
नेपाल में युवाओं का प्रदर्शन (Photo: IANS)
Nepal Gen‑Z Interim Leadership: नेपाल में ‘Gen‑Z’ नाम से प्रसिद्ध युवा आंदोलन ने केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) को प्रधानमंत्री पद से हटवाया। लेकिन ओली के जाने के बाद एक नए संकट (Gen‑Z Nepal political crisis) की शुरुआत हो गई और युवा खुद आपस में बंट गए हैं और अब टकराव झेल रहे हैं कि अंतरिम सरकार (Nepal interim PM contenders) का नेतृत्व कौन करेगा। Gen‑Z प्रदर्शनकारियों में कुछ गुट (Nepal Gen‑Z Interim Leadership) उभर कर सामने आए हैं: अंतरिम सरकार की अगुवाई के उम्मीदवारों वाले ये युवा चाहते हैं कि नेता ऐसा हो जो साफ‑सुथरा हो, भ्रष्टाचार से दूर हो और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरे। अन्य युवा समूह जो अन्य नामों को समर्थन दे रहे हैं या नेतृत्व की इच्छुक नहीं हैं, ये लोग विवादास्पद चेहरों, राजनीतिक दावेदारों आदि को लेकर संदेह में हैं और चाहते हैं कि नेतृत्व अधिक पारदर्शी और भरोसेमंद हो।
प्रदर्शनकारियों के बीच कुछ नाम चर्चा में हैं: मसलन कुलमन घिसिंग, सुशीला कार्की और बालेन्द्र ‘बालेन’ शाह।
कुलमान घिसिंग नेपाल के उन चुनिंदा नेताओं में से हैं जिनकी पहचान काम से बनी है, नारे या दल से नहीं। उन्होंने नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) के प्रमुख के रूप में लोडशेडिंग यानी बिजली कटौती की गंभीर समस्या को खत्म करके इतिहास रच दिया। जहां कभी नेपाल में दिन के 18 घंटे तक बिजली नहीं रहती थी, वहां घिसिंग ने रिकॉर्ड समय में बिजली की आपूर्ति दुरुस्त कर दी। उनके नेतृत्व में ना सिर्फ आम नागरिकों को रोशनी मिली, बल्कि उद्योग-धंधों को भी रफ्तार मिली। उन्हें तकनीकी दक्षता, ईमानदारी और जिम्मेदार नेतृत्व के लिए जाना जाता है। आज की युवा पीढ़ी उन्हें एक ऐसे भरोसेमंद चेहरा मानती है, जो पारदर्शिता और विकास की मिसाल बन सकता है।
नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के रूप में सुशीला कार्की ने न्यायपालिका में इतिहास रच दिया। बिराटनगर में जन्मीं कार्की ने कानून की पढ़ाई ट्रिभुवन यूनिवर्सिटी और भारत से की और अपने करियर में बेहतरीन न्यायिक निर्णयों से देश की न्याय व्यवस्था को मजबूत किया। उनके फैसले अक्सर सत्ता के गलियारों में हलचल मचा देते थे, क्योंकि वे भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप के सख्त खिलाफ थीं। उन्होंने सिद्ध किया कि न्यायपालिका को निष्पक्ष और बेबाक रहना चाहिए। हालांकि आंदोलन के युवाओं के बीच उनका नाम नेतृत्व के लिए सामने आया, लेकिन उम्र और संवैधानिक सीमाओं के चलते उन्हें लेकर कुछ असमंजस भी है। बावजूद इसके, वे आज भी नैतिक नेतृत्व का प्रतीक मानी जाती हैं।
बालेन्द्र शाह, जिन्हें लोग 'बालेन' के नाम से जानते हैं, एक इंजीनियर और रैपर से नेता बने ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने काठमांडू का मेयर बनने के बाद राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। वे पारंपरिक राजनीति से अलग सोच और निडर कार्यशैली के लिए प्रसिद्ध हैं। बालेन ने मेयर बनने के बाद सड़कों, अतिक्रमण और सफाई जैसे बुनियादी मुद्दों पर ज़मीन पर काम करके जनता का दिल जीता। खासकर युवाओं में उनकी लोकप्रियता इसलिए है क्योंकि वे सीधे सवाल करते हैं और जवाबदेही चाहते हैं। हालांकि उन्होंने अंतरिम सरकार की अगुवाई को लेकर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है, लेकिन देश का युवा वर्ग उन्हें एक परिवर्तनकारी विकल्प मानता है-जो पुराने राजनीतिक ढांचे को चुनौती दे सकता है।
मुख्य टकराव की वजहें ये हैं:
नेतृत्व का चयन: किसे नेता चुना जाए, इस पर मतभेद है।
स्वच्छ छवि vs अनुभव: कुछ लोग चाहते हैं कि नेता में अनुभव और प्रशासनिक योग्यता हो, कुछ चाहते हैं कि वह पूरी तरह भ्रष्टाचार‑रहित हो।
संविधान और नियम: कुछ युवाओं का तर्क है कि संविधान पूर्व न्यायाधीश या न्यायपालिका से जुड़े लोगों को कार्यकारी नेतृत्व की जिम्मेदारी नहीं दे सकता।
राजनीतिक भरोसा: कुछ दावेदारों पर राजनीतिक जुड़ाव या पुराने राजनीतिक विवाद हैं, जिससे समर्थकों में विश्वास की कमी है।
इस आंदोलन की कई कारणों सेशुरुआत हुई : सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रतिबंध लगाया, जिससे युवा आक्रोशित हुए क्योंकि ये प्रतिबंध उन्हें अभिव्यक्ति के अधिकार से रोकने जैसा लगा।
महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक तुष्टीकरण जैसी गहरी समस्याएं पहले से मौजूद थीं। सोशल मीडिया प्रतिबंध इन मुद्दों को सामने लाने का कारण बना। प्रदर्शन बढ़े, हिंसा हुई, कई प्रदर्शनकारियों की मौत हुई और घायल हुए। इसका दबाव नेताों पर बढ़ा और केपी ओली को इस्तीफा देना पड़ा। अब ओली ने इस्तीफा दे दिया है और सोशल मीडिया प्रतिबंध हटाया गया है। लेकिन अब युवाओं के बीच असमंजस है कि interim सरकार कौन बनाएगा और किस प्रकार की नेतृत्व होगी।
कुछ युवाओं ने भरोसा जताया है कि कुलमन घीसिंग जैसी शख्सियत अच्छे विकल्प हो सकती है। लेकिन विवादास्पद चेहरे और राजनीतिक इतिहास वाले लोगों को लेकर संदेह अब भी बना हुआ है।
बहरहाल Gen‑Z आंदोलन ने नेपाल की राजनीति को बड़ा झटका दिया है। हालांकि ओली गिरे, लेकिन अब युवा खुद तय करना चाहते हैं कि देश का अगला कदम कैसे हो। नेतृत्व, पारदर्शिता और भरोसा इन आंदोलनकारियों की सबसे बड़ी मांगें हैं।
Updated on:
11 Sept 2025 07:11 pm
Published on:
11 Sept 2025 07:09 pm
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