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मध्&zwj;यप्रदेश विधानसभा का अपने वर्तमान रूपमें पुनर्गठन 1 नवम्&zwj;बर, 1956 को मध्&zwj;यप्रदेश बनने के बाद हुआ। इस पुनर्गठन में विन्&zwj;ध्&zwj;यप्रदेश, मध्&zwj;यभारत, महाकौशल और भोपाल राज्&zwj;य की विधान सभाओं को शामिल किया गया। राज्&zwj;य के पुनर्गठन के कुछ समय पहले ही नयी एकीकृत विधानसभा के भवन के लिए भोपाल के मिंटो हॉल का चयन कर लिया गया था। &nbsp; <strong>मिंटो हॉल (पुरानी विधानसभा) का इतिहास</strong>12 नवम्&zwj;बर, 1909 को तत्&zwj;कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो इस दिन अपनी पत्&zwj;नी के साथ भोपाल आए। लॉर्ड मिंटो के भोपाल प्रवास के दौरान इस इमारत का शिलान्यास कराया गया था। ये फैसला भोपाल की शासक नवाब सुल्&zwj;तान जहां बेगम ने लिया था, जिन्हें लॉर्ड मिंटो के भोपाल आने के बाद लॉर्ड मिंटो को ठहराने के लिए किसी सुंदर जगह की कमी महसूस हुई थी। इसके बाद अंग्रेज इंजीनियर ए.सी. रबेन की देखरेख में इस भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। &nbsp; 3 लाख रुपए में तैयार हुए इस भवन को बनने में करीब 24 साल का वक्त लग गया। इस इमारत का नाम लॉर्ड मिंटो के नाम पर ही मिंटो हॉल रखा गया। बाद में मिंटो हॉल का उपयोग अतिथि गृह के तौर पर कम, भोपाल राज्&zwj;य की सेना के मुख्&zwj;यालय, आर्थिक सलाहकार के दफ्तर, पुलिस मुख्&zwj;यालय और होटल के रूप में हुआ। बाद में इस इमारत के भव्&zwj;य हॉल में स्&zwj;केटिंग रिंग के रूप में नवाबी घरानों के लड़के-लड़कियॉं स्&zwj;केटिंग सीखते रहे। आज़ादी के एक साल पहले सन् 1946 में इसमें एक इंटर कॉलेज की स्&zwj;थापना हुई जो कि बाद में हमीदिया कॉलेज के रूप में जाना गया, जो यहां से 1956 तक संचालित होता रहा। &nbsp; मध्य प्रदेश के गठन के बाद 1 नवम्&zwj;बर, 1956 से यह भवन विधानसभा भवन के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। इसके बाद 40 सालों तक मध्य प्रदेश की विधानसभा यहीं से संचालित हुई। बाद में विधानसभा के कामकाज की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए मूल मिंटो हॉल की इमारत में नये खंड जोड़ना पडे। वक्त के साथ मिंटो हॉल विधानसभा के तौर पर छोटा महसूस किया जाने लगा। तब 14 मार्च, 1981 को तत्&zwj;कालीन लोक सभा अध्&zwj;यक्ष श्री बलराम जाखड़ द्वारा नये विधानसभा भवन का शिलान्&zwj;यास संपन्&zwj;न हुआ। अरेरा पहाड़ी पर बिड़ला मंदिर और राज्&zwj;य मंत्रालय के बीच 17 सितम्&zwj;बर, 1984 को इस नये भवन का निर्माण प्रारंभ हुआ। &nbsp; <strong>नई विधानसभा का भवन</strong>14 मार्च 1981 को अरेरा पहाड़ी पर बिरला मंदिर और राज्य मंत्रालय के बीच नई विधानसभा का शिलान्यास हुआ। 17 सितम्बर 1984 को विधानसभा के नए भवन का निर्माण कार्य शुरू हुआ। नई विधानसभा के निर्माण में कई तरह की दिक्कतें आती रहीं और काम भी धीमी गति से चलता रहा। वर्ष 1994 के आखिर में तत्&zwj;कालीन सरकार ने एक साधिकार समिति का गठन कर उसे यह काम 18 महीने में पूरा करने की जिम्&zwj;मेदारी सौंपी। साधिकार समिति ने निर्माण में आ रही सभी रूकावटों को दूर किया, सभी आवश्&zwj;यक साधन जुटाये और समय-सीमा के भीतर नये भवन का निर्माण पूरा कर दिखाया। भवन की प्रारम्भिक लागत 10 करोड़ रूपये अनुमानित थी, लेकिन 12 वषों में इसकी लागत 54 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। प्रारम्भिक लागत में आंतरिक साजसज्&zwj;जा, फर्नीचर, आधुनिक साउंड सिस्&zwj;टम, वातानुकूलन, आधुनिक कैफेटेरिया एवं बगीचों का निर्माण व अन्&zwj;य सुविधाओं को शामिल करने से इसकी लागत में इजाफा हो गया। इसके बाद विधानसभा के नए भवन का उद्घाटन दिनांक 3 अगस्&zwj;त, 1996 को तत्&zwj;कालीन राष्&zwj;ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के कर कमलों से हुआ। इस नई विधानसभा का नाम इंदिरा गांधी विधानसभा रखा गया है। &nbsp; <strong>मध्य प्रदेश विधानसभा का इतिहास</strong>15 अगस्&zwj;त, 1947 के पहले देश में कई छोटी-बड़ी रियासतें एवं देशी राज्&zwj;य अस्तित्&zwj;व में थे। आजादी मिलने के बाद इन रियासतों और देशी राज्यों को स्&zwj;वतंत्र भारत में विलीन और एकीकृत किया गया। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश में पहले आम चुनाव हुए। सन् 1952 में हुए इन चुनावों के कारण संसद एवं विधान मण्&zwj;डल कार्यशील हुए। बाद में प्रशासनिक दृष्टि से इन्&zwj;हें कुछ श्रेणियों में विभाजित किया गया। सन् 1956 में राज्&zwj;यों के पुनर्गठन के फलस्&zwj;वरूप 1 नवंबर, 1956 को नया राज्&zwj;य मध्&zwj;यप्रदेश अस्तित्&zwj;व में आया। मध्य प्रदेश के घटक राज्यों में मध्&zwj;यभारत, विन्&zwj;ध्&zwj;य प्रदेश एवं भोपाल थे, जिनकी अपनी अपनी विधान सभाएं थीं। इसके बाद हुए पुनर्गठन के फलस्&zwj;वरूप सभी चारों विधान सभाएं एक विधान सभा में समाहित हो गईं। अंतत: 1 नवंबर, 1956 को पहली मध्&zwj;यप्रदेश विधान सभा अस्तित्&zwj;व में आई। इसका पहला और अंतिम अधिवेशन 17 दिसम्&zwj;बर, 1956 से 17 जनवरी, 1957 के बीच संपन्&zwj;न हुआ।&nbsp; &nbsp; <strong>मध्&zwj;यप्रदेश के घटक राज्&zwj;यों एवं इकाइयों का संक्षिप्&zwj;त ब्&zwj;यौरा इस प्रकार है :-</strong><strong>विन्&zwj;ध्&zwj;य प्रदेश विधान सभा </strong>4 अप्रैल, 1948 को विन्&zwj;ध्&zwj;यप्रदेश की स्&zwj;थापना हुई। स्थापना के साथ ही इसे ''ब'' श्रेणी के राज्&zwj;य का दर्जा दिया गया। पहले राजप्रमुख श्री मार्तण्&zwj;ड सिंह हुए। सन् 1950 में मध्य प्रदेश को ''ब'' से ''स'' श्रेणी&nbsp;में कर दिया गया। सन् 1952 में हुए आम चुनाव में यहां की विधान सभा के लिए 60 सदस्&zwj;य चुने गये, विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर शिवानन्द को चुना गया। 1 मार्च, 1952 से यह राज्&zwj;य उप राज्&zwj;यपाल का प्रदेश बना दिया गया, जिसमें पं. शंभूनाथ शुक्&zwj;ल मुख्&zwj;यमंत्री बने। विन्&zwj;ध्&zwj;यप्रदेश विधान सभा की पहली बैठक 21 अप्रैल, 1952 को हुई। लगभग साढ़े चार वर्षों के कार्यकाल वाली इस विधानसभा में 170 बैठकें हुईं। &nbsp; <strong>भोपाल विधान सभा</strong>प्रथम आम चुनाव के पहले तक भोपाल राज्&zwj;य केन्&zwj;द्र शासन के अंतर्गत मुख्&zwj;य आयुक्&zwj;त द्वारा शासित होता रहा। 30 सदस्यों वाली इस विधानसभा के साथ इस राज्य को ''स'' श्रेणी प्रदान किया गया था। इन तीस सदस्&zwj;यों में 6 सदस्&zwj;य अनुसूचित जाति और 1 सदस्&zwj;य अनुसूचित जनजाति से तथा 23 सामान्&zwj;य क्षेत्रों से चुने जाते थे। तीस चुनाव क्षेत्रों में से 16 एक सदस्&zwj;यीय तथा सात द्विसदस्&zwj;यीय थे। प्रथम आम चुनाव के बाद विधिवत विधान सभा का गठन हुआ। भोपाल विधान सभा का&nbsp;कार्यकाल मार्च, 1952 से अक्&zwj;टूबर, 1956 तक लगभग साढ़े चार साल रहा। भोपाल राज्&zwj;य के मुख्&zwj;यमंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा चुने गए। इस विधान सभा के अध्&zwj;यक्ष&nbsp;सुल्&zwj;तान मोहम्&zwj;मद खां एवं उपाध्&zwj;यक्ष लक्ष्&zwj;मीनारायण अग्रवाल थे। &nbsp; <strong>मध्&zwj;यभारत विधान सभा (ग्&zwj;वालियर)</strong>मध्&zwj;यभारत इकाई की स्&zwj;थापना ग्&zwj;वालियर, इन्&zwj;दौर और मालवा रियासतों को मिलाकर मई, 1948 में की गई थी। ग्&zwj;वालियर राज्&zwj;य के सबसे बड़े होने के कारण वहां के तत्&zwj;कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया को मध्&zwj;यभारत का आजीवन राज प्रमुख एवं ग्&zwj;वालियर के मुख्&zwj;यमंत्री लीलाधर जोशी को प्रथम मुख्&zwj;यमंत्री बनाया&nbsp;गया। इस विधानसभा के पहले मंत्रिमण्&zwj;डल ने 4 जून, 1948 को शपथ ली, जिसके बाद 75 सदस्&zwj;यीय विधान सभा का गठन किया गया। इनमें ग्वालियर के 40 प्रतिनिधि, इंदौर के 20 और अन्य छोटी रियासतों के 15 सदस्य चुने गए। 31 अक्&zwj;टूबर, 1956 तक ये विधानसभा कायम रही। सन् 1952 में संपन्&zwj;न आम चुनावों में मध्&zwj;यभारत विधान सभा के लिए 99 स्&zwj;थान रखे गए, मध्&zwj;यभारत को 59 एक सदस्&zwj;यीय क्षेत्र और 20 द्विसदस्&zwj;यीय क्षेत्र में बांटा गया। कुल 99 स्&zwj;थानों में से 17 अ.जा. तथा 12 स्&zwj;थान अ.ज.जा. के लिए सुरक्षित रखे गए। मध्&zwj;यभारत की नई विधान सभा का पहला अधिवेशन 17 मार्च, 1952 को ग्&zwj;वालियर में हुआ। इस विधान सभा का कार्यकाल लगभग साढ़े-चार साल रहा। इस विधान सभा के अध्&zwj;यक्ष अ.स. पटवर्धन और उपाध्&zwj;यक्ष वि.वि. सर्वटे थे। &nbsp; &nbsp; मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण तथ्यराज्यपाल - राम नरेश यादवमुख्यमंत्री - शिवराज सिंहजिले - 51राजधानी - भोपालविधानसभा निर्वाचन क्षेत्र - 230संसदीय निर्वाचन क्षेत्र - 29