सीएम देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे के बाद मंगलवार को मुंबई के ट्राइडेंट होटल में शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस और कुछ छोटे दलों की संयुक्त बैठक में महा विकास अघाड़ी का औपचारिक तौर पर गठन किया गया। उद्धव ठाकरे को नवगठित महा विकास अघाड़ी का नेता चुन लिया गया। इसके बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में गठबंधन में शामिल दलों के नेता राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलकर सरकार बनाने का औपचारिक दावा पेश किया। शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव फिलहाल राज्य के किसी भी सदन के सदस्य नहीं है, इसलिए उन्हें छह महीने के अंदर विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना होगा।
कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर चलेगी सरकार
मीटिंग में उद्धव के महाविकास अघाड़ी का नेता चुनने के अलावा कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर भी चर्चा कर उसे अंतिम रूप दिया गया। सत्ता के बंटवारे का भी फार्मूला पेश हुआ। सूत्रों के मुताबिक इसके अनुसार उद्धव ठाकरे के सीएम होने के साथ कांग्रेस और एनसीपी से एक-एक नेता डिप्टी सीएम पद का भी शपथ ले सकते हैं। एनसीपी की तरफ से जयंत पाटील और कांग्रेस की तरफ से बालासाहेब थोराट डिप्टी सीएम बनाने पर सहमति की बात कही जा रही है।
नहीं आए अजित पवार
बैठक में सभी की निगाहें भाजपा में खेमे में गए अजित पवार को ढूंढ़ रही थी, लेकिन वह दिखाई नहीं दिए। विधायकों के अनुसार वह बैठक में शामिल नहीं हुए। बैठक में शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अशोक चव्हाण समेत शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के कई बड़े नेता और नवनिर्वाचित विधायक शामिल हुए। समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी भी बैठक में मौजूद रहें। उनके अलावा, स्वाभिमानी पक्ष के नेता राजू शेट्टी भी बैठक में शामिल हुए।
पहली बार ठाकरे परिवार से कोई बनेगा मुख्यमंत्री
महाविकास अघाड़ी का नेता चुने जाने पर उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने की बात करीब करीब तय हो चुकी है। एक दिसंबर को मुंबई के शिवाजी पार्क में एक समारोह में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद का शपथ लेंगे। पहली बार ठाकरे परिवार से कोई मुख्यमंत्री बनेगा। अबतक ठाकरे परिवार खुद को चुनाव से दूर रखता आया था लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में परिवार ने जब इस परंपरा को तोड़कर आदित्य ठाकरे को चुनाव मैदान में उतारा था। यह संकेत था कि अब शिवसेना मुख्यमंत्री पद के लिए सारा जोर लगाएगी। 24 अक्टूबर को नतीजे घोषित होने के बाद से ही शिवसेना ने भाजपा पर आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का दबाव डालना शुरू कर दिया। फिर बाद में जब शिवसेना नाराज होकर भाजपा को छोड़ गई और कांग्रेस, एनसीपी के साथ जुड़ गई तो वहां सभी आदित्य के बजाए उद्धव को ही सीएम बनाने पर अड़ गए, जबकि उद्धव इसके लिए तैयार नहीं हो रहे थे। बताया जा रहा है कि अब बदली परिस्थिति में उद्धव के पास इस पद को स्वीकार करने के बजाय दूसरा विकल्प नहीं बचा है।