
Premanand ji Maharaj Health : प्रेमानंद महाराज की तबीयत नाज़ुक, रोज़ाना डायलिसिस जारी — पदयात्रा कुछ समय के लिए स्थगित (फोटो सोर्स: FB/bhajanmargofficial11)
Premanand Maharaj health update : वृंदावन के पूज्य संत प्रेमानंद महाराज पिछले कई दिनों से अपनी दैनिक पैदल तीर्थयात्रा नहीं कर रहे हैं। श्री काली कुंज आश्रम ने एक आधिकारिक सूचना जारी कर बताया है कि स्वास्थ्य कारणों से महाराज की तीर्थयात्रा अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई है। उनके दर्शन की अभिलाषा लिए प्रतिदिन आने वाले भक्तों की आंखों में यह समाचार सुनकर आंसू आ गए।
खबरों के मुताबिक, महाराज जी ने खुद अपने स्वास्थ्य के बारे में बताते हुए कहा है कि थोड़ी दिक्कत और घबराहट तो है, लेकिन ऊपरवाले की बहुत कृपा है। उन्होंने कहा कि वह बहुत ठीक हैं और अपने सभी भक्तों से कहा कि सब लोग खुश रहें और वह उनसे जल्दी ही मिलेंगे।
आपको बता दें कि हर दिन बड़ी संख्या में भक्त रमण रेती स्थित काली कुंज आश्रम में प्रेमानंद महाराज की एक झलक पाने की आशा में लिए आते हैं। भक्त उनके प्रवचनों को युवाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का श्रेय देते हैं। चार दिन पहले तक महाराज अपने फ्लैट में सप्ताह में पांच दिन डायलिसिस करवाते थे लेकिन अब यह उनकी रोजाना की आवश्यकता बन गई है।
फिलहाल उनका इलाज डॉक्टरों की देखरेख में चल रहा है। उम्र और बीमारी को देखते हुए उन्हें अब लंबे आराम की जरूरत है। इसलिए उनकी रोजाना की पदयात्राएं कुछ समय के लिए रोक दी गई हैं। भक्तों से निवेदन है कि वे शांति और धैर्य बनाए रखें, और महाराज जी के जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करते रहें। अभी का समय सेवा करने से ज़्यादा, प्रार्थना और संयम दिखाने का है।
सामान्य दिनों में प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) श्री कृष्ण शरणम सोसाइटी से काली कुंज आश्रम तक लगभग 2 किलोमीटर पैदल चलते हैं। इस मार्ग पर हजारों भक्त उनकी प्रतीक्षा करते हैं, कभी-कभी सप्ताह के दिनों में यह संख्या 20,000 तक पहुंच जाती है और प्रमुख त्योहारों के दौरान 3 लाख से भी ज्यादा हो जाती है। हजारों लोगों के इंतजार के बावजूद, महाराज अपनी तीर्थयात्रा पर नहीं निकले। यही स्थिति तीन दिनों तक जारी रही जिसके कारण आश्रम ने अनिश्चितकालीन रोक की घोषणा कर दी।
प्रेमानंद महाराज को यह बीमारी वर्ष 2006 में सामने आई थी जब उन्हें पेट में दर्द की शिकायत हुई। महाराज 2006 से पॉलीसिस्टिक किडनी रोग से पीड़ित हैं, जब पेट दर्द से पता चला कि उनकी किडनी में गंभीर क्षति हुई है। शुरुआत में कानपुर में इसका पता चला और बाद में दिल्ली में इसकी पुष्टि हुई। डॉक्टरों ने बताया कि दोनों किडनी खराब हो गई थीं। तब से महाराज वृंदावन चले गए और राधा नाम के जाप में समर्पित हो गए। उन्होंने स्नेहपूर्वक अपने गुर्दों का नाम कृष्ण और राधा रखा।
संत प्रेमानंद महाराज श्री कृष्ण शरणम सोसाइटी में रहते हैं, जहां उनके दो फ्लैट हैं। एक फ्लैट उनका निवास स्थान है जबकि दूसरे में छह डॉक्टरों की एक टीम द्वारा डायलिसिस किया जाता है। पहले अस्पतालों में किया जाने वाला डायलिसिस अब उनकी स्थिति की गंभीरता के कारण उनके घर पर ही प्रतिदिन किया जाता है। यह प्रक्रिया प्रत्येक सत्र में चार से पांच घंटे तक चलती है।
कई डॉक्टरों और भक्तों ने महाराज की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया है। ऑस्ट्रेलिया के एक कार्डियोलॉजिस्ट अपनी पत्नी के साथ संत की देखभाल के लिए वृंदावन आ गए।
देश की है बड़ी हस्तियों ने भी महाराज को किडनी दान करने की पेशकश की है। अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा पिछले महीने महाराज से मिलने गए थे, और राज ने किडनी दान करने की इच्छा व्यक्त की थी। इटारसी के आरिफ खान चिश्ती और श्री कृष्ण जन्मभूमि एवं शाही ईदगाह मामले में याचिकाकर्ता दिनेश फलाहारी बाबा ने भी अपनी श्रद्धा और भक्ति दर्शाते हुए अपनी किडनी दान में दी है।
प्रेमानंद महाराज, जिनका जन्म कानपुर के अकरी गांव में अनिरुद्ध कुमार पांडे के रूप में हुआ था। 13 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया था। उनके बड़े भाई, गणेश दत्त पांडे, परिवार की आध्यात्मिक परंपरा को याद करते हुए कहते हैं कि हर पीढ़ी में एक संत पैदा होता था।
छोटी उम्र से ही अनिरुद्ध (प्रेमानंद महाराज) में गहरी आध्यात्मिक प्रवृत्ति थी। वे पूजा-पाठ और मंदिर संबंधी गतिविधियों में शामिल रहते थे लेकिन जब शिव मंदिर के लिए चबूतरा बनाने के उनके प्रयास विफल हो गए, तो उन्होंने घर छोड़ दिया। उनके परिवार ने उन्हें सरसौल के नंदेश्वर मंदिर में पाया लेकिन उन्होंने सांसारिक मोह-माया त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने से इनकार कर दिया।
सरसौल छोड़ने के बाद अनिरुद्ध महाराजपुर के सांसी स्थित एक मंदिर में कुछ समय तक रहे, फिर बिठूर, कानपुर और बाद में काशी चले गए। उन्होंने गुरु गौरी शरण जी महाराज के मार्गदर्शन में वाराणसी में लगभग 15 महीने बिताए, जहाँ उन्होंने ध्यान, गंगा स्नान और अनुष्ठान किए। अपने तपस्वी जीवन के दौरान, वे कई दिनों तक बिना भोजन या पानी के रहते थे, तथा केवल न्यूनतम प्रसाद से अपना जीवन निर्वाह करते थे।
प्रेमानंद महाराज, जिनका जन्म कानपुर के अकरी गांव में अनिरुद्ध कुमार पांडे के रूप में हुआ था, ने 13 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया था। उनके बड़े भाई, गणेश दत्त पांडे, परिवार की आध्यात्मिक परंपरा को याद करते हुए कहते हैं कि हर पीढ़ी में एक संत पैदा होता था।
छोटी उम्र से ही अनिरुद्ध में गहरी आध्यात्मिक प्रवृत्ति थी। वे पूजा-पाठ और मंदिर संबंधी गतिविधियों में शामिल रहते थे, लेकिन जब शिव मंदिर के लिए चबूतरा बनाने के उनके प्रयास विफल हो गए, तो उन्होंने घर छोड़ दिया। उनके परिवार ने उन्हें सरसौल के नंदेश्वर मंदिर में पाया, लेकिन उन्होंने सांसारिक मोह-माया त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने से इनकार कर दिया।
सरसौल छोड़ने के बाद अनिरुद्ध महाराजपुर के सांसी स्थित एक मंदिर में कुछ समय तक रहे फिर बिठूर, कानपुर और बाद में काशी चले गए। उन्होंने गुरु गौरी शरण जी महाराज के मार्गदर्शन में वाराणसी में लगभग 15 महीने बिताए, जहां उन्होंने ध्यान, गंगा स्नान और अनुष्ठान किए। अपने तपस्वी जीवन के दौरान, वे अक्सर कई दिनों तक बिना भोजन या जल के रहते थे और केवल न्यूनतम प्रसाद से अपना जीवनयापन करते थे।
जब महाराज स्वस्थ होते थे, तो वे अपने निवास से काली कुंज आश्रम तक सुबह दो बजे दो किलोमीटर पैदल चलते थे। हजारों भक्त उनके दर्शन के लिए इस मार्ग पर एकत्रित होते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनका अनुशासित जीवन और राधा नाम जप के प्रति समर्पण सभी उम्र के भक्तों को प्रेरित करता रहता है।
महाराज के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की खबर ने आस-पास के शहरों और यहां तक कि विदेशों से आने वाले भक्तों को दुखी कर दिया है। आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद, संत के अनुयायी समर्पित हैं, उनके शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं और उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जब वे अपनी तीर्थयात्रा फिर से शुरू कर सकेंगे।
Updated on:
09 Oct 2025 07:57 am
Published on:
08 Oct 2025 11:54 am
बड़ी खबरें
View Allस्वास्थ्य
ट्रेंडिंग
लाइफस्टाइल
