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आमतौर पर कहा जाता है कि लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई। हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन ने लोगों को ऐसे जख्म दे दिए हैं जिन्हें वक्त का मरहम शायद ही भर पाए। दस दिन के आंदोलन में हरित प्रदेश हरियाणा दस वर्ष पीछे चला गया है। आंदोलनकारियों के उपद्रव का शिकार हुए हजारों लोगों के समक्ष रोजी-रोटी और परिवार को पालने का संकट खड़ा हो गया है। इस आंदोलन में अपना कारोबार पूरी तरह से गंवा चुके लोगों का हाल पूछने वाला कोई नहीं है। कोई नेता दिल्ली में राजनीति कर रहा है तो कोई चंडीगढ़ में। एक बिरादरी आरक्षण की मांग पर अड़ी है तो 35 बिरादरी मुख्यमंत्री के समर्थन में खड़ी हैं लेकिन सजा उन्होंने भुगती है जो न तो आरक्षण मांग रहे थे और न ही किसी दल की राजनीति का हिस्सा थे।


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