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देश के सबसे बड़े 2 डॉन के बीच कैसे पड़ी फूट, अरुण गवली और दाऊद इब्राहीम की दुश्मनी की कहानी

Dawood Ibrahim Arun Gawli Rivalry: नागपुर जेल से छूटा अरुण गवली कभी दाऊद इब्राहीम से अलग कैसे हुआ? दो अंडरवर्ल्ड डॉन की दुश्मनी की कहानी, कब साथ थे और क्यों बने दुश्मन। पढ़ें एम आई ज़ाहिर की स्पेशल स्टोरी:

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भारत

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MI Zahir

Sep 03, 2025

Arun Gawli and Dawood Ibrahim

अरुण गवली और दाऊद इब्राहीम की एआई जनरेटेड फोटो

Dawood Ibrahim Arun Gawli Rivalry: अंडरवर्ल्ड की भी अपनी दुनिया है। हाजी मस्तान के बाद भारत में इन डॅान के नाम पर कभी लोग थर—थर कांपते थे। अरुण गवली और दाऊद इब्राहीम कभी एक ही रास्ते पर थे, लेकिन समय के साथ यह दोस्ती भयानक दुश्मनी (Dawood Ibrahim Arun Gawli Rivalry) में बदल गई। मुंबई की गलियों में खून से लिखी गई इस अंडरवर्ल्ड जंग ने देश की राजनीति और अपराध की दिशा दोनों बदल दी। क्राइम रिकॉर्ड के अनुसार सन 1980 के दशक में जब मुंबई की सड़कों पर अंडरवर्ल्ड अपना (Mumbai Underworld War) कब्जा जमाने लगा, तब दो नाम धीरे-धीरे उभर कर सामने आए -दाऊद इब्राहीम और अरुण गवली। दोनों का अपराध की दुनिया में लगभग एक ही समय आगाज हुआ। शुरुआत में दाऊद और गवली के नेटवर्क में सीधी टक्कर नहीं थी, लेकिन जैसे-जैसे दोनों का प्रभाव बढ़ा, मुकाबला भी बढ़ता गया। अरुण गवली का ठिकाना था भायखला, जबकि दाऊद का गढ़ था डोंगरी और नागपाड़ा। सन 90 के दशक की शुरुआत तक दोनों के गिरोहों में संपर्क और समझदारी थी, लेकिन जल्द ही इलाके पर कब्जा, फायनेंशियल डील्स, और राजनीतिक संरक्षण को लेकर मतभेद उभरने लगे।

गवली और दाऊद के बीच दुश्मनी कैसे शुरू हुई ? (Gangwar Dawood Gawli)

शुरुआती दौर: दोस्त नहीं, लेकिन सहयोगी जैसे थे। सन 1980 के दशक में मुंबई में दाऊद इब्राहीम का डी-कंपनी गैंग और अरुण गवली का "Byculla Company" दोनों एक्टिव थे। दोनों अलग-अलग इलाकों पर राज करते थे—दाऊद दक्षिण मुंबई और गवली मध्य मुंबई के भायखला और आसपास के क्षेत्रों में थे। उस वक्त साझी दुश्मनी यानी दूसरे गैंग्स (राजन, पठान्स) के खिलाफ लड़ाई के चलते इन दोनों के बीच टकराव नहीं था।

जब गवली ने अपनी गैंग बनाई

अरुण गवली और दाऊद इब्राहीम, जो कभी मुंबई के अंडरवर्ल्ड में एक ही राह पर थे, समय के साथ कट्टर दुश्मन बन गए। इन दोनों के बीच अलगाव की कहानी अपराध, सत्ता, विश्वासघात और टेरिटरी (इलाका) की लड़ाई से जुड़ी है। क्राइम रिकॉर्ड के अनुसार सन 1990 के बाद, जब दाऊद ने दुबई भागकर D-Company को अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बना दिया, तब गवली ने मुंबई में अपना स्वतंत्र गैंग खड़ा कर लिया — जिसे “गवली गुट” कहा जाने लगा।

दाऊद पाकिस्तान भागा और गैंग का बंटवारा हुआ

सन 1993 में मुंबई बम धमाकों के बाद जब दाऊद पाकिस्तान भाग गया, तब उसकी डी-कंपनी की पकड़ मुंबई में कमजोर हुई। इसका गवली ने फायदा उठाया और दाऊद के कुछ लोगों को अपने पाले में मिला लिया। गवली का कहना था कि वो अब "स्थानीय मराठी युवाओं" के लिए काम कर रहा है, जबकि दाऊद पर "विदेशी नेटवर्क" का आरोप लगने लगा।

इलाके और वसूली पर कब्जे की जंग (Arun Gawli vs Dawood Ibrahim)

दोनों डॉन के बीच असली टकराव तब शुरू हुआ जब वसूली, सुपारी किलिंग और अवैध धंधों के टेरिटरी को लेकर भिड़ंत हुई।दाऊद को लगा कि गवली उसके धंधों में दखल दे रहा है, जबकि गवली को लगा कि दाऊद विदेशी होकर "स्थानीय अपराधियों" को खत्म कर रहा है।

गवली के करीबी लोगों की हत्या

दाऊद की डी-कंपनी ने अरुण गवली के कई खास गुर्गों की हत्या करवाई।

बदले में, गवली गैंग ने भी दाऊद के लोगों को निशाना बनाया।

गवली का राजनीति में आना – दूरी और बढ़ी

सन 2004 में जब गवली विधायक बना, तो उसने खुद को "जन नेता" और दाऊद को "देशद्रोही" बताना शुरू किया।
इससे भी दोनों के बीच खाई और बढ़ गई। गवली ने दावा किया कि वह अब जनता की सेवा कर रहा है, जबकि दाऊद विदेश से "भारत को नुकसान" पहुंचा रहा है।

सीधी गैंगवार और खूनी संघर्ष

सन 1990 और 2000 के बीच दाऊद और गवली गुट के बीच कई शूटआउट, हत्याएं और पुलिस एनकाउंटर हुए। दाऊद का गैंग ज्यादा संगठित और इंटरनेशनल लिंक वाला था, जबकि गवली का गुट मुंबई के लोकल इलाकों पर पकड़ रखता था।
गवली ने धीरे-धीरे राजनीतिक शरण लेना शुरू किया और 2004 में भायखला से विधायक भी बना।

अरुण गवली की पूरी प्रोफाइल

जन्म: 17 जुलाई 1955, मुंबई (पूर्व – ताड़देव क्षेत्र)।

पहचान: मिल मजदूर से अंडरवर्ल्ड डॉन और फिर नेता।

गंभीर आरोप: शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या (2007)।

जबरन वसूली, अपहरण और हत्या के कई मामले

महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत मुकदमे

सजा: 2012 में आजीवन कारावास।

रिहाई: 2025 में 3 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत पर रिहा।

दाऊद इब्राहीम की प्रोफाइल

जन्म: 26 दिसंबर 1955, डोंगरी, मुंबई।

पहचान: भारत का सबसे वांछित अंडरवर्ल्ड डॉन, D-Company का मुखिया।

वांटेड केस: 1993 मुंबई बम धमाके का मुख्य आरोपी।

टेरर फंडिंग, हथियार तस्करी, हवाला नेटवर्क, और ड्रग्स स्मगलिंग।

भारत, अमेरिका और इंटरपोल के वांटेड लिस्ट में शामिल।

कहां है अब: माना जाता है कि वह पाकिस्तान (कराची) में छिपा हुआ है, हालांकि पाकिस्तान इस बात से इनकार करता रहा है।

दाऊद को लाने की कोशिशें: भारत ने क्या किया ?

भारत सरकार ने दाऊद इब्राहीम को भारत लाने के लिए अब तक कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाई है, लेकिन अब तक उसे भारत लाया नहीं जा सका।

पाकिस्तान से मांगा गया प्रत्यर्पण

भारत ने कई बार पाकिस्तान सरकार से औपचारिक रूप से दाऊद इब्राहीम को सौंपने की मांग की है।

सन 2005 में, भारत ने गृह सचिव स्तर की बैठक में पाकिस्तान से यह मांग की थी।

सन 2011 और 2013 में, विदेश और गृह मंत्रियों ने लोकसभा और मीडिया के जरिए इस मांग को दोहराया।

इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस

भारत ने दाऊद के खिलाफ इंटरपोल से 'रेड कॉर्नर नोटिस' जारी कराया है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वांछित अपराधी घोषित हो चुका है।

दाऊद की संपत्तियों पर कार्रवाई

भारत सरकार ने SAFEMA एक्ट के तहत दाऊद की कई संपत्तियों को जब्त किया है। सन 2020 में मुंबई और आसपास की 6 संपत्तियों की नीलामी की गई, जिन पर दाऊद और उसके परिवार का कब्जा था।

आज का परिप्रेक्ष्य और सवाल

गवली की रिहाई के बाद क्या मुंबई की सड़कों पर फिर से अंडरवर्ल्ड का साया लौटेगा ?

क्या गवली अब फिर से राजनीति में सक्रिय होंगे या शांत जीवन अपनाएंगे ?

और सबसे बड़ा सवाल — दाऊद अब भी बचा हुआ है, तो क्या वह भारत की न्याय प्रणाली से कभी रूबरू होगा ?

अरुण गवली और दाऊद इब्राहीम के बीच दुश्मनी की सबसे बड़ी वजहें थीं:

इलाका और पैसे की लड़ाई।

राजनीतिक महत्वाकांक्षा।

स्थानीय बनाम विदेशी अपराधी की छवि।

आपसी गैंग वार और विश्वासघात।

गवली जेल से बाहर, दाऊद देश से बाहर

आज अरुण गवली जेल से बाहर आ चुका है। दाऊद इब्राहीम आज भी भारत से बाहर है और उसके कभी कराची तो कभी दुबई में होने की खबरें आती हैं। गवली अपनी सजा काट चुका है और दाऊद भारत का वांटेड अपराधी है।