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Indian Railways: दस साल में दो फीसदी सुधरा है ट्रेनों का ‘पंक्चुअलिटी मार्क’

Indian Railways: इंडिगो संकट के चलते बीते कुछ दिनों में सैकड़ों उड़ानें रद्द होने पर काफी हंगामा हुआ। लेकिन, रोज कई ट्रेनों के घंटों लेट होने और एक साथ तीन-तीन महीनों के लिए अनेक ट्रेनों के रद्द होने की खबर पता भी नहीं चलती। इस विरोधाभास के बीच जानिए ट्रेनों की देरी से जुड़े तथ्य।

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भारत

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Vijay Kumar Jha

Dec 07, 2025

Indian Railways

Indigo Crisis में फ्लाइट रद्द होने पर मचे हंगामे के बीच जान लीजिए कि ट्रेनें कितनी लेट चलती हैं। (AI Image))

Indian Railways: भारत में ट्रेनों की लेटलतीफी को लेकर लोग अक्सर शिकायत करते मिल जाते हैं, लेकिन रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Railway Minister Ashwini Vaishnaw) का कहना है कि यहां ट्रेनों के समय से चलने की स्थिति कई यूरोपीय देशों से बेहतर है। रेल मंत्री वैष्णव ने 5 दिसंबर, 2025 को राज्यसभा में बताया कि 70 रेल डिविजन में ‘पंक्चुअलिटी मार्क’ 90 प्रतिशत को पार कर चुका है और कुल मिला कर भारतीय रेलवे में यह आंकड़ा 80 फीसदी है। वैष्णव ने इसे उल्लेखनीय उपलब्धि बताया।

Indian Railways Punctuality Mark: दस साल में कितना सुधार?

बता दें कि वित्त वर्ष 2024-25 में भारतीय रेल (Indian Railways) का ‘पंक्चुअलिटी मार्क’ 77.12 था। दस साल पहले यह अमूमन 78 फीसदी (मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए) था।

जुलाई 2015 में तब के रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने लोकसभा में बताया था कि 1 जुलाई, 2014 से 30 जून, 2015 के दौरान भारतीय रेल ने मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए 78 प्रतिशत पंक्चुअलिटी हासिल की थी।

बता दें कि अंतिम स्टेशन पर तय समय के 15 मिनट के भीतर पहुंचने पर ट्रेनों को समय पर माना गया था। भले ही बीच के स्टेशनों पर वह ट्रेन कितनी भी देर से पहुंची हो।

Indian Railway में ‘पंक्चुअलिटी मार्क’ मतलब क्या?

ट्रेनों के पंक्चुअल (समय से) होने का मतलब समझ लीजिए। रेल मंत्री के ताजा बयान का मतलब अगर आप यह समझ रहे हैं कि 80 फीसदी ट्रेनें स्टेशनों पर तय समय पर पहुंच रही हैं, तो आप गलत हैं। गलत इसलिए कि रेलवे में ट्रेनों के ‘समय पर होने’ का मतलब यह नहीं है।

NLT के पैमाने पर मापी जाती है पंक्चुअलिटी

ट्रेनों की पंक्चुअलिटी मापने का पैमाना है Not Late by Train (NLT)। मतलब तय समय से 15 मिनट (अलग-अलग जगह यह समय अलग-अलग होता है) के भीतर अंतिम गंतव्य स्टेशन पर पहुंच गई ट्रेन को ‘लेट’ नहीं माना जाता है। बीच के स्टेशनों पर पहुंचने में हुई देरी से कोई लेना-देना नहीं होता।

NLT पैमाने के तहत किस देश में शेड्यूल्ड टाइम के बाद कितना छूट

जापान60 सेकंड तक
स्विट्जरलैंड3 मिनट
फ्रांस/इटली/ऑस्ट्रिया5 मिनट
भारत15 मिनट

पंक्चुअलिटी रेट निकालने का फार्मूला भी समझ लीजिए

लेट नहीं हुई ट्रेनों की संख्या को कुल ट्रेनों की संख्या से भाग देकर उसे सौ से गुना करते हैं। जो नतीजा आता है, वह ‘पंक्चुअलिटी रेट’ कहा जाता है।

कुछ देशों में ‘पंक्चुअलिटी रेट’ पर एक नजर

जापान (शिंकनसेन हाई स्पीड)99%
स्विट्जरलैंड93.20 % (2024)
नीदरलैंड94%
फ्रांस87-89%
इटली80%

भारत में ज्यादा पेंचीदा है मामला

भारत में 13 हजार से ज्यादा ट्रेनें फेरे लगा रही हैं। इनमें मेल-एक्सप्रेस, सवारी और सबअर्बन गाड़ियां शामिल हैं। यहां राजधानी, शताब्दी, वंदे भारत जैसी गाड़ियां भी हैं, जिनकी गति सीमा अलग-अलग है। रेल ट्रैक भी अलग-अलग तरह के हैं। बिजली के अलावा डीजल से चलने वाले इंजन भी हैं। इसलिए यहां पूरे देश में एक जैसी पंक्चुअलिटी रेट हासिल करना मुश्किल है।
इसलिए अलग-अलग जोन में ‘पंक्चुअलिटी मार्क’ का टार्गेट भी अलग-अलग रखा गया है। 2024-25 के लिए यह 65 से 100 फीसदी के बीच रखा गया था। मेट्रो रेलवे के लिए सर्वाधिक सौ फीसदी और दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे (SECR) का सबसे कम, 65 फीसदी, टार्गेट रखा गया था।

ट्रेनें लेट होने के कारण

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में ट्रेनें लेट होने के कारणों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा है- एक तो जिस पर रेलवे का वश नहीं है, और दूसरा वैसे कारण जिनका निवारण हो सकता है।

जिन पर कोई वश नहीं है, उन कारणों में कोहरा, बाढ़, पटरी पर जानवरों का आ जाना, बंद, प्रदर्शन आदि शामिल है।

दूसरी श्रेणी में ट्रैक खाली नहीं होना, इंजन या किसी पार्ट में खराबी, मशीनी काम, रखरखाव, ट्रेनों की रिशेड्यूलिंग आदि कारण रखे गए हैं।

कोहरे का इलाज नहीं

कोहरे की वजह से हर साल सर्दियों में सैकड़ों ट्रेनें दो-तीन महीने के लिए रद्द कर दी जाती हैं। इस बार भी एक दिसम्बर से फरवरी तक के लिए कई ट्रेनें रद्द हैं। जो ट्रेनें चलती हैं, उनमें से भी कई लेट होती हैं। खास कर उत्तर भारत में स्थिति ज्यादा गंभीर होती है।

इस स्थिति को संभालने के लिए ट्रेनों में एंटी फॉग डिवाइस लगाने की बात डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से चल रही है, लेकिन इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है।

डीजल इंजन से भी देरी

डीजल इंजन की वजह से भी ट्रेनें लेट होती हैं। रेलवे बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, डीजल इंजन फेल हो जाने से 2023, 2024 और 2025 (सितंबर तक) में क्रमशः 1906, 1837 और 714 ट्रेनें लेट हुईं।

रेलवे का प्लान डीजल इंजन का इस्तेमाल पूरी तरह खत्म करने का है। अक्तूबर 2025 तक 99.1 प्रतिशत ब्रॉड गेज रेल लाइन को बिजली से जोड़ दिया गया है। 2016-17 से नया डीजल इंजन बनाने का काम लगभग रोक दिया गया है। इसकी जगह बिजली से चलने वाले इंजन का उत्पादन बढ़ाया गया है।

2021-22 में रेलवे के पास 4747 डीजल इंजन थे, जो दो साल बाद 4397 रह गए। इस बीच इलेक्ट्रिक इंजन की संख्या 8429 से 10,675 जा पहुंची। 2024 की एक रिपोर्ट में सीएजी ने भी बताया है कि जिस अनुपात में डीजल इंजन का इस्तेमाल कम हो रहा है, उस अनुपात में रेल लाइन का विद्युतीकरण नहीं हो पा रहा है।

सबसे बड़ी मुश्किल

सबसे बड़ी समस्या रेल नेटवर्क का सही इस्तेमाल नहीं होना है। 45 प्रतिशत रेल नेटवर्क का 70 फीसदी इस्तेमाल ही हो रहा है, जबकि एक फीसदी नेटवर्क पर जरूरत से ज्यादा बोझ है। इसका इस्तेमाल क्षमता से डेढ़ गुना ज्यादा हो रहा है। बड़े शहरों को जोड़ने वाली रेल लाइनों पर क्षमता से ज्यादा गाड़ियां दौड़ रही हैं।

ट्रेन बनाम प्लेन: यात्रियों की संख्या

रेलवे में सफर करने वालों की संख्या की बात करें तो 2019-20 से 2024-25 के बीच 3349 करोड़ यात्रियों ने ट्रेन में यात्रा की। 4 नवम्बर, 2024 को एक दिन में तीन करोड़ से ज्यादा लोगों ने ट्रेन में सफर किया। विमान यात्रियों की बात करें तो 2024 में 22 करोड़ 81 लाख लोगों ने घरेलू उड़ानों में सफर किया। 17 नवम्बर, 2024 को एक दिन में पहली बार सर्वाधिक 5 लाख लोगों ने हवाई सफर किया।

तो, अगली बार जब आपकी ट्रेन लेट होगी तो रेल मंत्री का बयान याद आएगा और दिमाग में ये आंकड़े भी घूमेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात याद रखिएगा! अगर आपका स्टेशन ट्रेन का अंतिम पड़ाव नहीं है तो ट्रेन तय समय से कितनी भी देरी से क्यों नहीं आए, आप उसे 'लेट' नहीं मानिएगा!