, श्रंगार का सामान व प्रसाद के साथ दीप प्रज्जवलित करने से देवी प्रसन्न होती हैं। उसके बाद देवी का खुली आंखों से नमन करने से देवी प्रसन्न होती हैं आैर जल्द ही अपने भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं। <strong>विशेष</strong> मां दुर्गा देवी के दर्शन करने के बाद भक्तों का यहां बहुत शांति मिलती है। पुजारी का कहना है कि देवी के दरबार से कोर्इ खाली हाथ नहीं जाता। सच्चे मन से देवी की मूर्ति देखने पर उन्हें मां के अलग-अलग रूप का अहसास होता है। <strong>एेसे पहुंचें</strong> दिल्ली से गोल मंदिर की दूरी करीब 68 किलोमीटर है। सिटी रेलवे स्टेशन से यह दूरी करीब 70 किलोमीटर है। भैंसाली रोडवेज बस अड्डे से शास्त्रीनगर नर्इ सड़क तक पहुंचकर वहां से रिक्शा व आॅटो से गोल मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
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