पंच पोखर आश्रम उत्तरप्रदेश के औरैया जिले में मशहूर है। जहां सर्प जाति को समाप्त करने के लिए सर्प मेध यज्ञ किया गया था। इसे राजा जनमेजय की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। ये स्थान राजा परीक्षित की सर्प दंश से हुई मौत के बाद में चर्चा में आया। इनके पुत्र राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प मेघ यज्ञ कराया था। महाभारत काल में पांडवों के अंतिम राजा जनमेजय के पिता राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद हुए यज्ञ से यहां की पूरी कहानी का तानाबाना है।आज भी लोगों का कहना कि इस क्षेत्र में आज भी सांप काटने से किसी की मौत नहीं होती है। एक बार की बात है कि जंगल में राजा परीक्षित शिकार करने हेतु वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने लगे। इससे वह प्यास से व्याकुल हो गए तथा जलाशय की खोज में वे शमीक ऋषि के आश्रम पहुंच गए। ऋषि उस वक्त में लीन थे। राजा परीक्षित के जल मांगने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। नाराज होकर उन्होंने पास में ही पड़े एक मरे हुए सर्प को उनके गले में डाल दिया था। उन्होंने ने कहा कि आज के सातवें दिन सर्प के काटने से उसकी मृत्यु होगी। उन्होंने यज्ञ के लिए सबसे उपयुक्त स्थान औरैया के दलेल नगर से सटे कस्बे के पास पंच पोखर स्थान को चुना, जो सूर्य उदय, अस्त मंजलोक (पृथ्वी का बिंदु) है। पंच पोखर आश्रम की देखरेख कर रहे श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज, मनोहर दास जी महाराज लोहा लगड़ी फक्कड़ ने बताया कि यहां पर सर्प मेघ यज्ञ का आयोजन किया गया था। जहां पर बड़े-बड़े प्रकांड विद्वानों ने यज्ञ कराया था। श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज ने बताया कि इस स्थान पर आज भी कालसर्प होने पर दूर-दूर से लोग आते हैं और यज्ञ के दौरान सर्प आज भी सीधे यज्ञ कुंड में अपनी जान देते हैं। यहां की जमीन इतनी पवित्र है कि आसपास के क्षेत्र में सर्प के काटने से भी कोई मौत नहीं होती है। आश्रम के महाराज जी की मानें तो आज भी यहां तक्षक सर्प दिखाई देता है। लेकिन कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है। पूरे क्षेत्र यहां का निर्धारित स्थान वरदानी है।
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