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भोपाल। दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर भारत में नहीं बल्कि, कंबोडिया देश में है। इस मंदिर अंकोरवाट मंदिर के नाम से जाना जाता है। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों में शामिल यह मंदिर अंगकोर के खंडहर का प्रवेश द्वार माना जाता है। कंबोडिया में लोकप्रिय यह मंदिर इस देश के झंडे पर भी दिखाई देता है। इसका रोचक इतिहास और विशेषताएं जानने के लिए जरूर पढ़ लें ये खबर...
यह सिएम रीप से 6 किलोमीटर उत्तर में स्थित अंगकोर के खंडहर का प्रवेश द्वार माना जाता है। अंकोरवाट मंदिर अंगकोर शहर में स्थित है, जिसे 12वीं शताब्दी में खमेर साम्राज्य के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बनवाया था। अंगकोर पुरातात्विक पार्क 400 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा पूर्व-औद्योगिक शहर बनाता है। अंगकोर एक अच्छी तरह से स्थापित शहर था और मंदिर उस समृद्ध शहर का एक हिस्सा थे।
यशोधरपुर था पहले नाम
हिंदू धर्म सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। इसकी पुरातन संस्कृति की झलक पूरी दुनिया में दिखती है। यही कारण है कि इस धर्म के प्रतीक, अवशेष, चिन्ह यहां तक प्राचीन मंदिर विदेशों में भी मिलते हैं। इन्हीं प्राचीन मंदिरों में से एक है कंबोडिया का अंकोरवाट मंदिर। यह एक हिंदू मंदिर है। आपको बता दें कि यह आकर्षक मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु को समर्पित एक मंदिर था। धीरे-धीरे 14वीं शताब्दी में एक हिंदू पूजा स्थल से एक बौद्ध मंदिर में बदल गया। 402 एकड़ में फैला यह मंदिर कंबोडिया के अंकोर में है। प्राचीन समय में इस मंदिर का नाम यशोधरपुर था। बताया जाता है कि इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1113-50 ई.) के शासनकाल में हुआ था।
कई वर्ष अधूरा रहा निर्माण
खमेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित स्थापत्य वाले इस विष्णु मंदिर का निर्माण कार्य सूर्यवर्मन द्वितीय ने शुरू जरूर किया लेकिन, वे इसे पूरा नहीं कर सके। मंदिर का कार्य उनके भांजे व उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में पूरा हुआ। मिश्र व मैक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह यह सीढ़ी पर उठता गया है। इसका मूल शिखर लगभग 64 मीटर ऊंचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लंबी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ था, उसके बाहर 30 मीटर खुली भूमि और फिर बाहर 190 मीटर चौड़ी खाई है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह चोल वंश के मंदिरों से मिलता-जुलता निर्माण है।
यहां एक साथ विराजित हैं ब्रह्मा-विष्णु और महेश
इस मंदिर की रक्षा के लिए चारों तरफ खाई बनवाई गई, जिसकी चौड़ाई लगभग 700 फुट है। दूर से यह खाई झील की तरह दिखती है। मंदिर के पश्चिम की ओर इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है। पुल के पार मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार है, जो लगभग 1,000 फुट चौड़ा है। अंकोरवाट यहां का एक अकेला ऐसा स्थान है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की मूर्तियां एक साथ हैं। अंगकोरवाट मंदिर की खासियत है कि विष्णु भगवान का यह दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है। सनातन धर्म के लोग इसे पवित्र तीर्थ स्थान मानते हैं।
मीकांग नदी बढ़ाती है सुंदरता
कंबोडिया के मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में स्थापित इस मंदिर के प्रति वहां के लोगों में अपार श्रद्धा है। यही वजह है कि इस मंदिर को राष्ट्र के लिए सम्मान का प्रतीक माना जाता है और इसे कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मंदिर मेरु पर्वत का प्रतीक भी है।
दीवारों पर उकेरे गए हैं धार्मिक प्रसंग
यह मंदिर सनातन संस्कृति का साक्ष्य है। इसकी दीवारों पर हिंदू धर्मग्रंथों के प्रसंगों का अद्भुत चित्रण है। आप यहां अप्सराओं का सुंदर चित्र देख सकते हैं। यहां तक कि असुरों और देवताओं के बीच हुए समुद्र मंथन के दृश्य को भी बड़े ही सुंदरता से यहां उकेरा गया है।
बौद्ध धर्म का भी बड़ा असर
अंगकोरवात के हिंदू मंदिरों पर बाद में बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा। कालांतर में उनमें बौद्ध भिक्षुओं ने निवास भी किया था। इस क्षेत्र में 20वीं सदी की शुरुआत में जो पुरातात्विक खुदाई हुई हैं। इन खुदाइयों ने खमेर के धार्मिक विश्वासों, कलाकृतियों और भारतीय परंपराओं की परिस्थितियों पर बहुत प्रकाश डाला है। यहां हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। हालांकि अब तक कोई शिलालेख यहां से नहीं मिला है।
यूनेस्को के विश्व धरोहरों में से एक है यह मंदिर
अंकोरवाट मंदिर विश्व के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यही कारण है कि इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया हुआ है। यहां लोगों को वास्तुशास्त्र का अनोखा और सुंदर रूप देखने को मिलता है। अंकोरवाट मंदिर एक बेहद आकर्षक संरचना है, जिसमें नुकीले टॉवर जो आधार से उठे हुए हैं। यह संरचना 12वीं शताब्दी के खमेर वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इसका निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है। आपको बता दें कि अंकोरवाट में वाट का अर्थ थाई में मंदिर होता है। लेकिन इस संरचना के पूर्व-पश्चिम अभिविन्यास में मंदिरों का महत्व है। कई विद्वानों का ऐसा मानना है कि मंदिर का निर्माण सूर्यवर्मन ने अपने अंतिम विश्राम स्थल के लिए करवाया था। अंकोरवाट मंदिर में एक 65 मीटर केंद्रीय टॉवर है जो चार छोटे टॉवरों और बाड़े की दीवारों की एक शृृंखला से घिरा हुआ है।
भारतीय गुप्त कला झलक
इस विशाल मंदिर की दीवारों पर रामायण की कथाएं मूर्तियों में दर्शाई गई हैं। ऐसा लगता है कि विदेशों में जाकर भी प्रवासी कलाकारों ने भारतीय कला को जीवित रखा था। मंदिर में की गई कलाकारी को देखकर लगता है कि यह भारतीय गुप्त कला से प्रभावित है। यहां के मंदिरों में तोरण द्वार और अलंकृत शिखर दिखते हैं।
अब भारत कर रहा है निर्माण
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ही में बनारस में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि मंदिर हमारी संस्कृति और इतिहास के रखवाले हैं। मोदी सरकार का पूरा ध्यान दुनिया में भारत की समृद्ध परंपराओं के निर्माण, पुनर्निर्माण और पुनस्र्थापन पर है। इतिहास का पहिया अब घूम रहा है। यह भारत का उदय है। दुनिया में भारतीय संस्कृति और विरासत को उचित स्थान मिले, इसे लेकर सरकार प्रतिबद्ध है। इस कड़ी में उन्होंने मंदिरों के विश्वस्तरीय संरक्षण पर जोर देते हुए कहा कि भारत कंबोडिया में अंकोरवाट मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार कर रहा है।
यहां घूमने जाएं तो रखें ध्यान
अगर आप भी इस मंदिर को देखने की प्लानिं करते हैं, तो आपको बता दें कि यहां अच्छी तरह से घूमने का मजा है, इसलिए कम से कम तीन दिन का टारगेट लेकर ही यहां जाइएगा। अगर आपको अंगकोरवाट मंदिर परिसर से लेकर पूरे अंगकोरवाट पार्क में घूमना है, तो कम से कम दो से तीन दिन आपको यहां रुकना होगा।
यहा लगती है एंट्री फीस
अगर कोई विदेशी पर्यटक अंगकोर वाट घूमने के लिए जा रहा है तो इसके लिए उसे एक प्रवेश पास खरीदने की आवश्यकता होती है। यह पास केवल आधिकारिक टिकट केंद्र से ही प्राप्त किया जा सकता है। जो कि सिएम रीप शहर से 4 किलोमीटर दूर स्थित है। टिकट केंद्र रोजाना सुबह 5:00 बजे से शाम 5:30 बजे तक खुला रहता है। प्रवेश टिकट का भुगतान या तो नकद (अमेरिकी डॉलर, कंबोडियन रिअल, थाई उत्कृष्टता या यूरो) द्वारा किया जा सकता है या फिर इसके लिए पर्यटक क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
चुकानी होगी ये एंट्री फीस
1 दिन के लिए 37 डॉलर (एक दिन के लिए पास)
3 दिन के लिए 62 डॉलर (यह दस दिनों के लिए वैध है)
7 दिन के लिए 72 डॉलर (यह एक महीने के लिए वैध है)
यहां घूमने का सबसे अच्छा समय
अगर आप कंबोडिया में स्थित अंगकोर वाट मंदिर जाने की योजना बना रहें हैं तो, आपको बता दें कि यहां जाने का सबसे अच्छा समय नवंबर से फरवरी के बीच होगा है। क्योंकि इस दौरान मौसम बहुत ज्यादा गर्म नहीं होता और ज्यादा बारिश भी नहीं होती। सूर्योदय के दौरान अंगकोरवाट बेहद शानदार नजर आता है। आप यहां सूर्योदय के साथ मंदिर के आकर्षक दृश्य को देख सकते हैं। अगर आप मंदिर की यात्रा कर रहें हैं तो अपने साथ कैमरा ले जाना न भूलें।
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इस ड्रेस कोड का करना होगा पालन
आपको बता दें कि अंगकोर वाट का एक ड्रेस कोड है जिसका पालन करना अनिवार्य है। यह स्थान पूरे वर्ष गर्म रहता है, इसलिए आपको हल्के कपड़े पहनने चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आप जो भी पहन रहें हैं वो आपके कंधो और घुटनों को जरुर कवर करें। अगर आप धूप में मंदिर देखने जा रहें हैं तो अपने साथ एक कैप जरूर लेकर जाएं।
भारतीयों के लिए भोजन
सिएम रीप में कई रेस्टोरेंट हैं, जहां पर पर्यटक भारतीय व्यंजन का स्वाद ले सकते हैं। यदि आप कंबोडिया की यात्रा के दौरान केरेला के स्वाद को याद कर रहे हैं, तो बस अंगकोर कॉम्प्लेक्स से कुछ कदम दूर अंगकोर न्यू इंडिया रेस्टोरेंट है। जो सुबह 07:00 से 06:00 बजे तक खुला रहता है। इसके अलावा अन्य रेस्तरां में फ्लेवर्स ऑफ इंडिया, करी वाला और वानाक्कम इंडिया रेस्तरां शामिल हैं। अगर आप शाकाहारी भोजन का स्वाद लेना चाहते हैं तो तो चुस्का परफेक्ट जगह है। यहां पर आप शुद्ध शाकाहारी भोजन का स्वाद ले सकते हैं।
अंगकोर वाट कंबोडिया कैसे पहुंचें
अंगकोर वाट का मंदिर सिएम रीप में स्थित है। कुछ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों से आप सिएम रीप अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए फ्लाइट ले सकते हैं। अगर आप लाओस, थाईलैंड या वियतनाम से कंबोडिया में प्रवेश कर रहे हैं तो आप सड़क मार्ग द्वारा या बस की मदद से भी यहां पहुंच सकते हैं। सिएम रीप के लिए वर्तमान में कोई रेल सेवा उपलब्ध नहीं है।
भारत से अंगकोर वाट कैसे पहुंचे
भारत से सिएम रीप के लिए कोई सीधी उड़ान उपलब्ध नहीं है। बैंकॉक और कुआलालंपुर के माध्यम से जेट एयरवेज, सिंगापुर एयरलाइंस, सिल्क एयर, थाई एयरवेज और एयरलाइंस सिंगापुर जैसी कनेक्टिंग फ्लाइट उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से आप सिएम स्टेप तक पहुंच सकते हैं।
Updated on:
20 Dec 2022 02:15 pm
Published on:
20 Dec 2022 02:14 pm
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