
प्रतीकात्मक तस्वीर
Delhi blast victims: दिल्ली के लाल किले के पास हुए धमाके की हुए भले ही बहुत टाइम हो गया है, लेकिन वह हादसा कुछ लोगों की जिंदगी पर छाप छोड़ चुका है। इस हादसे ने कुछ लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर गंभीर असर डाला है। घायल हुए लोग आज भी दर्द, इलाज और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। एक तरफ जहां लोगों के लिए ये घाव किसी सदमे से कम नहीं है, वहीं अधिकारी इन घावों को दस्तावेजों में मामूली चोटों का श्रेणी में रखा है। साथ ही सराकर ने पीड़ितों को 20,000 रुपये मुआवजे की घोषणा की थी, लेकिन घायलों को इलाज के लिए यह राशि कम पड़ रही है, जिस वजह से घायलों ने मीडिया के सामने अपना दुख जाहिर किया और दिल्ली सरकार को पत्र भी लिखा है।
धमाके में घायल लोगों ने दिल्ली सरकार को मुआवजे पर दोबारा सोचने की मांग की है। उनका कहना है कि पहले हुए बड़े आतंकी हमलों में घायलों को कहीं ज्यादा मदद मिली थी। उन्होंने 2005 के दिल्ली सीरियल ब्लास्ट, 2007 के समझौता एक्सप्रेस धमाके, 2008 के गफ्फार मार्केट और 2011 के दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्ट का हवाला देते हुए कहा कि तब पीड़ितों को बेहतर सहायता दी गई थी। साथ ही घायलों ने अपील की कि उन्हें जितनी बेहतर सुविधा दी जा सके, सरकार को उतनी बेहतर सुविधा देनी चाहिए।
23 साल की शाइना परवीन के लिए यह धमाका उनके जीवन का एक डरावना हिस्सा बना हुआ है। इस धमाके में उनके कान का पर्दा फट गया था और उसके साथ चेहरे पर भी काफी चोंटें आई थी। इलाज के चलते उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। इतना ही नहीं इस हादसे की वजह से उनकी शादी तक केंसिल हो गई। उनके पिता ऑटो चलाकर घर चलाते हैं और बेटी के इलाज का सारा खर्च भी वही उठा रहे हैं। शाइना का कहना है कि अब तक दवाइयों पर ही 30 हजार रुपये से ज्यादा खर्च हो चुका है। एक और 26 साल की महिला, जो इस धमाके में घायल हुई थीं, उनकी आंखों और पैरों में चोट आई थी। उन्हें भी नौकरी छोड़नी पड़ी। उनके पिता ने टीओआई को बताया कि अस्पताल ने उन्हें “मामूली रूप से घायल” बताकर सिर्फ पांच दिनों में छुट्टी दे दी, जिसके बाद सरकारी इलाज मिलना मुश्किल हो गया। इस वजह से मजबूरी में उन्हें प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ा।
शाइना ने यह सवाल उठाया है कि आखिर 20,000 रुपये की कीमत क्या है? उन्हेंने कहा कि जिस दर्द से वह गुजर रही है, क्या उसकी कीमत सिर्फ 20 हजार रुपये ही है। उन्होंने बताया कि धमाके के एक महीने बाद भी उनका इलाज चल रहा है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि क्या पीड़ित इससे बेहतर व्यवहार डिजर्व नहीं करते हैं ? वहीं सामाजिक कार्यकर्ता अशोक रंधावा ने कहा कि माना सरकार ने हादसे के पीड़ितों के लिए बहुत मददगार रुख अपनाया है, लेकिन मुआवजे के लिए उनको दी जा रही राशि बहुत कम है।
Published on:
28 Dec 2025 03:51 pm
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